खुशियां किसी के निर्देश की मुंहताज नहीं होती

खुशियां किसी के निर्देश की मुंहताज नहीं होती

दीपावली का पर्व है। इसे प्रकाश का पर्व भी कहा जाता है। दीपावली पर इस वैदिक प्रार्थना को याद किया जाता है - ''तमसो मा ज्योतिर्गमय। अंधकार से प्रकार की ओर चलो। इससे जुड़ी पंक्तियां हैं - अज्ञान से ज्ञान, असत्य से सत्य की ओर तथा जन्म से मृत्यु के चक्र से अमरत्व की ओर ले जाने की शक्ति मिले। ज्ञान आयोग बन रहे हैं, फिर भी अज्ञान का अंधेरा अधिक भयावह दिखने लगा है।



भारत का इतिहास, नि:सन्देह गौरवशाली रहा है । हमारी संस्कृति प्राचीनतम है और भारत भूमि ने दुनिया को कई धर्म दिये। भारत ही एक देश है जिसने हर धर्म, मजहब, जीवन शैली को लोगों को गले लगाया. भारत में सहिष्णुता रही है, वरना इतने सारे धर्मावलम्बी पीढिय़ों से यहां नहीं रह पाते।

भारत भूमि खुशहाल भी रही है क्योंकि संकीर्णता को हमारे यहां स्थान नहीं दिया गया, क्योंकि हिन्दू धर्म ने सभी धर्मों का सम्मान सिखाया, क्योंकि खेत-खलिहानों में मेहनतकश किसान या श्रमिक ने भी भजन को भोजन से अधिक महत्व दिया। किन्तु आज स्थिति बदल गई है। जाति, धर्म की भावना ने सिर उठाया है और हम बंटते जा रहे हैं। बंटने की प्रक्रिया जब शुरू होती है तो वह ऊपर से चलकर नीचे सतह तक पहुंच जाती है। पहले मंदिर-मस्जिद, गुरुद्वारे में भगवान को बांटा अब इन्सान भी बंट गया। आज स्थिति यह है कि हम पुन: विभाजन की कगार पर हैं। कुछ लोग हैं जो हर चुनाव के पहले मन्दिर के नाम पर राजनीति का बिगुल बजाते हैं। मन्दिर सौहाद्र्र से बन सकता था किन्तु हम इसके लिये भी युद्ध की तरह लड़े जा रहे हैं। जो बात बैठकर प्रेम-भाईचारे से करनी थी, उसे एक-दूसरे के विरुद्ध विष विमन करके भी हम सुलझा नहीं पाये। पंचायती से भी सुलह नहीं हो सका तो कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। देखिये क्या होता है। चाहे जिस पक्ष के साथ न्याय हो हमारे धार्मिक सौहाद्र्र को आंच नहीं आनी चाहिये। अगर फसाद हुआ तो मंदिर या मस्जिद लेकर भी क्या करेंगे। एक वर्ग है जिसने अपने पूजा या इबादत स्थल की रट लगा रखी है उसके लिए राष्ट्र या राष्ट्र के लोग गौण हैं।

आप देखेंगे दुनिया में जो भी राष्ट्र विभाजित हुये हैं, अब राजनीति से ऊपर उठकर एक-दूसरे के नजदीक आ रहे हैं। दोनों कोरिया लड़ते रहे, दोनों देशों में एकदम विपरीत शासन व्यवस्थायें हैं, आपसी लड़ाई में लाखों कोरियाई मरे पर अब दोनों देश में नजदीकी बढ़ी है। सुनने में आया है कि दोनों कोरिया एक टीम बनाकर ओलंपिक में खेलेगी। पूरब और पश्चिम जर्मनी एक हो चुके हैं, बर्लिन की दीवार अब मात्र पर्यटन स्थल है। एकीकरण के चलते पश्चिम जर्मनी की अर्थव्यवस्था एक बार बिगड़ गई थी। पर अब दोनों जर्मनी एक होकर दुनिया की आर्थिक शक्ति के रूप में उभर रहे हैं। दूसरी तरफ ईरान-इराक की लड़ाई में आठ लाख (सभी मुसलमान) मारे जा चुके हैं। यानि धर्म अगर एकता की आधारशिला होती तो ईरान-इराक में खून क्यों बहता। हमारे यहाँ भी महाभारत का युद्ध एक ही परिवार के लोगों में था। विनाश हुआ था। कौरवों का वंश समाप्त हो गया। पांडवों की जीत हुई किन्तु युधिष्ठिर संसार त्याग कर स्वर्गारोहण पर चले गये। भारत पाकिस्तान तीन बार युद्धरत हो चुके हैं पर पाकिस्तान में युद्धोन्माद कम नहीं हुआ है। दरअसल युद्ध या युद्ध जैसी स्थिति पाकिस्तान के लिये संजीवनी का काम करती है। हम एक विकासशील देश है। युद्ध या संघर्ष मुक्त स्थिति ही विकास का मार्ग प्रशस्त करती है। भारत एक महान देश है। हमारी सोच पाकिस्तान तक सीमित नहीं होनी चाहिए।

भारत ने खुशहाली के लिए हमेशा प्रयत्न किये हैं क्योंकि युद्ध को हम किसी समस्या का समाधान नहीं मानते। कश्मीर में 370 धारा के खत्म होने के ढाई महीने बाद भी हालात अभी तक सामान्य नहीं हुये हैं। यह हमारे लिए चिन्ता की बात है। सिर्फ धारा 370 खत्म करने से कश्मीर का भारत के साथ वास्तविक एकीकरण सोचना आत्मुग्धता होगी। कश्मीर के हमारे लोगों को समझना होगा। कश्मीर में राजा हिन्दू रहा और वहां की प्रजा 90 प्रतिशत मुसलमान, पर कभी कोई द्वंद्व नहीं हुआ। फिर अब क्यों?

भयमुक्त समाज के बिना खुशी का कभी अन्तर्मन से इजहार नहीं होता। भगवान राम के लौटने पर अयोध्यावासियों ने अन्तर्मन से खुशी का इजहार किया था। दीपक जलाये थे। आज हम अयोध्या में साढ़े पांच लाख दीपक जलाकर भी क्या वह खुशी ला पायेंगे। राम राज्य लाइये फिर देखिये खुशी का आलम। सिर्फ दीया जलाना ही दिवाली नहीं है, मन का अंधकार दूर होना चाहिए। एक छोटा सा उदाहरण अंत में देकर विराम लूंगा। दो दिन पूर्व जब हरियाणा के चुनावी नतीजे निकले तो भाजपा के कार्यकर्ताओं के चेहरों पर मायूसी स्वाभाविक थी। पार्टी कार्यालय में कार्यकर्ताओं को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह जी सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने प्रारम्भ भारत माता की जय का नारा लगा कर किया। कर्मियों में कोई जोश नहीं था। अमित जी ने कहा कि दो प्रान्तों में हमारी शानदार जीत हुई है आप में खुशी होनी चाहिए फिर नारा लगाया तो मन्द आवाज में लोगों ने उनके स्वर में स्वर मिलाया। यानि नेता के निर्देश पर खुशी नहीं मनती वह तो स्वत: स्फूर्त होती है। खुशी मनाने के लिए किसी के सुझाव या निर्देश की प्रतीक्षा नहीं की जाती। योगी जी पांच क्या दस लाख दीपक जला लें अयोध्यावासियों को राम राज्य नहीं लौटा सकते। करोड़ों रुपये खर्च से दिवाली नहीं मनती। राम के आने की आहट ही खुशी मनाने के लिए काफी है।

Comments

  1. समय संदर्भ में दीप पर्व के हवाले से बढ़िया संपादकीय। जब तक मन का अंधेरा न छंटे, धर्म जातिगत विद्वेष न मिटे, सामाजिक समरसता की भावना न हो,तब तक केवल करोड़ों रुपए खर्च कर लाखों दिये जलाने से क्या होगा? स्वतंत्र भारत में महात्मा गांधी के रामराज्य की कल्पना, वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में कभी पूरी होगी?
    दैहिक दैविक भौतिक तापा।
    रामराज्य काहू ना ब्यापा।।
    विश्वकवि तुलसीदास ने रामचरितमानस में यही तो कल्पना की थी। राम की बात करनेवाले काश!राम का सही अर्थ हृदयंगम कर पाते।

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