विभाजन के अभिशाप से नहीं बचा बुद्धिजीवी भी
प्रतिवाद के जवाब में प्रतिघात
पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री
बुद्धदेव भट्टाचार्य ने ''आमरा-ओराÓÓ का सवाल उठाकर
विभाजन की राजनीति की थी जिसका परिणाम उन्हें भुगतना पड़ा। श्री भट्टाचार्य भूल
गये कि वे एक गणतांत्रिक देश के किसी प्रान्त के मुख्यमंत्रीहैं। साम्यवादी देशों
में जो निरंकुश शासन होता है, वह यहां नहीं है। प. बंगाल के 49
बुद्धिजीवियों जिनमें मशहूर सिने कलाकार, लेखक, साहित्यकार
शामिल हैं ने प्रधानमंत्री को विगत मंगलवार 23 जुलाई को एक पत्र लिखर मॉब लीचिंग
घटनाओं एवं धार्मिक पहचान के आधार पर नफरत की भावना से किये जाने वाले अपराध पर
चिन्ता जाहिर की। उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि जय श्रीराम के नारे के साथ
भीड़ हत्या (लिचिंग) की कई घटनायें शर्मनाक हैं। प्रधानमंत्री इस पत्र पर कोई
प्रतिक्रिया देते या इस पर कोई कार्रवाई करने की सोचते कि इसी बीच 26 जुलाई को
विभिन्न क्षेत्रों के 61 सेलीब्रिटी ने जवाबी पत्र जारी किया जिसमें 49
बुद्धिजीवियों द्वारा व्यक्त की गयी चिन्ताओं को चुनिंदा नाराजगी और झूठा विमर्श
बताया। गौरतलब है कि अदाकारा कंगना रनौत, गीतकार प्रसून जोशी, शास्त्रीय
नृत्यांगना सोनल मानसिंग, फिल्म निर्माता मधुर भंडारकर और विवेक
अग्निहोत्री तथा अन्य के हस्ताक्षर वाले बयान में कहा गया है कि 49 स्वयंभू
अभिभावकों एवं अंतरात्मा के रखवालों का 23 जुलाई का पत्र चुनिंदा चिंताएं जाहिर
करता है और एक स्पष्ट राजनीतिक पूर्वाग्रह एवं मंसूबा से ग्रसित है। इसके पहले 23
जुलाई वाले खत में जिनके हस्ताक्षर हैं उनमें उल्लेखनीय हैं फिल्म निर्माता मणि
रत्नम, अनुराग कश्यप, श्याम बेनेगल और अपर्णा सेन, शास्त्रीय
गायिका शुभा मुदग्ल तथा इतिहासकार रामचन्द्र गुहा शामिल हैं। दोनों ही तरफ देश की
नामी ग्रामी हस्तियां हैं। दोनों तरफ से चिन्ता व्यक्त की गयी है। लेकिन
दुर्भाग्यजनक है कि 61 सेलीब्रिटियों का मंतव्य प्रतिवाद के रूप में नहीं आकर
प्रतिघात के रूप में सामने आया। ऐसा लग रहा है कि 49 बुद्धिजीवियों द्वारा छेड़े
गये मुद्दों को हवा में उड़ाने के लिये 61 हस्तियों द्वारा वक्तव्य दिलाया गया है।
प्रतिवाद करने वाले बुद्धिजीवी
इतिहास गवाह है कि हमारे देश में लिंचिंग की
घटनायें पहले भी हुई है। श्रीमती इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद कई सिखों को भीड़
की हिंसा का सामना करना पड़ा क्योंकि इन्दिरा जी का हत्यारा एक सिख था। दिल्ली में
बड़ी संख्या में सिखों को मारा गया। कलकत्ता में भी कई सरदारों का जीना दुभर कर
दिया गया। बहुत ही शर्मनाक घटना हुई। कई नेता इस अपराध में शामिल थे जिनके खिलाफ
कार्रवाई की गयी। किसी सिख ने इन्दिरा जी की हत्या की तो उसके बदले सरदारों पर
प्राण घातक हमले हो एवं उन्हें छिपना पड़े यह पूरे देश के लिये कलंक है। गांधी जी
को नाथूराम गोडसे ने कत्ल किया तो क्या उसका बदला सभी हिन्दुओं से या मराठी समाज
के लोगों से लिया जाय। किसी को भारत माता की जय बोलने के लिये बाध्य करना, नहीं
बोलने पर उसकी जान पर बन आना कौन सा राष्ट्रवाद या देश भक्ति है। देश में गो रक्षा
के नाम पर कई मुसलमानों को भीड़ ने घसीटा, हिंसा हुई।
प्रधानमंत्री का समर्थन करने वाले बुद्धिजीवी
यह सही है कि मॉब लिचिंग एक अपराध है इसे
धार्मिक रंग नहीं दिया जा सकता है। लेकिन यह भी सही है कि ऐसी घटना धार्मिक उन्माद
के चलते होती है। सिखों के खिलाफ हो या मुसलमानों के खिलाफ दोनों ही राष्ट्रीय
कलंक है। सभी धर्म के लोगों ने एकजुट होकर देश की आजादी का संग्राम लड़ा था। लेकिन
हमारी इस एकता को धार्मिक उन्माद का ग्रहण लग गया। दूसरे पत्र में दावा किया गया
है कि देश के हालात सामान्य है और देश सही दिशा में बढ़ रहा है। पहले लिखी गई
चिट्ठी पर सवाल खड़ा करते हुये पूछा गया है कि आदिवासियों पर हमले होते हैं तो
बुद्धिजीवी मौन क्यों हैं जबकि यह सवाल तो सरकार से करना चाहिये। आदिवासियों पर या
दलितों पर हमले होते हैं तो इसकी जवाबदेही सरकार की है। कानून व्यवस्था कठघरे में
खड़ी होती है। समझ में नहीं आता कि कुछ बुद्धिजीवियों की दूसरे बुद्धिजीवियों से
रंजिश क्यों हैं। प्रधानमंत्री को पत्र लिखने का अधिकार सभी को है। तकलीफ इस बात
की है कि देश के हालात को अपनी-अपनी समझ से लिखा जाता तो बेहतर होता पर पहले वाले
ने ऐसा क्यों लिखा, इसी को मुद्दा बना दिया। शायद उनका मकसद अपनी
बात


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