शताब्दी वर्ष पर विशेष : सामाजिक क्रान्ति की लौ से निकली चिनगारी है मारवाड़ी बालिका विद्यालय

शताब्दी वर्ष पर विशेष
सामाजिक क्रान्ति की लौ से निकली चिनगारी है
मारवाड़ी बालिका विद्यालय

मारवाड़ी बालिका विद्यालय की स्थापना का यह शताब्दी वर्ष है। एक सौ वर्ष पूर्व लड़कियों का स्कूल में दाखिला पाप मानाजाता था। कथित अच्छे संस्कारों वाले परिवार अपनी बच्ची को पढऩे के लिए स्कूल नहीं भेजते थे। यानि किसी परिवार की लड़की पढ़े, शिक्षित हो यह गंवारा नहीं था। ऐसे गहन अंधकार में मारवाड़ी समाज के ही मनीषियों ने नारी शिक्षा का दीपक जलाया था। लेकिन इस छोटे से दीये को विरोध का झंझावात झेलना पड़ा। स्वनामधन्य सीताराम जी सेक्सरिया जो नारी शिक्षा के सूत्रधार थे, मारवाड़ी बालिका विद्यालय के संस्थापकों में से थे। इनके अभिन्न साथी थे भागीरथ जी कानोडिय़ा। और इसके पीछे प्रेरक पुरुष थे जाने-माने उद्योगपति घनश्याम दास जी बिड़ला। इन तीनों में एक बात समान थी कि ये गांधीवादी थे। महात्मा जी के सामाजिक सिपाही की तरह वे काम करते थे। सेक्सरिया जी ने अपनी एक पुस्तक में लिखा है कि मारवाड़ी बालिका विद्यालय खुलने के बाद सबसे विकट समस्या थी कि कोई लड़की पढऩे नहीं आती थी। मात्र दो लड़कियों को लेकर इस शिक्षण संस्था का श्रीगणेश हुआ था। सेक्सरिया जी आगे लिखते हैं कि जब वे मारवाड़ी घरों में नारी शिक्षा की भीख मांगने जाते थे यानि हाथ फैलाकर यह कहते थे कि अपनी बच्ची को पढऩे के लिए स्कूल भेजें तो लोग अपने घरों के दरवाजे बन्द कर लेते थे। कई परिवार वाले तो इनके साथ गाली गलौच करते। इन्हें कई स्थानों पर अपमान सहना पड़ा। कई जगहों से लांछित हुये। मारवाड़ी समाज के लोगों का कहना था कि उनकी बच्ची स्कूल नहीं जायेगी। स्कूल में पढऩे वाली लड़कियों के परिवारों को हेय ²ष्टि से देखा जाता था। सेक्सरिया जी, भागीरथ जी पर लोग ताना कसते थे कि उन्होंने अपनी लड़कियों को नर्क में धकेल दिया पर वे ऐसा गलत काम नहीं करेंगे। कुछ लोग संस्कारों की दुहाई देते कि अच्छे संस्कार वाले हैं इसलिये लड़कियों को घर से बाहर जाने की इजाजत नहीं देते। यह उस दौर की बात है जब समाज के ही एक प्रतिषिठ परिवार में साठ वर्ष के एक सज्जन ने चौदह वर्ष की लड़की से शादी रचाई। इसका विरोध तो हुआ किन्तु अंतोतगत्वा पैसा विरोध पर भारी पड़ा।
मारवाड़ी बालिका विद्यालय में सुबह प्रार्थना सभा।


ऐसे युग में समाज के कुछ लोगों ने अपमान झेलकर एवं हर तरह के विरोध के बावजूद नारी शिक्षा का अलख जलाये रखा। समय लगा पर लोगों ने यह महसूस करना शुरू किया कि लड़की को शिक्षित करना बहुत जरूरी है। डा. कुसुम खेमानी ने मारवाड़ी बालिका विद्यालय के ही एक कार्यक्रम में जहां मैं भी उनके साथ मंच पर था, बताया कि उनका किसी अंग्रेजी मीडियम की स्कूल में दाखिला हो चुका था पर भागीरथ जी ने उनके पिता पर दबाव डालकर कुसुम जी का मारवाड़ी बालिका विद्यालय में दाखिला कराया। कुसुम जी ने अपने भाषण में कहा कि उन्हें इस बात का गर्व है कि वे इस स्कूल में पढ़ी है।

मारवाड़ी बालिका विद्यालय एक शिक्षण संस्था ही नहीं मारवाड़ी समाज के इतिहास का वह अध्याय है जो स्वर्णाक्षरों में लिखा जायेगा। यह संस्था उस क्रान्तिकारी कदम का गवाह है जिसे समाज के दूरदर्शी महापुरुषों ने देश के विकास के साथ समाज को जोडऩे की ओर उठाया था। लगभग उसी समय मारवाड़ी रिलीफ सोसाइटी की स्थापना हुई। शिक्षा और स्वास्थ्य के प्रति इस समाज की ²ष्टि बहुत स्पष्ट और व्यापक थी। यही नहीं उसी कालखंड में विधवा विवाह वर्जन, मृतक भोज, पर्दा विवाह जैसी कुरीतियों के विरुद्ध समाज में आन्दोलन हुये थे। इन समाज सुधारकों की संख्या बहुत कम थी जबकि इनके विरोधी बड़ी तादाद में थे। इसलिये  कई जगह समाज सुधारकों को लांछित होना पड़ा। पर इससे उनके अभियान में कोई कमी नहीं आई। इनके पीछे घनश्याम दास जी बिड़ला, सूरजमल जी जालान जैसे लोगों का पूरा समर्थन था। इसी दौर में बिड़ला परिवार को समाज से बहिष्कृत भी होना पड़ा। पर घनश्याम दास जी एवं उनका परिवार अपने सिद्धान्त पर अडिग रहा। अन्त में जीत समाज सुधारकों की हुई। इस वारदात की पूरी जानकारी श्री बसन्त कुमार बिड़ला की पुस्तक स्वांत: सुखाय में है।

मारवाड़ी बालिका विद्यालय इसी सामाजिक क्रान्ति की लौ से निकली एक चिनगारी है। आज यहां एक हजार छात्रायें हैं। जगह की किल्लत से संख्या बढ़ाई नहीं जा सकती। स्कूल में पढऩे वाली बच्चियों सभी समाज और धर्म की हैं। ऐसा नहीं है कि आज सामाजिक प्रतिबद्धता की आवश्यकता नहीं रह गयी। आज भी समाज को विकसित करने हेतु मशाल जलाने की जरूरत है किन्तु समाज शिथिल हो गया है।  अब समाज की प्राथमिकताएं बदल गई हैं। परिणामस्वरूप पारिवारिक आयोजनों में पानी की तरह रुपया बहाया जा रहा है लेकिन नई स्कूलें नहीं खुल रही, अस्पताल या स्कूल चलाना आग के शोलों पर चलने के समान हो गया है। सामाजिक सुधारों को सांप सूंघ गया है। शिक्षण संस्थायें या नर्सिंग होम धड़ाधड़ खुल तो रहे हैं पर वे समाज के एक विशेष वर्ग के लिये ही है, सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय के लिये नहीं। फिर भी शिक्षा का जिस ढंग से प्रचार-प्रसार हो रहा है, भविष्य में समाज बदलेगा। सबसे अच्छी और संतोष की बात है कि समाज की नयी पीढ़ी खास कर लड़कियां परिवर्तन चाहती हैं और देर सबेर परिवर्तन होगा। मारवाड़ी बालिका विद्यालय जैसी संस्थाओं के पीछे समाज का बलिदान व्यर्थ नहीं जायेगा।

रात जितनी संगीन होती हैं, सुबह उतनी ही रंगीन होती है।

Comments