हैदराबाद का जघन्य कांड और एनकाउंटर

हैदराबाद का जघन्य कांड और एनकाउंटर
जन आक्रोश न्यायपालिका और पुलिस रवैये के विरुद्ध भी है





न्यायिक व्यवस्था को अंगूठा दिखाकर फेक एनकाउंटर पर खुशी
 प्रकट करते हुये जनसाधारण। (फोटो : साभार दी टेलीग्राफ)

संसद में अपने समय की श्रेष्ठ अभिनेत्री जया बच्चन ने मांग की थी कि बलात्कारी को भीड़ को सौंप देना चाहिये। जया जी के गुस्से में देश की आम जनता का गुस्सा स्पष्ट झलकता था। निर्भया के जघन्य कांड में न्याय दिलाने में सात वर्ष का लम्बा समय लगा और अभियुक्त को अभी तक फांसी नहीं हुई। जाहिर है इससे यह संदेश गया कि हमारी न्यायिक प्रक्रिया कहीं न कहीं घृणित अपराध को तिनके का सहारा देती है। उन्नाव में भी जो कांड हुआ उसने लोगों को झकझोर दिया। हैदराबाद के पाशविक वारदात में जब एनकाउंटर में बलात्कारियों को तुरन्त मौत के घाट पर उतार दिया तो लोगों ने इस पर खुशी जाहिर की। यही नहीं पुलिस पर फूल बरसाये गये। घटनास्थल पर ही बलात्कारियों को उनके किये की सजा मिली, फटाफट न्याय का इससे अच्छा उदाहहण और क्या हो सकता है। हैदराबाद के कांड पर वहां की पुलिस की वाहवाही हो रही है, कुछ लोगों ने अन्य राज्यों की पुलिस से भी कहा है कि वे उसका अनुसरण करें। लोग ऐसा मान रहे हैं कि हैदराबाद की डॉक्टर युवती के बलात्कारियों के अपराध का तुरन्त निपटारा नहीं होता तो इस कांड के भी आकाओं को अपने अपराध की सजा मिलने में वर्षों लग जाते। इन वारदातों एवं उससे अधिक इनके अपराधियों को हमारी न्यायपालिका से मिलने वाली समय की राहत से देश की जनता की अन्तरात्मा इतनी कराह उठी है कि वह जया बच्चन के मुंह से मुखरित होती है। इसलिये फेक एनकाउंटर की भी लोग दाद देते हैं। यह जितना विभत्स कांड के प्रति गुस्सा है उतना ही यह उस गुस्से की अभिव्यक्ति भी है जिसमें उन्हें फांसी दिलाने में कई वर्ष बीत जाते हैं। इसलिये अगर रास्ते पर चलते-फिरते या किसी पब्लिक प्लेस में साधारण आदमी को पूछें तो शत-प्रतिशत वह इस एनकाउंटर को वरदान मानता है और अपराधियों को सजा दिलाने का यही उत्तम तरीका मानता है। यह किन्तु वही पब्लिक है जो उन्नाव कांड में रेप पीडि़ता 90 प्रतिशत आग से झुलस कर कराहते हुये दौड़ती रही पर कोई उसकी मदद को आगे नहीं आया। अन्त में अस्पताल में न्याय की जंग लड़ते-लड़ते एक और निर्भया जिंदगी की जंग हार गई।

भारत की न्याय प्रक्रिया और अधिकांश मामलों में पुलिस का रवैया, दोनों ने लोगों में गुस्सा और घृणा का वह आलम पैदा कर दिया है कि लोग कानून को हाथ में लेकर अपराधी को सजा दिलाने के पैरोकार बन गये हैं। प्रशासन को यह चेतावनी भी है। यह स्थिति हमें जंगलराज की ओर धकेल रही है जिसमें धन बल या बाहुबल ही निर्णय लेगा। महिलाओं का शोषण, छोटी बच्ची के साथ सामूहिक रेप जैसे पाशविक कार्य तो सुर्खियों में आते हैं पर महिलाओं ही नहीं छोटे बच्चों के विरुद्ध घरेलू हिंसा के ऐसे अनगिनत मामले हैं जो प्रकाश में नहीं आते। दो वर्ष पहले महिला संगठन की एक गोष्ठी में एक कॉलेज की प्रिन्सिपल ने बताया कि उनकी कई छात्राओं ने अपने ही घर में यौन शोषण की शिकायत की है। पुलिस स्टेशन में लड़की की रिपोर्ट नहीं लिखी जाती है। पुलिस कहती है घर जाओ सब ठीक हो जायेगा।

दरअसल इस गहन समस्या का समाधान न तो अपराधी को भीड़ के हवाले करना है और न ही फेक एनकाउंटर में उनको मारना है। न्यायिक प्रक्रिया को सहज एवं अपराध के अनुसार शीघ्र निपटारा की जरूरत है। सिर्फ रेप कांड में केस दायर करने में लम्बी प्रक्रिया भी अपने आप में अपराध है। अल्प समय में ही इसका निपटारा होना चाहिये। मर्सी पीटीशन को तुरन्त खारिज किया जाना चाहिये। इस तरह की याचिका अगर हो तो तुरन्त दायर हो जिसे अविलम्ब खारिज किया जाये। हैदराबाद एनकाउन्टर पर जो लोग खुश हैं दरअसल वे न्याय मिलने में विलम्ब के प्रति उनके आक्रोश है। सजा देने के लिए एक व्यवस्था से गुजरना जरूरी है। देश में प्रशासन भावना से नहीं व्यवस्था से चलता है। राजीव गांधी के चिथड़े उड़ा दिये एक सुसाइड स्क्वैड वाली लड़की ने। लेकिन उसको भी सजा एक न्यायिक खानापूर्ति करके दी गई। गांधी जी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को भी न्याय प्रक्रिया के अन्तर्गत फांसी हुई। पुलिस वाले ही जज बन जायेंगे तो न्यायालयों का क्या होगा?

हैदराबाद की पुलिस का कहना है कि वे बलात्कारी मुठभेड़ में मारे गए हैं। उन्हें कतार में खड़े करके नहीं मारा गया है। वे पुलिस के हथियार छीनकर भागने की कोशिश कर रहे थे। उन्होंने पिस्तौल भी चलाई थी। दो पुलिसवाले घायल भी हो गए। इस मुठबेड़ के चित्र भी जारी किए जा रहे हैं। यदि यह वृतांत सत्य है तो फिर हैदराबाद की पुलिस पर कोई उंगली उठायी नहीं जा सकती। वह सारा मामला जांच के लायक है।



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