क्या संस्कृत कर्मकांडियों की ही भाषा है?

क्या संस्कृत कर्मकांडियों की ही भाषा है?
भाषा का धर्म के साथ कोई सम्बन्ध नहीं होता

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्कृत धर्म संकाय विभाग में संस्कृत के प्रोफेसर के तौर पर डा. फिरोज खान की नियुक्ति को लेकर कुछ लोगों ने भृकुटी तान ली है। एक ओर प्रोफेसर फिरोज खान के समर्थन में विश्वविद्यालय के अन्य विभागों के छात्र आ गए हैं तो दूसरी ओर विरोध में धरना दे रहे छात्रों के समर्थन में अब हिन्दू धर्मगुरु भी उतर आए हैं। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में मुस्लिम प्रोफेसर की नियुक्ति को लेकर विवाद थमता नजर नहीं आ रहा है। डा. फिरोज खान ने कहा कि मैं एक मुस्लिम हूं तो क्या छात्रों को संस्कृत सिखा नहीं सकता? राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत ने कहा कि मुस्लिम समुदाय का व्यक्ति संस्कृत में स्कॉलर बना है। ऐसे में सबको इसका स्वागत करना चाहिए था। हिन्दू समाज के लिए गर्व की बात होनी चाहिए थी। बनारस को तो गंगा जमुनी संस्कृति का ध्वजवाहक माना गया है। हमारे देश में हिन्दू भी जाने माने शायर हुए हैं। जब एक-दूसरे के धर्म में इस प्रकार की रुचि रखते हैं, एक्सपर्टाइज करते हैं तो ऐसे में दायरा व्यापक हो जाता है। हम सर्वधर्म समभाव की बात करते हैं, इससे हमारे समाज में सर्व धर्म का ताना-बाना मजबूत होता है।



सुप्रसिद्ध फिल्म एक्टर परेश रावल ने अपन ने ट्विटर हैंडल पर लिखा है ''प्रोफेसर फिरोज खान के खिलाफ किए गए प्रोटेस्ट को देखकर दंग रह गया। भाषा का किसी धर्म से क्या ताल्लुक है। विडम्बना यह है कि प्रोफेसर फिरोज ने अपना मास्टर्स और पीएचडी संस्कृत में की है। भगवान के लिए यह मूर्खता बन्द करें।ÓÓ परेश ने एक और ट्विटर पर कहा ''इस लोजिक से तो महान गायक मरहूम मोहम्मद रफी साहब जी को भजन नहीं गाने चाहिए थे और नौशाद साहब का इसका म्यूजिक नहीं देना चाहिए था।ÓÓ कितनी सुखद बात है कि हिन्दी फिल्मों के सबसे लोकप्रिय भजन मुस्लिम गीतकारों ने लिखे हैं, कई मुस्लिम संगीतकारों ने उसमें संगीत दिया है और आज वे हमारी जुबान पर हैं।

फिरोज खान द्वारा संस्कृत पढ़ाये जाने को पचा नहीं पा रहे अतिवादी और अपने आपको हिन्दू रक्षक कहने वाले लोगों को जानकर धक्का लग सकत ाहै कि गुजरात के वड़ोदरा में मुस्लिम बच्चे संस्कृत पढ़ते हैं। उनको पढ़ाने वाले 46 वर्षीय आबिद सैयद कहते हैं कि उन्हें ना तो कभी हिन्दुओं की ओर से विरोध का सामना करना पड़ा और ना ही मुसलमानों ने उनका विरोध किया। खुद आविद सैयद ने सरदार पटेल यूनिवर्सिटी से संस्कृत और अंग्रेजी में एमए की पढ़ाई की है। स्कूल की 9वीं कक्षा में 166 छात्र हैं। उसमें से ज्यादातर मुस्लिम बच्चे हैं जो कि संस्कृत पढ़ रहे हैं।
संकीर्ण विचारों की मानसिकता वालों को कौन समझाये कि भगवान श्रीकृष्ण पर दोहे लिखकर रसखान अमर हो गये। वे मुसलमान थे। कई मुस्लिम कवियों ने कृष्ण पर गीत लिखे हैं। पवित्र गंगा पर तो दर्जनों मुस्लिम कवियों ने लिखकर गंगा की आरती की है।

शमोएल अहमद उर्दू के मशहूर लेखक हैं लेकिन हिन्दी और संस्कृत से भी इनका गहरा रिश्ता है। उर्दू के विद्वान होने के साथ ही ज्योतिष विद्या पर अपनी गहरी पकड़ के लिए वे जाने जाते हैं।

विडम्बना है कि संस्कृत को धर्म की भाषा के तौर पर देखा गया। संस्कृत तो देव वाणी है और किसी भी वाणी में किसी धर्म विशेष का अधिकार नहीं होता है। यह सबकी है। अगर भारत के इतिहास को देखें तो आप पायेंगे कि बड़ी संख्या में मुस्लिम संस्कृत के विद्वान हुए हैं। मुसलमानों ने सैकड़ों साल पहले भी संस्कृत सीखी थी और संस्कृत के ग्रन्थों का अरबी, फारसी और उर्दू में अनुवाद किया था। अलीगढ़ विश्वविद्यालय, गोरखपुर समेत कई कॉलेज और विश्वविद्यालय में मुस्लिम शिक्षक संस्कृत और हिन्दी पढ़ा रहे हैं। ऐसे में किसी मुस्लिम शिक्षक के संस्कृत पढ़ाने पर आपत्ति जताना दिमागी दिवालियापन एवं मानसिक विकृति के अलावा कुछ नहीं है।
पहले ऐसे विवाद नहीं होते थे लेकिन हाल के वर्षों में जब समाज में नफरत बढ़ी है तो ऐसी बातें सामने आ रही हैं जो कि सभ्य समाज के लिए चिंताजनक है। जर्मनी के मैक्समूलर संस्कृत में पारंगत थे। उनके नाम पर कोलकाता में मैक्समूलर भवन है। जर्मनी की कई कॉलेजों में संस्कृत पढ़ाई जाती है। पर हमें उसमें कोई आपत्ति नहीं। सिर्फ मुसलमान प्रोफेसर से संस्कृत नहीं पढऩे की मानसिकता धार्मिक विद्वेष के अलावा कुछ नहीं है।

कोलकाता में टी टेस्टर सरकारी उपक्रम में वर्षों तक काम कर रिटायर हुए सैयद हसन पुंडरीक रिजवी रामचरित मानस के ज्ञाता थे। रामचरित मानस पर उनके भाषण को लोग मंत्रमुग्ध होकर सुनते थे।

अब जबकि अयोध्या में राम जन्मभूमि का मामला सुप्रीम कोर्ट ने सुलझा दिया है और अधिकांश मुस्लिम संगठनों ने फैसला स्वीकार कर लिया है, किसी मुस्लिम द्वारा संस्कृत पढ़ाये जाने का विरोध देश में नफरत फैलाने और लोगों को बांटने की साजिश ही हो सकती है।

संस्कृत में ज्ञान का विशाल भंडार है, ऐसे में इसे किसी धर्म विशेष की सीमाओं में बांधना सही नहीं होगा। यह सुखद संयोग है कि मुस्लिम भाइयों की संस्कृत में रुचि बढ़ी है। इससे भारतीय समाज में सांस्कृतिक एवं भाषायी एकता सु²ढ़ होगी और दो कौमों में भाईचारा बढ़ेगा। कई हिन्दू विद्वानों ने फारसी एवं अरबी का अध्ययन किया है। इस्लामिक रिसर्च के स्कॉलरों में मुसलमानों का एकाधिकार नहीं है। संस्कृति सिर्फ कर्मकांडियों की भाषा नहीं है। न ही वह ज्योतिषाचार्यों तक सीमित है। संस्कृत का भारतीय संस्कृति से पुराना नाता है। वह हिन्दी की जननी है, कई भारतीय भाषायें संस्कृत की गोद में पली-बढ़ी हैं। वह शोध की भाषा है।
कुछ लोग जो संस्कृत को हिन्दू धर्म का पर्याय मानते हैं उन्हें पता होना चाहिए कि जब नेपाल हिन्दू राष्ट्र बना था तो उस वक्त संस्कृत पर बैन यानि प्रतिबन्ध लगा दिया था। भारत में गंगा-जमुनी संस्कृति अविरल बह रही है और बहती रहनी चाहिए।

Comments

  1. आदरणीय नेवर जी विषय बस्तु को गलत मोड़ दिया गया है । किस बात का विरोध है यह जानना आवश्यक है। जबकि अधिकांश मीडिया चैनल जानबूझ कर सत्य नहीं बता रहे, काशी हिन्दू विश्व विद्यालय में संस्कृत के दी संकाय हैं एक संस्कृत सीखने का दूसरा कर्मकांड विज्ञान सीखने का जिसमे पुरोहित बनाना, हवन यज्ञ करने की विधि सीखाना यग्योपवित की विषय इत्यादि सीखत्या जाता है । अब जिस भवन में यह सीखाया जाता है उसके पट पर ही शीला लेख है उस पर महामना मालवीय ने लुख्वाय दिया था कि यह भवन मंदिर है और इसमें हिंदुओं का प्रवेश हीं होगा उसी प्रकार जो दिशा निर्देश की पुस्तिका है उसमें भी स्पष्ट है इस संकाय में केवल हिंदुओं की नियुक्ति होगी , क्योंकि कोई भी अन्य धर्म का व्यक्ति जब तक उस धर्म को आत्मसात नही करता उसे नहीं सीखा सकता। एक बार बुसध के पास एक स्त्री आयी उसने कहा मेरा बेटा गुड़ बहुत खाता है उसे छुड़वाईये बुद्ध ने सात दिन बाद आने को कहा फिर उस बच्चे से कहा गुड़ छोड़ दो तो उसकी मां ने कहा तयह वात आप सात दिन पहले भी कह सकते थे, बुद्ध ने कहा मैं भी खाता था जब मैने छोड़ दिया तो इसे कह रहा हूँ। मतलब सीखने वाले को उस विधा को आत्मसात करना पड़ता है उसे जनेऊ पहन यज्ञ करना सीखें तभी वह सच्चा गुरु होगा किताबी ज्ञान नहीं।
    यह दोष पूरी तरह उपकुलपति का है उनकव संस्कृत संकाय में नियुक्त करने चाहिए था और इस बेवजह हिन्दू मुस्लिम के विवाद को पनपने से बचना चाहिए था। आपसे भी निवेदन है जांचिए परखिये फिर आलेख लिखिए।

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    1. उस शिलालेख की कोई तस्वीर क्या यहाँ उपलब्ध करवाई जा सकती है आदरणीय चौधरी जी।

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  2. कटटरता वादी शक्तियां जब तक सत्ता में बनी रहेंगी, ऐसा ही होता रहेगा जो बनारस में हो रहा है। जहाँ बिस्मिल्ला खां की शहनाई के स्वर गूंजा करते थे, वहाँ ऐसी कट्टरता। भाषा, साहित्य और कलाएं किसी की निजी सम्पत्ति नहीं हैं। कोई भी इच्छुक जिज्ञासु इन्हें सीख, पढ़ और सिखा सकता है। आपने इस ज्वलंत मुद्दे पर टिप्पणी कर अपने संपादकीय दायित्व का निर्वाह किया है, इसके लिए आप धन्यवाद के पात्र हैं।

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