घटती विकास दर बढ़ते आर्थिक अपराध

घटती विकास दर
बढ़ते आर्थिक अपराध

भारतीय अर्थव्यवस्था अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है। पहले तो हमारी वित्तमंत्री माननीय निर्मला सीतारमण यह मानने से इनकार करती रही पर आखिर उसे भी मानना पड़ा कि हमारी अर्थव्यवस्था मन्दी की चपेट में नहीं पर कुछ सुस्ती जरूर है। वित्तमंत्री चाहें जिस तरफ से कान पकड़े पर यह सच्चाई है कि हमारी अर्थव्यवस्था रसातल की ओर जा रही है। पिछले तिमाही में गिरावट 5 प्रतिशत थी तब शासक दल के माथे पर थोड़ी शिकन आई लेकिन केन्द्र में मंत्री जी ने ही कहा कि कहां है मन्दी? सिनेमा हॉल फुल जा रहे हैं, फिल्में तीन महीने में डेढ़ सौ करोड़ रुपये कमा रही हैं, लोग बड़ी गाडिय़ां खरीद रहे हैं, उड़ानें भर कर जाती हैं तो कैसे मानें कि विकास दर घट रही है। लेकिन तीन महीने और बीतने पर साढ़े छह साल के सबसे निचले स्तर पर पहुँचने पर वित्तमंत्री ने यह स्वीकार किया कि अर्थव्यवस्था में सुस्ती जरूर आई है पर मंदी नहीं आई और न कभी आयेगी। वित्तमंत्री ने कहा कि एनडीए सरकार में अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा है। साथ ही वित्तमंत्री ने यह भी कहा कि सरकार ने सफलतापूर्वक महंगाई पर नियंत्रण किया है।




देश के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने देश की अर्थव्यवस्था पर चिंता जताते हुए कहा कि विकास की दर पिछले 15 सालों के न्यूनतम स्तर पर पहुंच चुकी है। बेरोजगारी दर 45 सालों के उच्चतम स्तर पर है। घरेलू मांग चार दशक के निचले स्तर पर है। बैंक पर बैड लोन का बोझ सर्वकालिक उच्च स्तरपर पहुंच चुका है, इलेक्ट्रिसिटी की मांग 15 सालों के न्यूनतम स्तर पर पहुंच चुकी है। कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था की हालत बेहद गम्भीर है। यहां तक कि वित्तमंत्री के पति पराकला प्रभाकर साहब ने अंग्रेजी के एक प्रमुख समाचार पत्र में प्रकाशित आलेख में केन्द्रीय सरकार को डॉ. मनमोहन सिंह का अर्थव्यवस्था पर परामर्श लेन ेका सुझाव देते हुए कहा कि वक्त रहते अगर स्थिति नहीं सुधरी तो देश की बड़ी क्षति हो सकती है। आर्थिक विकास दर में गिरावट के बाद भारत से दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था का तमगा छिन गया है।

यह तो एक तस्वीर है तो कमोबेश सबके समझ में आ गयी है। सरकार भले ही मुंह फेर ले पर अब सभी वर्ग आर्थिक मंदी के चलते हाथ पर हाथ धर कर बैठ गया है। ''मेक इन इंडिया, ''स्टार्ट अप जैसी विदेशी दवायें और ''सबका साथ सबका विकासÓÓ जैसे स्वदेशी नुस्खे सभी हवा हवाई हो गये। जिस व्यापारी समाज ने सबसे अधिक ''मोदी-मोदीÓÓ का नारा लगाया, वही आज आर्थिक मन्दी के कारण नि:शब्द हो गया है। वेतनभोगी एवं गरीब तबके के लोगों के संकट की तो कोई बात ही नहीं करता, वे तो बेचारे भगवान भरोसे हैं। ऐसे में आसमान छूता राम मन्दिर बनाने का सरकारी संकल्प कुछ साधु-संन्यासियों को भले ही लुभा ले या कथित राम भक्तों को भले ही रोमांचित कर दे पर आम आदमी आसमान छूती महंगाई और रसातल की ओर ले जाती मंदी से छटपटा रहा है। आश्चर्य है कि विपक्ष के लिए भी गोडसे, रात के अँधेरे में राष्ट्रपति शासन हटाने और चुपके-चुपके महाराष्ट्र में सरकार बनाने के मुद्दे की सर्वाधिक अहमियत है। प्याज एक सौ रुपये किलो की दर पर बिकता है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में तो इससे शर्मनाक बात दूसरी नहीं हो सकती फिर भी गरीबों की दुहाई देवे वाली सरकार की चमक दमक में कोई फर्क नहीं पड़ता।

दूसरी तस्वीर भी कम लज्जाजनक नहीं है। देश में आर्थिक अपराध बेलगाम बढ़ रहे हैं। मैं इन कुछ महीनों में जहाँ भी गया, वहीं यह चर्चा चल रही थी कि फलां-फलां आदमी उधार लिये रुपये वापस नहीं कर रहा है। पहले तो आंख में कुछ शर्म थी पर अब तो डंके के चोट पर लोग पैसा मार रहे हैं। हाथ का लिखा हुआ पुर्जा लेकर घूम रहे हैं पर फूटी कौड़ी भी हाथ नहीं आती है। रुपये मारकर लोग मूंछ पर ताव देकर घूम रहे हैं। बीच के दलाल भी इस संकट में पैसा मारने वालों के साथ खड़े दिखाई देते हैं क्योंकि उन्हें चुप रहने या मुंह छिपाने की कीमत मिल रही है। कई दलाल बहती गंगा में हाथ धोकर तो कुछ गोते लगाकर बेतरणी पार कर रहे हैं। सुपारी लेने और सुपारी देने वालों की संख्या बढ़ रही है। जान से हाथ धोकर भी लोग सबक नहीं ले रहे हैं। आत्महत्या के मामले भी बढ़ रहे हैं। पारिवारिक सम्बन्ध यहां तक कि खून के रिश्तों का भी कोई लिहाज नहीं रहा। इन सबके बावजूद शादी-ब्याह की चल रही सीजन में पांच सितारा या सात सितारा होटल अथवा विवाह स्थलोंमें बुकिंग लबालब है।

विडम्बना यह है कि हमारे धर्माचारी, साधु, संन्यसी और धर्मप्राण गुरु इन सारे घटनाक्रम से पूर्णत: निर्लिप्त हैं। परिवार के ही लोगों का विश्वासघत कर बड़ी धनराशि डकार बैठे हुये हैं और अपने घरों में धर्म का मीना बाजार लगाकर यश की हवश को पूरा कर रहे हैं।

अब कोलकाता में अगले महीने से धर्म सभाओं का सिलसिला शुरू होगा। विशाल, भव्य पंडालों में व्यासपीठ पर विराजमान होकर चमकते ललाट और दिव्य दमक वाले चेहरों के श्रीमुख से सांसारिक समस्याओं से इतर परलोक की बातों का आचमन करने हजारों लोग इकत्र होंगे। आरती और धार्मिक प्रसंगों के हवाले से पर उपदेश में कोई कसर नहीं छोड़ी जायेगी। एक-एक भागवत पर कई करोड़ रुपयों का खर्च आयेगा। दानदाता झोली भर देंगे। ऐसे में सड़क किनारे सिसकता बचपन या ठंड में कंपकंपाता बुढ़ापा गुमनानी झेलता कालग्रास में सिमट जायेगा। अखंड पाठ चलता रहेगा।

सामाजिक व्यवस्था और आर्थिक दुरावस्था की हर चौपाल पर चर्चा है पर इसे बदलने की हिमाकत कौन करेगा?

Comments

  1. घर की मुर्गी दाल बराबर वाली कहावत चरितार्थ हो रही है हमारे देश में, दुनिया को आर्थिक स्थिति से उबारने वाले नोबुल पुरस्कार प्राप्त, विश्व में अपनी विशेष पहचान रखने वाले डॉ मनमोहन सिंह सरीखे व्यक्तित्व की उपेक्षा, अपनी टांग ऊंची रखने की मानसिकता लिए वर्तमान सरकार की चाटुकार मंडली से अब उम्मीद नहीं, शीघ्र कोई हल नहीं होगा, तो आर्थिक स्थिति से ग्रसित आम जनता सड़कों पर कहीं विद्रोह ना कर दे, ऐसी आशंका को झुठलाया नहीं जा सकता।

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  2. My dear,
    We have seen the period of Sri Mammohan SinghG also and everyone was what have done all know !

    So please spare to compare with this and that !

    This Government have done and solved the problems which was long pending of Hundred of Years.

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