प्याज की ताकत का अहसास
चार वर्ष पूर्व दिल्ली में शाकाहार पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया था। एक पांचसितारा होटल के भव्य बैनक्वेट में। आयोजक संस्था ने इस परिचर्चा में पांच वक्ताओं को आमंत्रित किया। मेरे एक मित्र ने मुझसे आग्रह किया कि मैं भी उनके साथ उस परिचर्चा में चलूं। मैंने आग्रह स्वीकार कर लिया क्योंकि उस दिन मुझे विशेष काम नहीं था। परिचर्चा शुरू हुई। वक्ताओं ने शाकाहार के गुणों का बखान शुरू किया। सौ साल जीना हो तो शाकाहारी भोजन करो। मांसाहारी अपने भोजन प्रवृत्ति के कारण उग्र होते हैं जबकि शाकाहारी नर्म और उदार। एक ने तो यहां तक कह दिया कि मांसाहारी रावण की सन्तान है, किसी ने कहा मांसाहारी मृत्यु के बाद नर्क में जाते हैं। इन सारे बखानों में वक्ता एक मत थे एवं वहां पचास-साठ श्रोता भी बीच-बीच में गर्दन हिलाकर वक्ताओं के ब्रह्मवाक्य का समर्थन कर रहे थे। आमतौर पर परिचर्चा में मत पार्थक्य होता है पर गोष्ठी के विषय ''शाकाहार और जीवनÓÓ में सभी वक्ता एकमत थे। बस फर्क इतना ही था कि शाकाहार की प्रशस्ति की डिग्री कम या अधिक थी। शाकाहार वाले स्वर्ग जाते हैं और मांसाहार कुम्भीपाक से लेकर नीचे की डिग्री मं शाकाहार सत्गुणों का भंडार होते हैं जबकि मांसाहारी दुराचारी और दुष्कर्मी। वक्ता का यह भी मत था कि रेप यानि बलात्कारी निश्चित तौर पर प्याज खाते हैं। सब्जी-फुलके-दाल वाले लोग सात्विक और महिलाओं का सम्मान करते हैं।
भाषण शृंखला आगे बढ़ रही थी कि एक वक्ता जैन समाज के नामधारी समाजसेवी ने नया तर्क देकर अच्छा-खासा विवाद खड़ा कर दिया। श्रीमान् ने दावा किया कि वे विशुद्ध शाकाहारी हैं और प्याज-लहसून कुछ नहीं खाते। जैन साहब का यह कहना था कि एक सज्जन ने खड़े होकर प्रतिवाद किया। उनका कहना था कि प्याज खाने वाले क्या शुद्ध शाकाहार नहीं होते? इस पर जैन साहब ने कहा कि जो प्याज या लहसून का सेवन करते हैं वे उतने ही पापी हैं जितना मांस भक्षण करने वाले। बस यह कहना था कि शान्ति और समरस विचार वाली गोष्ठी में अचानक भूचाल सा आ गया। गरमागरमी इतनी बढ़ गयी कि वहां दो शिविर बन गये। एक प्याज खाने वाले तामसिक प्रवृत्ति एवं दूसरा प्याज-लहसून की वर्जना करने वाले शुद्ध शाकारी भोजन प्रेमियों का। यही नहीं तर्क-वितर्क इतना बढ़ गया कि धक्कम धुक्की शुरू हो गयी। एक युवक ने कुछ बुजुर्गों की तरफ हाथ दिखाते हुये कह डाला कि शाकाहार का आंदोलन प्याज वर्जना करने वालों के हाथ में जब तक रहेगा, शाकाहार का प्रचार-प्रसार नहीं हो सकता।
मैंने देखा कि शाकाहार जैसे निर्दोष, निरंकार विषय पर भी प्याज के कारण दो भाग हो गये। अच्छी-खासी उठापटक शुरू हो गयी। वहां उपस्थित लोग जो अच्छे सगुण संस्कारित परिवारों के से लगते दो खेमों में बंट गये और व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया। वातावरण एयर कंडीशन सभागार में भी गर्म हो गया और राजनीतिक विवादों की तरह गाली-गलौज तक पहुंच गया। प्याज के दामों में लगी आग की तपिश से देश के करोड़ों लोग जूझ रहे हैं यह तो मुझे मालूम है किन्तु प्याज में वह ताकत है कि एक ही समाज को दो खेमों में बांट दे, ऐसी तलवार की धार जैसा पैनापन भी इस सब्जी में होता है, इसका नजारा पहली बार देखा।
जब हमारी वित्तमंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने संसद में यह कहा कि वे प्याज नहीं खाती ना ही उनका परिवार। उनके इस कथन को लेकर आलोचना हुई है। उनके कथन में आहार का गर्व देखा गया है। अपने खुद के और प्याज के रिश्ते के बारे में वह खामोश रह कर प्याज संकट पर मात्र अपना बयान रखती तो इस आलोचना से बची रहती।
शाकाहार पर गोष्ठी में प्याज को लेकर दिलों का विभाजन और माननीय वित्त मंत्री द्वारा प्याज से परहेज दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। हर एक की अपनी आहार पसंदगियां, गैर-पसंदगियां होती हैं। एक ही परिवार में कुछ सदस्यों का भोजन प्याज के बिना नहीं होता तो कुछ को प्याज की गंध से भी परहेज है। इसको लेकर एक-दूसरे पर छींटा-कशी और व्यंग्य और आलोचना के बाण चलाना शोभनीय नहीं।
जैन कंद-मूल नहीं खाते। प्याज ही नहीं, आलू, शलजम, चुकंदर भी नहीं। उनका मानना है कि जब यह पौधे जमीन से उखाड़े जाते हैं, तब छोटे जीवन-जंतुओं को हानि पहुंचती है। जैन यह भी मानते हैं कि प्याज एक कली होने के नाते, उखाड़े जाने पर जीवित रहता है। इन तात्विक विचारों को हमें आदर भाव से लेना चाहिए। अगर किसी भी प्याज-प्रियता पर मचान उचित नहीं, तो फिर वैसे ही किसी और की प्याज-परहेज प्रवृत्ति पर भी एतराज अनुचित है।
प्याज भारत की खुशहाली और उसकी गरीबी दोनों का परिचायक है। आप प्याज न भी खाते हों तो यह समझना चाहिये देश के करोड़ों बहुसंख्यक विशेषकर गरीब का उसके बिना गुजारा नहीं है। लेकिन प्याज में सरकार उलटने की ताकत है। प्याज आँखों में पानी ला सकता है और देश के व्यवस्थापकों को ठिकाने लगा सकता है। दिल्ली में सुषमा स्वराज की सरकार को प्याज के आसमान छूते दाम ने हरा कर अपनी ताकत का अहसास कराया था।
जैसे प्याज ने परिचर्चा के प्रतिभागियों को बांट दिया क्योंकि प्याज के पीछे आम आदमी का दर्द है, उसकी वेदना है। उनके लिए प्याज ही भारत की अस्मिता है। भले ही वित्तमंत्री प्याज न खाती हों पर प्याज के मामले में सरकार की विफलता की जिम्मेवारी उसे लनी होगी।

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