अपराध और राजनीति की दुरभि संधि
हमारे देश में अपराध और राजनीति का चोली दामन
का रिश्ता कई जघन्य कांडों में उजागर हुआ है। सन् 2012 में निर्भज्ञया कांड के
दौरान यह बात साफ होकर उभरी थी। राज्य सरकार, पुलिस, सीबीआई,
न्यायपालिका
यहां तक कि मीडिया तथा हमारी सिविल सोसाइटी सबने पीडि़ता को निराश किया है। उन्नाव
का विभत्स कांड ने फिर निर्भया कांड की याद ताजा कर दी। पिछले दो साल से भी ज्यादा
समय से उन्नाव बलात्कार कांड में जो हो रहा था, वह देश की तमाम
व्यवस्थाओं की पोल खोलता है। इस समय हालत यह है कि पुलिस, जांच एजेन्सी,
राजनीति
और न्याय व्यवस्था सभी कठघरे में खड़े हैं। एक लड़की को नौकरी देने के नाम पर
उन्नाव के विधायक कुलदीप सिंह सेंगर ने अपने यहां बुलाया था और फिर उसके साथ
सामूहिक बलात्कार हुआ। जब मामले ने तूल पकड़ा तो पीडि़ता के पिता को विधायक पर
हमला करने के आरोप में हिरासत में ले लिया गया, जहां उसकी
रहस्यमय ढंग से मौत हो गयी। इससे दु:खी होकर पीडि़ता ने मुख्यमंत्री आवास पर
आत्मदाह करने की कोशिश की। बाद में मामले की जांच के लिए एसआईटी को सौंप िदया गया।
विधायक कुलदीप सिंह सेंगर एवं नीचे
दुर्घटनाग्रस्त गाड़ी जिसमें पीडि़ता जा रही थी
उन्नाव कांड का नारी समाज द्वारा प्रतिवाद
पीडि़ता के परिवार वालों ने पुलिस के पास 35
शिकायतें दर्ज करायी, पर पुलिस ने कुछ नहीं किया। उसकी और उसके
परिवार की सुरक्षा नहीं कर सकी। उन्नाव के पुलिस अधीक्षक एम पी वर्मा ने कहा कि इन
शिकायतों के सबूत नहीं थे, इसलिये पुलिस ने सभी को रद्दी की टोकरी
में फेंक दिया। लेकिन संदिग्ध वाहन दुर्घटना ने साबित कर दिया कि शिकायतें निराधार
नहीं थी। पुलिस अधीक्षक को निलंबित नहीं किया गया, न ही उनका
तबादला किया गया। यूपी पुलिस के खिलाफ अभियोगों की सूची बहुत लंबी है। पुलिस
बलात्कारियों को बचाने में लगी है। बलात्कार की शिकार लड़की को बदनाम किया,
केस
वापस लेने के लिए दबाव डाला।
हंगामा होने पर सीबीआई जांच की घोषणा और विधायक
को जेल भेजने जैसे काम तो हो जाते हैं, लेकिन बलात्कार की पीडि़ता और उसके
परिवार की सुरक्षा नहीं की जाती। परिवार को न्याय मिलना तो दूर उनके लिए हर कदम पर
मुश्किलें बढ़ती हुई दिखाई देती है। सीबीआई मामले में चार्जशीट तो दायर करती है,
लेकिन
मामले की सुनवाई ही शुरू नहींहोती क्योंकि सीबीआई अदालत में कोई जज ही उपलब्ध नहीं
है। ऊपर से लड़की व उसके परिवार को जान से मारने की कोशिश की जाती है। उनकी कार को
तेज रफ्तार से आते एक ट्रक से टक्कर मारी जाती है, जिसकी नम्बर
प्लेट पुती हुई थी। नम्बर प्लेट का पुता होना मंशा को बताता है, हालांकि
पुलिस इसे सिर्फ दुर्घटना का मामला ही दर्ज करती है। इस समय जब पीडि़ता और उसके
वकील अस्पताल में जीवन-मृत्यु के बीच संघर्ष कर रहे हैं, तो पता लगता है
कि पीडि़ता की मां ने कुछ ही पहले सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश को पूरे
मामले पर एक चिट्ठी लिखी थी, जो उन तक पहुंचने ही नहीं दी गयी।
सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ सीबीआई को एक हफ्ते
के भीतर जांच रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया है, बल्कि सत्र
न्यायालय से कहा है कि वह हर रोज सुनवाई कर 45 दिनों के भीतर फैसला दे। देर से ही
सही, पीडि़ता के परिवार को सुरक्षा देने की व्यवस्था की है, बल्कि
मामला उत्तर प्रदेश की बजाय सुनवाई के लिए दिल्ली स्थानांतरित किया गया है। देर
आयद, दुरुस्त आयद। भले ही देर से जो व्यवस्था ली गयी, जरूरी
थी वर्ना न्याय व्यवस्था से लोगों का भरोसा उठ जाता।
यह पूरा मामला बताता है कि अगर सर्वोच्च स्तर
पर कोई दबाव न बने तो हमारी सारी व्यवस्थाएं रसूखदार लोगों की झोली में आ गिरती
हैं। इतना ही नहीं वे इसके लिए किसी भी पीडि़त के साथ अमानवीयता की कोई हद पार कर
सकती है। इन व्यवस्थाओं में अपराध तंत्र से गठजोड़ करने वाली राजनीति भी शामिल है
जिसके चलते पुलिस अपराधी विधायक की बजाय लड़की को ही हिरासत में बंद कर देती है।
फिर तमाम आरोप लगाकर उसके पिता को जेल भेज दिया जाता है जहां हिरासत में उसकी मौत
हो जाती है।
इस मामले में मीडिया और हमारा कथित सभ्य समाज
जिसे हम सिविल सोसाइटी भी कहते हैं, भी कम दोषी नहीं है। हम पीडि़ता के साथ
खड़े नहीं हो सके या तो हम बलात्कारी विधायक के साथ खड़े रहे और उसका बचाव करते
रहे या फिर हम पूरे कांड से निर्लिप्त होने का दावा करते हुये तटस्थ रहे। पीडि़ता
को राम भरोसे छोड़ दिया गया।
अपराध और राजनीति की यह दुरभि संधि से आम आदमी
की नजर में राजनीति और राजनीतिक नेता दोनों गिर चुके हैं। इसका समाधान है कि लोग
ऐसे गठबन्धनों का विरोध करें। उसकी भत्र्सना करें एवं उनके खिलाफ आवाज उठायें।
मीडिया की विशेष भूमिका है। तटस्थ रह कर तमाशा देखना एक अक्षम्य अपराध है।
समर शेष है, नहीं पाप का
भागी केवल व्याध
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा,
उनका
भी इतिहास


ऐसे छिछोरे नेताओं कोभूख प्यास से बेहाल,तड.पा-तड.पा कर,बेइज्जत कर पूरे शहर में सिर मूंड कर घूमाना चाहिए
ReplyDeleteईंट का जबाब पत्थर से
बहुत सुंदर ढंग से आपने राजनीति और पुलिस व्यवस्था की ओर आपने स्थितियों पर प्रकाश डाला। भयंकर घटनाएं घटने के बाद वाली जो कारवाई की जाती है वह उससे भी शर्मनाक है। पीडितों के लिए कोई जगह नहीं है इस व्यवस्था में। उन्हें मरते दम तक सिर्फ़ कागजों में दफना दिया जाता है। बलात्कार करने वाले बड़े नेता बरी कर दिए जाते हैं। कुछ सही कुछ गलत समाचार देकर आम जनता को मूर्त बनाया जाता है। सरकारी नियमों और संवि में बदलाव की आवश्यकता है। धन्यवाद। डॉ वसुंधरा मिश्र
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