हिन्दी दिवस पर विशेष : हिन्दी है, हम वतन हैं

हिन्दी दिवस पर विशेष
हिन्दी है, हम वतन हैं
हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है। संवैधानिक इतिहास के अनुसार 14 सितम्बर 1949 को हिन्दी को भारतीय संविधान के 8वें अनुच्छेद में राजभाषा यानि सेतुभाषा का दर्जा दिया गया। इस अनुच्छेद में शामिल भारत की 22 भाषाओं को राष्ट्रभाषा माना गया है। आम आदमी किन्तु आज भी हिन्दी को राष्ट्रभाषा मानता है। उनकी नजर में प्रान्तीय भाषाओं का दर्जा क्षेत्रीय है और केन्द्रीय भाषा है हिन्दी। संविधान में हिन्दी को राजभाषा बनाया गया यद्यपि अंग्रेजी को भी यह कह कर विशिष्ट स्थान मिला कि 20 वर्ष के अन्दर अंग्रेजी का स्थान हिन्दी ले लेगी। किन्तु अब तक अंग्रेजी सारी भारतीय भाषाओं पर सर्प कुण्डली मारकर बैठी हुई है।

हिन्दी को बढ़ावा देने के सरकारी प्रयास बहुत औपचारिक होते हैं। परिणामस्वरूप इन प्रयासों के बावजूद हिन्दी एक जगह जमी हुई है आगे की ओर टस से मस नहीं हुई है। बैंकों में सबसे अधिक गतिविधियां होती है। सरकारी उपक्रमों की बात करें तो बैंकों में अंग्रेजी का सबसे अधिक बोलबाला है। कोई विरला ही होगा जो हिन्दी में चेक पर हस्ताक्षर करता हो। बैंक में सारे काम अंग्रेजी में होते हैं। यही नहीं बैंकों में काम करने वाले अधिकारी से लेकर किरानी तक सभी की मानसिकता भी इंगलिश वाली है। मैं इसके कारणों में नहीं जाता।

हिन्दी के प्रचार-प्रसार का रास्ता कभी भी सरकारी प्रतिष्ठानों से नहीं गुजर सकता। इतिहास साक्षी है, हमेशा प्रशासन और जनता की भाषा अलग रही है। वैदिक काल में अगर देवभूमि पर देवी-देवता विचरण करते थे संस्कृत उनकी भाषा थी पर आम आदमी हिन्दी या अपनी गंवई भाषा ही बोलता होगा। मुगल काल में सरकारी भाषा पर्सियन थी और आम आदमी की भाषा हिन्दुस्तानी (हिन्दी-उर्दू मिश्रित)। आज आम आदमी हिन्दी या अन्य भारतीय भाषायें बोलता है पर सरकारी तंत्र पर अंग्रेजी ही सवार है।

हिन्दी समाचार पत्रों की संख्या और उनके पढऩे वालों की संख्या दोनों बढ़ रही है। पर समाज का ऊपर वाला तबका अंग्रेजी पत्रों को ही तरजीह देता है। इंडियन एयरलाइन्स (अब एयर इंडिया) में पहले सिर्फ  अंग्रेजी अखबार ही यात्रियों को उपलब्ध कराये जाते थे। दो साल की लम्बी लड़ाई के बाद मैंने हिन्दी और भारतीय भाषाओं के पत्रों का हवाई यात्रा के मुसाफिरों को मुहैय्या कराने का सिलसिला शुरू करवाया। अब हिन्दी एवं अन्य भाषाओं के अखबार एयरलाइन्स खरीदती तो है पर वे यात्रियों को उपलब्ध नहीं कराये जाते। एक बार मैंने स्वयं देखा कि उड़ान की पैन्ट्री में हिन्दी अखबार ज्यों के त्यों रखे हुए थे।

भारतीय भाषाओं जैसे बंगला, उडिय़ा, तेलगू, मलयालम, कन्नड़, गुजराती के अखबार खूब पढ़े जाते हैं और अपने-अपने प्रान्तों में भाषायी पत्रों का प्रसार सबसे अधिक है पर सरकारी मुलाजिमों पर असर अंग्रेजी अखबारों से ही डाला जा सकता है। आज स्थिति यह है कि हिन्दी व भाषायी पत्रों को पढऩे वालों की हैसियत साधारण लोगों की होती है जबकि अंग्रेजी के अखबार पढऩे वालों को समाज में बाबू या ज्ञानी-गुणी माना जाता है। यह मिथक है क्योंकि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की राजनीतिक सफलता के पीछे सबसे अहम् बात यह है कि वे अबाध प्रवाह से हिन्दी बोलते हैं एवं हिन्दी शब्दों का उनका चयन सटीक होता है। अटल जी की प्रतिष्ठा हिन्दी बोलने से बढ़ी। डा. मनमोहन सिंह विश्वस्तर के अर्थशास्त्री होने के बावजूद हिन्दी न बोलने के कारण उतने जनप्रिय नहीं हो पाये।

इधर दुर्भाग्य है कि हिन्दी बोलने वाले अंग्रेजी के शब्दों का धड़ल्ले से इस्तेमाल करते हैं। बहुत कम या नगण्य लोग हैं जो हिन्दी और सिर्फ हिन्दी ही बोलते हैं। अधिकांश महानुभाव जब बोलते हैं तो आधे से अधिक शब्द अंग्रेजी के होते हैं। उन्हें नहीं मालूम कि यह स्थिति उनके व्यक्तित्व का ह्रास करती है। भाषम या बोलचाल में यदाकदा अंग्रेजी के कुछ लोकप्रिय शब्द आ गये तो इसमें बुराई नहीं है किन्तु हर समय अंग्रेजी शब्द का व्यवहार व्यक्तित्व को सस्ता एवं रीढ़विहीन बना देता है। आजकल कुछ हिन्दी अखबार वाले अपने स्तम्भ एवं सुर्खियों में अंग्रेजी का शब्द भी देते हैं। जैसे ''हमारी सिटी, ''मार्केट न्यूज, ''संडे थॉट, ''सिटी ब्रीफ, ''ओवरसीज न्यूज। यही कारण है कि हिन्दी पाठक बंधे हुए नहीं रहते। हिन्दी के एक प्रमुख राष्ट्रीय समाचारपत्र ने तो बाकायदा घोषणा कर दी है कि वह इंगलिश की खबरों का हिन्दी रुपान्तर करते हैं। हालांकि यह भी कटु सत्य है कि अंग्रेजी अखबारों की प्रसार संख्या, टीवी न्यूज, पोर्टल, ऑनलाईन न्यूज आदि के कारण कम हो रही है और हिन्दी व भारतीय भाषाओं के अखबारों की संख्या बढ़ रही है। प्रसार संख्या बढऩे के बावजूद हिन्दी पाठकों का उनके अखबार से भावनात्मक सम्बन्ध नहीं बन पाता। इस मामले में भाषायी पत्र अधिक सौभाग्यशाली है। बंगला के दैनिक आनन्द बाजार पत्रिका में सम्पादक के नाम पत्र में प्रतिदिन पाठक बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। जबकि हिन्दी के पत्रों में पाठकों की भागीदारी नगण्य होती है। इस तरह की एक और बिमारी से हिन्दी भाषा के समर्थक ग्रसित हैं। कुछ कथित भाषा प्रेमी या पंडित शुद्ध हिन्दी की बात करते हैं। शुद्ध हिन्दी माने संस्कृत निष्ठ हिन्दी। जहां तक शुद्ध हिन्दी का प्रश्न है मुंशी प्रेमचन्द ने 1934 में मद्रास में दिये गये अपने भाषण में कहा था - ''शुद्ध हिन्दी तो निरर्थक शब्द है। जब भारत शुद्ध हिन्दू होता तो उसकी भाषा शुद्ध हिन्दी होती। जब तक यहां मुसलमान, ईसाई, पारसी, अफगानी सभी जातियां मौजूद हैं, हमारी भाषा भी व्यापक रहेगी।

हिन्दी को व्यापक बनाना ही उसको समृद्ध करना है। हिन्दी अधिक से अधिक बोली जाय, लिखी जाय उससे ही हमारी भाषा हृदय सम्राट बनेगी। हिन्दी दुनिया की सबसे श्रेष्ठ वैज्ञानिक भाषा है, सरल है और समृद्ध है। गैर हिन्दी भाषी जिसने भी सीखनी चाही हिन्दी उसीक जुबान पर चढ़ गई।
हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामना सहित।

सड़कों पर हिंदी, यह व्यंग्य भी है और सच्चाई भी




हमारी हिंदी को हमारे हिंदीभाषी प्रदेशों में कितना सम्मान दिया जाता है, इसे जानना हो तो आज हिंदी दिवस के मौके पर अपने शहर की सड़कों पर निकलकर वहां की दुकानों और प्रतिष्ठानों पर लगी नाम-पट्टिकाओं पर एक सरसरी नजऱ डाल आईए! आपको निन्यानबे प्रतिशत जगहों पर नाम जो लिखा हुआ मिलेगा, वह कुछ ऐसा होगा-बजाज इलेक्ट्रॉनिक्स, गोदरेज फर्नीचर्स, रजनी ब्यूटी पार्लर, रहमान हेयर कटिंग सैलून, संतोष जनरल स्टोर्स, गणेश लॉज, रमेश गेस्ट हाउस, ज्योति शू हाउस, अजय सर्विस स्टेशन, कृष्णा रेडीमेड, गोलचा गारमेंट्स, संजना मॉल, ज्योति हॉस्पिटल, कुशवाहा वेजिटेबल्स, आसिफ चिकन मटन शॉप, सुभाष इंडस्ट्रीज, गुप्ता न्यूज़ एजेंसी, जैन मेडिकल आदि-आदि। विशुद्ध हिंदी में लिखा हुआ आपको शायद एक ही दुकान का बोर्ड मिले-देशी दारु की दुकान या ठेका देशी शराब। इससे इतना तो साबित होता है कि सड़कों पर राष्ट्रभाषा हिंदी को सम्मान देने में देशी दारु के दुकानदारों की भूमिका सबसे बड़ी है। यह बात और है कि इन दुकानों से निकलने वाले ज्यादातर हिन्दीभाषी लोग भी फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने लगते हैं! हिंदी दिवस पर शुभकामनाएँ।

Comments

  1. बधाई और शुभकामनाएं ।हिंदी दिवस पर बधाई और शुभकामनाएं

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  2. बधाई और शुभकामनाएं...

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