प्लास्टिक बैन, स्वच्छता अभियान की तरह
सरकारी तमाशा न बन जाये
वन टाइम यूज प्लास्टिक पर चारों तरफ से हमला बोल दिया गया है। स्वच्छता अभियान का शोर शराबा अभी शान्त नहीं हुआ कि ''से नो टू प्लास्टिक का अभियान शुरू हो गया है। इसने स्वच्छता अभियान को हाशिये पर डाल दिया। देशमें स्वच्छता का क्या आलम है, का अन्दाजा इससे लगाइये कि डेंगू के मच्छर सक्रिय हो गये हैं और प. बंगाल सहित कई राज्यों में मच्छरों द्वारा नरबलि लेने की कई वारदातें हो चुकी हैं। मलेरिया के मच्छर ने इन्सान के दिमाग में भी दस्तक लगा दीहै जिसे मेलेनटाइन मलेरिया या ब्रेन मलेरिया कहते हैं जिसमें मच्छर मस्तिष्क में असर दिखाकर जानलेवा आघात करता है। मलेरिया को हम विदा कर चुके थे पर उसका भारत में पुनरागमन हो गया है। कहीं-कहीं अफ्रीकी देशों में इसका अस्तित्व अभी भी है, भारत में लेकिन मलेरिया बा-मुलायजा अपना घर बना चुका है। पानी के जमाव और ठहराव से मलेरिया या डेंगू की उत्पत्ति होती है। दोनों प्रकार के मच्छर स्वच्छता के अभाव में अपना जानलेवा असर दिखाते हैं। दोनों ही मच्छरों के लिए भारत उर्वरक भूमि बन गई है। स्वच्छता अभियान का इन किलर पर कोई असर नहीं पड़ता दिखता। डेंगू का उद्गम तो स्वच्छ पानी में होता है। वह पाँव के निचले भाग में ही काटता है और पूरे शरीर को झकझोर देता है जबकि मलेरिया का मच्छर मादा होता है और गंदे पानी में अपना मेटर्निटी होम बना लेता है। हम आज तक इन दोनों मच्छरों से निजात नहीं पा सके। स्वच्छता अभियान के नाम पर संसद भवन के प्रांगण में कई नामधारी सांसदों ने जिनमें ड्रीम गर्ल हेमामालिनी भी शामिल थी ने झाड़ू लगायी। वहां किस गन्दगी की सफाई की यह तो ''सफाई करने वाले सेलीब्रिटीÓÓ ही बता सकते हैं क्योंकि यह पहेली ही है कि तीन सौ से अधिक सफाई कर्मचारियों की प्रतिदिन मशक्कत ने गन्दगी का कौन सा कतरा हमारे नेताओं के लिए छोड़ा होगा जिन पर उनकी झाड़ुओं ने काम किया।
अब वन टाइम प्लास्टिक के प्रकोप पर हमारी लड़ाई शुरू हो गई है। होनी भी चाहिये क्योंकि यह पतले प्लास्टिक के चादर जल निकासियों का मार्ग अवरुद्ध कर देते हैं जिससे जल जमाव का खतरा बढ़ जाता है। बाढ़ के पानी से भी बुरा असर जल जमाव का होता है। प्लास्टिक के इस्तेमाल के विरुद्ध जन जागरुकता नहीं के बराबर है। भारत में प्लास्टिक लॉबी भी सक्रिय है जिनको डर है कि ऐसा ही चलता रहा तो उनका कारोबार चौपट हो सकता है। सब्जी बाजार में कपड़े के थैले बांटे गये और वन टाइम यूज प्लास्टिक के विरुद्ध जन जागरण अभियान छेड़ा गया है। बहुत सेलोगों को पता नहीं कि वन टाइम यूज प्लास्टिक क्या बला है? पर वे मैदान में डट गये हैं। मैं एक कार्यक्रम में गया वहां अतिथियों का स्वागत ''फूलों को प्लास्टिक के आवरणÓÓ से किया गया। फूलों की खूबसूरती को प्लास्टिक से आच्छादित कर अतिथियों के हाथ में थमा दिया गया। पुष्प स्तावक को सुरोपा की तरह भेंट किया गया। प्लास्टिक बैन की भी मांग की गयी। पर जिन जगहों पर प्लास्टिक का विनाशकारी प्रयोग किया जाता है, वहां तक यह अभियान नहीं पहुँच पाया। उससे कोसों दूरहै। झुग्गी-झोपडिय़ों की छत पर पानी के रिसाव को रोकने के लिए प्लास्टिक की छत बनाई जाती है। आग लगती है तो प्लास्टिक की चादरों के समर्थन से आग शीघ्र ही फैल जाती है। हजारों बस्तीवासी बेघर हो जाते हैं या छोटी दुकानें आग में स्वाहा हो जाती है। उनकी बीमा भी नहीं होती। प्लास्टिक का इस्तेमाल वैसे वरदान भी है। सस्ता सुन्दर काम करता है। प्लास्टिक के थैलों में पाउच में सामान बांध दिये जाते हैं जिन्हें लाने-ले जाने में सुविधात होती है। सस्ता होने के कारण हर साधारण व्यक्ति इसका इस्तेमाल करता है। इसे खत्म करने के लिये सरकार को विकल्प देने होंगे। कोलकाता में देखते हैं प्लास्टिक विरोधी नारे लिखकर लोग खड़े हो जाते हैं। महिला संगठनों को यह काम बड़ा रास आ रहा है। कई संस्थाओं की महिला सदस्य रंग-बिरंगे परिधान पहन कर एक तख्ती हाथ में रखती हैं और अगले दिन उनकी फोटुएं छप जाती है। दुर्भाग्य से सबसे अधिक प्लास्टिक का इस्तेमाल भी हमारी गृहणियां ही करती हैं।
प्लास्टिक विरोधी अभियान भी सरकारी प्रहसन में कहीं ओझल नहीं हो जाये, इसका खतरा बना हुआ है। प्लास्टिक के खतरे के संदर्भ में मुझे एक वाकया याद आया जिसे मैं पाठकों के साथ बांटना चाहूंगा। एक बार हम रणथम्भौर (राजस्थान) के जंगल में शेर से मुलाकात के लिये घूम रहे थे। हमारी खुली जीप में एक स्थानीय लड़का भी था जिसकी उम्र 15-16 वर्ष की रही होगी। हमें कहा गया कि किसी भी क्षण शेर आपकी जीप के सामने आ सकता है। यह भी कहा गया कि ऐसे वक्त शान्त रहें - कोई गुफ्तगू न करें, वगैरह-वगैरह। लेकिन जीप से टहलकदमी के बीच वह लड़का अचानक चलती जीप से उतर गया और रास्ते के किनारे पड़े प्लास्टिक के टुकड़े को बटोर कर वापस जीप में चढ़ गया। मैं स्तब्ध रह गया कि उस लड़के ने अपनी जान की जोखम ली। लेकिन प्लास्टिक के उस टुकड़े को रास्ते से उठाने के पीछे उसकी भावना को मैं नमन करना चाहता हूँ। लड़के को आशंका थी कि प्लास्टिक को जानवर खा सकता है और उसकी मृत्यु भी हो सकती है। प्लास्टिक के विरुद्ध जागरुकता या जज्बा हम शीक्षित लोगों में कहा है? इसलिये मुझे आशंका है कि प्लास्टिक विरोधी अभियान कहीं स्वच्छता अभियान के नाटक की तरह अखबार में फोटुओं की ललक में खो न जाये।

वर्तमान में सरकारी योजनाएं इवेंट के रूप में जनता के सामने पेश की जाती है जिसको जीवन में उतारने की कोई ठोस योजना नही रहती है।
ReplyDeleteसही लिखा। बधाई और शुभकामनाएं
ReplyDelete