अयोध्या का फैसला

अयोध्या का फैसला
हिन्दू-मुस्लिम सद्भाव का सुअवसर

रविवारीय चिन्तन का यह क्रम आपके पास पहुँचने के पहले अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ चुका है। फैसला किसके पक्ष में हुआ या किसकी जीत या हार हुई यह बोलना तो क्या सोचना भी बेमानी है। फैसले के पहले ही हिन्दू और मुस्लिम दोनों पक्ष ने यह बार-बार अपील की है कि जो भी फैसला आयेगा वह उन्हें मंजूर होगा और हम उस पर कोई नुक्ता-चीनी नहीं करेंगे। इस वक्तव्य से जाहिर है कि कोई भी पक्ष अब राम मन्दिर या बाबरी मस्जिद के नाम पर बवाल नहीं चाहता है। फिर भी दोनों पक्ष में कुछ लोग चाहेंगे कि देश की शांति भंग हो एवं दोनों सम्प्रदाय में आपसी प्रेम भाईचारा नष्ट हो। ऐसा करने में उनको फायदा है। शान्ति उनके लिये घाटे का सौदा है, बवाल एवं फसाद हो तो वे दोनों हाथ से बटोरेंगे एवं अपने-अपने समुदाय में अपना कद बढ़ाने का उन्हें मौका मिलेगा।




मुझे बाबरी मस्जिद विध्वंस के पहले अयोध्या जाने का मौका मिला था। उस व्क्त श्री कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। उन्होंने ही हमारी अन्य वरिष्ठ पत्रकारों के साथ फैजाबाद जाने की व्यवस्था की थी। वहां खंडहर था। हम गर्भगृह तक गये थे। नीचे कुछ अद्र्धनग्न बच्चे जनेऊ एवं पूजा सामग्री बेच रहे थे। मैंने दो-तीन का नाम पूछा तो पाया कि वे सभी मुसलमान थे। पूजा सामग्री किसी आस्था या सौहाद्र्र के वशीभूत होकर नहीं बल्कि मजबूर थे। बेचने वाले मुसलमान, खरीदने वाले हिन्दू। बड़ा ही सौहाद्र्र था। उनके कुछ अन्तराल बाद वहां विध्वंस का खेल खेला गया  और सारा सौहाद्र्रपूर्ण वातावरण या भाईचारा को ग्रहण लग गया। फिर कई साल तक मन्दिर बनाने को लेकर राजनीति चली।

अब जब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है। दोनों पक्ष को संयम बरतना चाहिये। भगवान राम भी अब रावण-संहार के पश्चात् अयोध्या लौटे, सभी ने उनका स्वागत किया। दीपक जलाये और कहते हैं उस दिन से दिवाली मनी। फैसला किसी के लिये उपलब्धि नहीं है। फैसला एक जमीन के टुकड़े पर मालिकाना हक के विवाद पर है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि अदालत आस्था या विश्वास पर फैसला नहीं कर रही है, बल्कि दोनों पक्ष ने उस जमीन पर अपने हक में जो प्रमाण एवं दस्तावेज दिये हैं, उनके मद्देनजर मालिकाना हक का है। कोर्ट ने पाया कि हिन्दू मन्दिर के होने के प्रमाण हैं एवं ब्रिटिश जमाने तक वहां इबादत नहीं की जाती थी। लेकिन  यहां इस्लाम-परस्तों की गतिविधियां भी होती थी, सीता-रसोई में किन्तु पूजा की जाती थी। इसलिये सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि मुस्लिम पक्ष समर्थकों को मस्जिद बनाने के लिये विकल्प भूमि भी दी जायेगी। फैसले के बाद किसी मुस्लिम संगठन ने यह कहा कि जब हमारी जमीन नहीं थी फिर हमें विकल्प जगह देने का क्या तुक है? यह तर्क इसलिये सही नहीं है क्योंकि पहला तो सुप्रीम कोर्ट अयोध्या में दोनों पक्ष के बीच सौहाद्र्र स्थापित करने के उद्देश्य से जमीन पर मालिकाना हक के इतर भी फैसले में बिन्दु शामिल कर सकता है। दूसरा सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला होगा, उसे मानने के लिए दोनों पक्ष वचनवद्ध हैं इसलिये फैसला पूर्ण रूप से माना जाना चाहिये, न कि उसका एक भाग। मुस्लिम पक्ष ने कहा कि वे फैसला मानेंगे पर वे इससे संतुष्ट नहीं हैं। मैं समझता हूँ कि इसमें संतुष्ट या असंतुष्ट होने वाली कोई बात नहीं है। फैसले के बाद शांति बनी रहे यह दोनों पक्ष की बराबर की जिम्मेदारी है। इसलिये फैसले को स्पाटर्समैन स्पीरिट में लिया जाना चाहिये। इससे कम में शांति या तनाव को स्थान मिल सकता है।



अयोध्या पर फैसला देने वाले पांच जज चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एसए नजीर।


यह एक सुखद संयोग है कि जिन पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने फैसला दिया है उसमें एक मुस्लिम न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर भी हैं। फैसला सर्वसम्मत हुआ है। यह भी एक संयोग है कि मुसलमानों के पक्ष को एक हिन्दू वकील राजीव धवन ने रखा। उन्होंने बहस में मुसलमानों के तर्क का मोर्चा सम्हाला।

क्या ही अच्छा हो कि राम मन्दिर जब बने तो उसकी पहली शिला किसी मौलवी के हाथ से स्थापित हो और विकल्प की जगह पर जब मस्जिद बने तो उसकी नींव के पत्थर हिन्दू भाइयों के संगठन की ओर से लगे। इससे हिन्दू-मुस्लिम सद्भाव का फाउंडेशन मजबूत होगा और शांति भंग करने वालों को करारा जवाब भी मिलेगा। याद रहे हिन्दू-मुस्लिम नफरत की गोली ने बापू का सीना चीर दिया था। अब कोई गोडसे न बने। शांति और सौहाद्र्र के सफेद कबूतरों से अयोध्या का स्काईलाईन पट जाये।




Comments

  1. Very thoughtful editorial, written with lots of goodwill.

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  2. सभी पक्षों को ध्यान में रखते हुए स्वागत योग्य सुप्रीम कोर्ट का फैसला।
    धार्मिक, राजनीतिक, आत्मिक, मानविक, सौहार्द बनाएं रखना हमारा कर्तव्य है ।
    उस बहुनामी परम सत्ता की जय हो जिसका असली नाम तो हम नहीं जानते परंतु वही सब कर रहा है इतना तो अवश्य जानते और महसूस करते हैं ..

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