बच्चों की हर ख्वाइश पूरा करने का पाप
हमारे राज कुंअर राजा नहीं बन पाये
पिछले मंगलवार को तीन किशोरों की कार दुर्घटना में मृत्यु, महानगर में सालाना शोक का सिलसिला बन गया है। हमारे 16 से 20 साल के बच्चे हवा में उडऩा चाहते हैं, यह तो अच्छी बात है, पर वे सड़क पर उडऩे लगते हैं जिसके कारण एक-दो ऐसी दु:खद वारदात हो जाती है। 12 नवम्बर को भोर हल्की सर्दी पडऩे लगी थी। एक खुशनुमा मौसम इस उम्र के किशोरों को रोमांचित करता है। एक समय था जब मैं स्कूल में पढ़ता था। रविवार को भोर विक्टोरिया मैदान के आसपास क्रिकेट खेलने वृहत्तर बड़ाबाजार के हमउम्र लड़के अपने घरों से निकलते थे। गाड़ी तो किसी-किसी के पास होती थी। ज्यादातर ट्राम, बस या कुछ टैक्सी से जाया करते जिसका भाड़ा मिलाजुलाकर दिया जाता था। पहुँचने की जल्दी होती थी क्योंकि मैदान क्रिकेट खिलाडिय़ों से पट जाता था। कहीं देर हुई तो जगह नहीं मिलेगी। अब मैदान खाली रहता है। कोई क्रिकेट खेलने नहीं जाता। आईपीएल की मैच देखने ईडेन गार्डेन खचाखच भरा रहता है उसमें छात्रों एवं युवकों की संख्या अधिक रहती है। टीवी पर बिना पलक झपकाये आँख गड़ा कर क्रिकेट खेल देखते हैं पर खिलवाड़ों की संख्या बहुत कम हो गई है। खेलने का जुनून समाप्त-सा हो गया है। खेल देखना ही हमारी नियामत है। खेल के आनन्द से दूर हो चली है नयी पीढ़ी।
सड़क दुर्घटना आज के किशोरों (सब नहीं लेकिन बहुतेरे) की ऊर्जा हाई स्पीड के ड्राइव में खप जाती है। नशा करना तो उनकी उम्र का तकाजा बन गया है। फिर मस्ती में सुबह की रूमानी आबोहवा में वही मंगल के दिन अमंगल घट गया। साल्टलेक के सेक्टर-5 के पास न्यूटाऊन विश्व बांग्ला की सिल्कन सड़क पर फरारी वाली 100 किलोमीटर की स्पीड में तीन किशोर काल के मुंह में समा गये। मयंक झंवर, कौशल झंवर और निशीत जायसवाल क्रमश: 18, 17, 17 की उम्र के हवा के बेग से चलते मस्ती करते-करते हमेशा के लिए अपने परिवार को बिलखता छोड़ गये। जो गाड़ी चला रहा था वह बच गया पर तीन सवारों की दर्दनाक अकाल मृत्यु हो गई। चार साल पहले कोलकाता के पूर्व विधायक सोहराब साहब का बेटा सम्बिया भी सुबह पौ फटने से पहले किसी होटल से अपने साथियों के साथ निकला था। जनवरी का महीना था, रेड रोड पर गणतंत्र दिवस की पैरेड का अभ्यास चल रहा था। वही हाई स्पीड में गाड़ी को हवा में उड़ा कर ले गया तो एक सैनिक को ही कुचल डाला। सम्बिया अन्दर रहा, पूर्व विधायक ने एड़ी-चोटी का पसीना एक कर काफी समय बाद उसकी जमानत करवाई। लाखों रुपये खर्च हुये होंगे बेटे को छुड़वाने में। हर वर्ष एक-दो घटनायें ऐसी होती हैं जहां हमारे नौनिहाल सर्द हवाओं से उत्तेजित होकर अपनी कब्र खोदने का काम करते हैं। अब उन्हें कौन समझाये कि भई यह उम्र आँख खोल कर चलने की है, मां-बाप को अंगूठा दिखाकर शर्ट के ऊपर के बटन खोलकर जवानी का करिश्मा दिखाने की नहीं है। समझते भी हैं तो देर हो जाती है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चप्पे-चप्पे पर ''सेफ ड्राइव, सेव लाइफÓÓ के नारे लगा रखे हैं पर उन्हें वे नहीं पढ़ते जिनके लिये यह चेतावनी है।
नीशीत झंवर (फाईल फोटो)
कौशल झंवर (फाईल फोटो)
मयंक जायसवाल (फाईल फोटो)
हम परिवार में बच्चों की हर ख्वाइश पूरा करना चाहते हैं। अब बच्चे नहीं होते राजकुमार होते हैं। एक बच्चा या दो। उनकी हर ईच्छा बाप पूरी करना चाहता है। इसीलिये स्कूल में टीचर की बेंत तो दूर की बात डांटा हुआ भी हमें नागवार लगता है। लॉ माटर््स में प्रिन्सिपल ने बेंत लगा दी, बच्चे ने पांच दिन बाद अपनी जान खुद ही ले ली पर दोष बेचारे प्रिन्सिपल पर मढ़ दिया गया। प्रिन्सिपल चक्रवर्ती साहब को बड़ी हैरानी हुई। अर्सलान रेस्टोरेंट के मालिक के बेटे ने कार भिड़ा दी - बच्चा अभी भी जेल में है। फरारी बम्बई रोड पर पलट गई, उसका ड्राइवर मारा गया था। साईंस सिटी के सामने बेलगाम गाड़ी चलाने वाली मारवाड़ी लड़की ने राह चलते आदमी को उड़ा दिया और खुद जाकर किसी होटल में छिप गई। बहुत दिन नहीं हुए शेक्सपीयर थाने के सामने ही दो बंगलादेशी को गाड़ी ने टक्कर मारी ओर वे खुदा के प्यारे हो गये। आम तौर पर हमलोग सोचते हैं कि नशे में धुत होकर गाड़ी चलाने से ये दुर्घटनाएं होती हैं, पर ऊपर हमने कुछ दुर्घटनाओं का उल्लेख किया उनमें ड्राइवर सीट पर बैठेा सभी युवक नशे में नहीं थे। नशा सिर्फ अलकोहॉल में नहीं होता, बड़े घर के लाडले होने का भी होता है। परिवार में निरंकुश अपनी बात पर अड़े रह कर मनवाने का भी होता है। सुप्रसिद्ध साहित्यकार पं. रामचन्द्र शुक्ल ने एक निबन्ध में लिखा था - ''कुसंग का ज्वर बड़ा भयानक होता है।ÓÓ किसी फिल्मी गाने के बोल हैं - ''नशा शराब में होता तो नाचती बोतल।
हमारी नयी पीढ़ी चलती गाड़ी में मोबाइल पर बात करती है, स्टीयरिंग पर नियंत्रण पर उनको बड़ा भरोसा होता है। पर सौ सुनार की एक लुहार वाली चोट भारी पड़ जाती है। सेल्फी लेने की ऐसी लत है जिसमें किसी का भला नहीं होता। इस निरर्थक आनन्द के चक्कर में भी कई युवक-युवतियां काल की बलि चढ़ जाते हैं।
इस समस्या का एक ही हल है कि कभी-कभी अपने प्यारों पर सख्ती करें, वर्ना एक कहानी आपने भी सुनी होगी। एक लड़के को चोरी करने के कारण जेल हुई। जेल जाने के पहले उसने यह कहते हुए अपनी मां का कान मुंह से दबोच लिया कि बचपन में मुझे चोरी करने पर थप्पड़ लगा दिया होता तो आज जेल जाने से बच जाता। हमारे राज कुंअर जैसे बच्चे किस तरह अकाल मृत्यु की भेंट चढ़ जाते हैं, वे कभी राजा नहीं बन पाते।




अपने संस्मरण में भी आपने आपके मास्टर जी और तत्पश्यात पिताजी की डांट पर लिखा है।अगर सभी माता पिता आपके पिता की तरह व्यवहार करने लगे तो शायद ऐसी नोबत ही न आये।सारगर्भित आलेख हेतु बधाई।
ReplyDelete