संसद बनी धर्म संसद


संसद बनी धर्म संसद

लगे जय श्रीराम - अल्लाह हू अकबर के नारे

मुजफ्फरपुर (बिहार) में चमकी बुखार में मृत शिशुओं की संख्या 150 तक (कुछ अखबारों के अनुसार 173) पहुंच गयी थी, उसी दिन लोकसभा में नवनिर्वाचित सांसदों का शपथ समारोह चल रहा था। कुछ सांसदों ने शपथ पाठ के समय नारे लगाये। हैदराबाद से कई बार निर्वाचित बहुचर्चित नेता ओवैसी शपथ ग्रहण के लिए जब अपनी सीट से उठे, तो भाजपा के सदस्यों ने ''जय श्रीराम, ''वंदे मातरम् और ''भारत माता की जय के नारों से उन्हें चिढ़ाया। ये वही नारे हैं जिनसे मुस्लिम समुदाय को परहेज है। इसीलिए उन्हें उत्तेजित करने हेतु नारे लगाये गये। ओवैसी ने हंसते हुए हाथ से इशारा कर लगाओ-लगाओ कहा। शपथ लेने के बाद उन्होंने जय भीम, जय मीम और अल्लह-हू-अकबर का नारा लगाया।

लोकसभा में नारों का जो सिलसिला चला, बेलगाम चलता रहा। संसदीय कानून व अनुशासन की ''ऐसी की तैसी करते हुए जो परि²श्य उपस्थित हुआ, मानों यह संसद नहीं धर्म संसद है। धार्मिक नारों तक ही यह नौटंकी सीमित नहीं रही, कई नवनिर्वाचित सदस्यों ने अपने-अपने नेताओं की भी जय जयकार की। ये नारे देश प्रेम या धर्मानुरोग की नीयत से नहीं अपने विरोधियों को उकसाने की गरज से लगाये गये। बसपा के शैफीकुर रहमान बर्क का भी जय श्रीराम एवं वंदे मातरम् के नारों से स्वागत किया गया। उत्तर प्रदेश के सम्भल से निर्वाचित बर्क ने कहा ''संविधान जिन्दाबाद साथ यह भी कहा कि वंदे मातरम् इस्लाम के विरुद्ध है इसलिये हम यह नहीं कह सकते। इस पर भाजपा के सदस्यों ने और ऊंची आवाज में वन्दे मातरम् एवं जय श्रीराम के नारों से सदन को सिर पर उठा लिया। मोरादाबाद से चुने गये समाजवादी पार्टी के एस. टी. हसन ने शपथ के शेष में हिन्दुस्तान जिन्दावाद का नारा लगाकर स्थान ग्रहण किया। भाजपा के अजय कुमार ने नारा दिया भारत माता की जय तो राहुल गांधी ने उसके जवाब में बोले जय हिन्द। मानो इन दो नारों में भी कोई प्रतियोगिता हो।

प. बंगाल की सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस की काकोली घोष दस्तीदार जब शपथ लेने खड़ी हुई तो भाजपा सदस्यों ने जय श्रीराम का नारा लगाया। इसके जवाब में काकोली ने जय मां काली का उद्घोष किया और शपथ लेने के पश्चात् जय हिन्द और जय बंगला का नारा लगाते हुए अपना स्थान ग्रहण किया। उन्हीं की पार्टी के कल्याण बनर्जी ने चिल्लाकर कहा ''बंगलार जय, बंगालीर जय। नारों की बाजीगरी धार्मिक नारों तक ही सीमित नहीं रही। धर्म के बाद अपनी पार्टी के नेताओं के नाम के भी नारे उसी तरह लगे जैसे पार्टी की सभाओं में लगते हैं। भारतीय जनता पार्टी के रवीन्द्र कुमार ने जय योगी, जय मोदी का राग अलापा तो बसपा के दानिश अली फिर पीछे क्यों रहते। उन्होंने दोनों हाथ उठाकर गला फाड़कर कहा जय हिन्द, जय भीम, जय समाजवाद, जय किसान। गोरखपुर के भाजपा सांसद रविकिशन ने पार्वती पतये हरहर महादेव से संसद को गुंजायमान किया तो हेमामालिनी ने ''राधे-राधे और कृष्ण वंदे जगद्गुरुम् कहकर भगवान कृष्ण का स्मरण किया। प. बंगाल की तृणमूल सदस्य माला राय ने जय ममता का नारा दिया। प. बंगाल, बनगांव के नये सांसद शांतनु ठाकुर ने अंग्रेजी में जय मतुआ, जय श्रीराम कहकर अपने क्षेत्र की अहमियत दिखाई। आरामबाग संसदीय क्षेत्र से दुबारा चुनी गयी अपरुपा पोद्दार ने हिंदी में ममता बनर्जी जिंदाबाद का नारा बुलंद किया।
नारों की बारात के दुल्हों ने सत्रहवीं लोकसभा का इस तरह वरण किया। भारतीय लोकतंत्र का द्रोपदी की तरह चीर हरण हुआ और संविधान के रक्षक युधिष्ठिर-अर्जुन-भीम की तरह तमाशा देखते रहे। प्रोटेम स्पीकर वीरेन्द्र कुमार बेचारे असहाय थे - कई बार रोका। उन्होंने स्पष्ट किया कि शपथ के अलावा बाकी सभी नारे आदि रेकार्ड नहीं किये जायेंगे। फिर भी नारों का सिलसिला रुका नहीं।
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने एक बार कहा था कि भारतीय संसद स्वतंत्र भारत का आधुनिक मंदिर है। पर उन्होंने यह सोचा भी नहीं था कि इस मंदिर के विभिन्न देवी-देवताओं और ''देव तुल्यÓÓ नेताओं के नाम के नारों से आधुनिक मंदिरों में आरती की जायेगी। जय श्रीराम के उद्घोषकों को पता नहीं था कि जब अल्लाह हू अकबर इंशाह अल्लाह के नारे लगेंगे तो आप उन्हें रोक नहीं पायेंगे और एक-दूसरे को चिढ़ाने और उकसाने के लिये धर्म की पवित्रता और गरिमा के साथ खिलवाड़ किया जायेगा। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जब पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद संसद भवन गये तो वहां की मिट्टी को छूकर उन्होंने प्रणाम किया था। किन्तु उन्हीं के अनुयायी संसदीय परम्पराओं को ताक पर रख कर गत मंगलवार नारों की मृग मरीचिका के पीछे सांसद दौड़ते रहे और अपने-अपने अहम् की तुष्टी की।

भारतीय लोकतंत्र की मर्यादा का कितना हनन हुआ, पता नहीं पर इस तरह शपथ लेने वाले हमारे माननीय सांसद अपने मतदाताओं का कितना विश्वास रख पायेंगे, इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। बिहार में बच्चे मर रहे हैं, बंगाल में राजनीतिक प्रतिशोध की भावना से चुनाव के बाद एक दर्जन से अधिक मौतें हो चुकी हैं - इनसे जुड़े मुद्दों की आवाज क्या इन नारेबाजों के मुंह से निकलेगी? गौरतलब है कि हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था चिकित्सा के अंतरराष्ट्रीय मापदंड की कसौटी पर ''जीरो पर आउट हो गई। तीन हजार करोड़ रुपये की विश्व की सबसे ऊंची मूर्ति बनाने का हमारा गौरव उस वक्त शर्मसार हो गया जब गुजरात में ही प्रतिदिन अरबों का वारा-न्यारा करने वाली सूरत महानगरी के बहुमंजिली इमारत में आग लग गयी - ट्युटोरियल होम के कई छात्रों को चौथी मंजिल से कूद कर अपनी जान देनी पड़ी क्योंकि वहां की दमकल विभाग के पास चौथी मंजिल जितनी ऊंची सीढ़ी नहीं थी। प. बंगाल में सात दिन चिकित्सा-व्यवस्था ठप रही - रोगी कराहते रहे पर राजनीति टस से मस नहीं हुई।

शायद यही कारण है कि संसद के 67 प्रतिशत सदस्य दुबारा नहीं चुने जाते। एक बार चुनने के बाद जनता को हाथ मलना पड़ता है।

धर्म हमारा मार्गदर्शक होता है। हमारे देश में धर्म ने कभी राजनीति में हस्तक्षेप नहीं किया बल्कि राजनीति को दिशा देने का काम किया है। पर जहां धार्मिक नारों से राजनीति का संचालन होता हो वह राजनीति कितनी जनोन्मुखी होगी - इसका सहज में ही अनुमान लगाया जा सकता है। क्या विडम्बना है कि संसद हमारी धर्म संसद बन गयी है और हमारी धर्म संसद न्यायालय की चौखट का वर्षों से चक्कर लगा रही है-

ईश्वर अल्लाह तेरो नाम
सबको सम्मति दे भगवान।






लोकसभा में शपथ लेने के बाद सांसद असदुद्दीन ओवैसी और सांसद लॉकेट चटर्जी नारे लगाते।

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