भौतिक युग में हस्तलिखित पत्रिक

भौतिक युग में हस्तलिखित पत्रिक
महिला रचनाकारों के जज्बे को सलाम


हिन्दी का प्राध्यापिका डा. सुकीर्ति गुप्ता ने नारी सशक्तिकरण के निमित्त एक संस्था प्रारम्भ की - साहित्यिकी। डॉ. सुकीर्ति गुप्ता हिन्दी लेखन में भी अग्रसर थी। उन्होंने स्त्री वेदना को व्यक्तिगत जीवन में भी झेला और समय के थपेड़ों ने सुकीर्ति जी के लेखन को भी पैनापन दिया। अपने कष्टों को तो अकेले झेला पर नारी विमर्श को अंजाम देकर महिला लेखकों की एक बटालियन तैयार कर गई। सुकीर्ति जी तो चली गई पर उनके हौसले को आज भी कुछ महिलाओं ने सम्हाल कर रखा है। विगत बीस वर्षों से साहित्यिकी नाम से हस्तलिखित पत्रिका प्रकाशित हो रही है। उसके हर अंक में बीस-पच्चीस महिलाओं की रचनाओं का समावेश होता है। इसमें साक्षात्कार से लेकर कविता-कहानी-निबन्ध, आकलन, विचार वीथी, पाठक प्रतिक्रिया आदि के स्तम्भ रहते हैं। सभी रचनायें स्तरीय हैं। साहित्यिकी पत्रिका की वर्तमान सम्पादक विद्या भंडारी ने बताया कि लेखिका को एक पृष्ठ में ही अपनी कृति को सीमित रखना होता है। हाथ में लिखी गई अपनी रचना को बड़े तरकीब से लिखना पड़ता है ताकि पढऩे में कोई असुविधा न हो। जिनकी लिखावट अच्छी न हो वह किसी औरों से भी लिखा सकती हैं। हर अंक में सामग्री लबालब रहती है। मुखपृष्ठ रंगीन मुद्रित होता है। अन्दर की सारी सामग्री हस्तलिखित।

आज के भौतिक और वैज्ञानिक युग में इस तरह की हस्तलिखित पत्रिका पर पहली प्रतिक्रिया यही होगी कि यह स्वान्त: सुखाय के अलावा कुछ नहीं है। पर बीस साल तक कोई समूह सिर्फ स्वान्त: सुखाय पर रचनात्मक कार्य नहीं कर सकता। कुछ इससे पागलपन भी कह सकते हैं। वैसे यह सही है कि बिना पागलपन के आप कोई उत्कृष्ट या अद्भुत काम नहीं कर सकते। लेकिन साथ ही इस हस्त लेखन में अपनी जड़ों से जुड़े रहने का एक जज्बा भी है। आज जब हम अपने अतीत के सृजन से दूर होता जा रहा है - अपनी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से आंख मूंद लेते हैं और आधुनिकता को ओढ़ लेते हैं तो हम कहीं के नहीं रहते। हर व्यक्ति इतिहास की उपज है। हम यह नहीं कह सकते कि अतीत में जो हुआ था, वही श्रेष्ठ है हमारी धरोहर है, उसी तरह आज के समय के हर कदम को गलत भी नहीं ठहरा सकते हैं। यह सही है कि कभी आप पत्र या भोज पत्र पर लिखा जाता था आज मुद्रण तकनीकी इतनी उन्नत है कि अतीत की बात सोचकर हम हंसते हैं। पर वे दस्तावेज आज भी हमारे भविष्य का लाइटहास की तरह मार्ग दर्शन करते हैं।

साहित्यिकी की हाल ही में एक गोष्ठी में जाने का सुअवसर मिला। वहां इन्हीं सब पर परिचर्चा थी। कार्यक्रम में श्रीमती विद्या भंडारी प्राध्यापक डा. वसुन्धरा मिश्रा, श्रीमती गीता दूबे, कवियत्री पूनम पाठक, वाणीश्री बाजोरिया, अमिता शाह, मंजूरानी गुप्ता, सुषमा हंस से मुलाकात हुई। श्रीमती कुसुम जैन का बड़ा अवदान है पर अब वे बंगलोर जा बसी हैं और वहीं से लिखती हैं। मैंने भी वक्तव्य रखा। उनके इस अनवरत प्रयास भी सराहना की, हालांकि उनकी शिकायत की मैंने उनकी हस्तलिखित पत्रिका की कमियों पर कुछ नहीं कहा। सच तो यह है कि मैं न कवि हूँ न आलोचक। साहित्यिकी में कमियां अवश्य रही होंगी क्योंकि प्रयास ''डेड लेनÓÓ नहीं होता, आगे बढऩे की असीम संभावना रहती हैं। पर मैं समझता हूँ यह अवसर था जब मैं उनके इस साहसिक कार्य पर अपनी भावनायें संप्रेषित करूं। मैंने वास्तव में महसूस किया कि आज के विकसित समाज में हस्तलिखित पत्र प्रकाशन की अनवरतता काबिले तारीफ है। आज टीवी की लोकप्रियता के इस युग में जहां लोग पढऩे मात्र से दूर होते जा रहे हैं, साहित्यिकी का प्रयास एक टापू की तरह है।

Comments

  1. ताजा टीवी और छपते छपते हिंदी दैनिक के डायरेक्टर और प्रधान संपादक विश्वंभर नेवर जी ने साहित्यिक संस्था और पत्रिका के विषय में अपने विचार व्यक्त किए ।डिजिटल तकनीकी युग में अपनी जड़ों की ओर रूझान इस पत्रिका की विशेषता है। आज लोग हाथ से लिखना भूल गए हैं जो आधुनिकता की चरम सीमा है। अपने शब्दों को अपने हाथों से लिखा देखना अच्छा लगता है। परंतु यह भी सच है कि समय के साथ बदलना भी पड़ता है नहीं तो पीछे चले जाएंगे। मैंने सन् 2000 से लगभग सात आठ साल तक इसका संपादन कार्य किया। डॉ किरण सिपानी, डॉ विजयलक्ष्मी मिश्रा ऐसे नाम हैं जिन्होंने साहित्यिक पत्रिका के लिए समर्पित होकर कार्य किया। डॉ सुकीर्ति गुप्ता के संरक्षण में सभी लोगों ने साहित्यिक योगदान दिया।डॉ रेवा जाजोदिया, कुसुम जैन, डॉ गीता दूबे आदि ने उसे आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बीस सालों से साहित्यिक ने कभी भी विराम नहीं लिया। गोष्ठियों का आयोजन जिसमें प्रसिद्ध महिला आलोचक डॉ निर्मला जैन, कवयित्री कात्यायनी,साहित्यकार, डॉ प्रभाकर श्रोत्रिय, आदि बहुत से महत्वपूर्ण लोगों को आमंत्रित किया गया। डॉ किरण सिपानी के अनवरत लगे रहने के कारण ही इस संस्था का रजिस्ट्रेशन करवाया गया। संस्था को आनलाइन किया गया है जो आज की आवश्यकता है। छपते छपते हिंदी दैनिक को बधाई और धन्यवाद ।

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  2. आप के अनोखे प्रयास को सलाम आपके कलम में वह ताकत है जो अंधकार को मिटाकर रोशनी फैला दें

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