बापू हम शर्मिंदा हैं
सत्राहवीं लोकसभा चुनाव के नतीजे कुछ आश्चर्यजनक थे। वैसे हर चुनाव में कुछ करिश्मे होते रहे हैं। भारतीय जनतंत्र की यह खूबी रही कि उसने कभी किसी सर्व शक्तिमान को चिरकाल के लिये स्वीकार नहीं किया। इंन्दिरा जी भी हारी, जनता पार्टी ने उत्तर भारत में कांग्रेस का सफाया कर दिया, पर ढाई वर्ष बाद फिर श्रीमती गांधी पूरे दमखम से वापस लौटी। 2004 में कांग्रेस की सरकार बनी, पर किसी ने सोचा नहीं था कि डा. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बनेंगे। 2009 में भी मनमोहन के नेतृव में यूपीए-2 सरकार बनी। फिर केन्द्रीय मंच पर गुजरात के नरेन्द्र मोदी का प्रादुर्भाव हुआ। मोदी जी ने कांग्रेस को बड़ा धक्का दिया और दिल्ली में आसन जमाया। नरेन्द्र भाई ने चुनाव अभियान में अपनी कई सारी उपलव्धियां बताई। पाकिस्तान के विरुद्ध सर्जिकल स्ट्राइक, आतंकवाद का खात्मा पर फोकस किया। आलोचना के बावजूद सेना की उपलब्धियों को भुनाया।
लेकिन जिस एजेंडा ने सुरंग के अन्दर जाकर विस्फोट किया, वह था हिन्दुत्व का - जय श्री राम का। देश स्पष्ट रूप से धर्म, सम्प्रदाय के नाम पर दो भागों में बंट गया। हिन्दू बैकलैश हुआ और उसका नतीजा सामने है। लेकिन इस परिदृश्य में जो सबसे चौंकाने वाली न भी हो तो कम से कम उल्लेखनीय बात यह है कि मालेगांव साम्प्रदायिक दंगों की आरोपी प्रज्ञा ठाकुर का जीतना। प्रज्ञा की भूमिका पर ही कुछ विरोधियों ने उसे हिन्दू आतंकवादी की संज्ञा दी। उसे ऐसा कहना भाजपा समर्थकों को बड़ा नागवार गुजरा। हिन्दू आतंकवादी कहने वालों को ''मुंहतोड़" जवाब देने के लिये साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री दिग्विजय सिंह के विरुद्ध भोपाल से प्रार्थी बना दिया गया। प्रज्ञा जी स्वाभाविक रूप से अति उत्साहित हुई और अपने स्वछंद एवं आक्रामक स्वभाव के मुताबिक उन्होंने मुक्त कंठ से अपने तरकश से दो रामबाण छोड़े। पहला था उनका यह बयान कि मुम्बई में आतंकी हमले में शहीद पुलिस अधिकारी हेमत करकरे ने मुझ पर बड़ा अत्याचार किया था परिणामस्वरूप मेरे श्राप के कारण उनके जीवन का अन्त हो गया। एक शहीद को अपमानित कर साधवी को काफी आलोचना का सामना करना पड़ा किन्तु भाजपा ने कहा कि प्रज्ञा ठाकुर भारत की पांच हजार साल से पुरानी संस्कृति की प्रतीक हैं एवं हिन्दू आतंकवाद कहने वालों का यही माकूल जवाब है। लेकिन प्रज्ञा जी की हुंकार वहीं नहीं थमी। उनके मन का पित्त उछाल मार रहा था और आखिर वह उनके ''मुखारबिन्द'' से उबल कर निकला. एक टीवी पत्रकार द्वारा महात्मा गांधी के हत्यारे के बारे में पूछे गये प्रश्न पर प्रज्ञा जी बोली - नाथूराम गोडसे देशभक्त थे, देशभक्त हैं और देशभक्त रहेंगे। उनके इस बयान पर भाजपा को भी शर्मिदा होना पड़ा। उनकी पार्टी ने पहले साध्वी को सुलगाया और जब शोले भड़क गये तो पार्टी अपना मुंह छिपाने में लग गयी। बिहार के मुख्यमंत्री जदयू के नेता श्री नीतीश कुमार ने भी माथा खुजलाया और क्षुध होकर उन्हें कहना पड़ा कि भाजपा प्रज्ञा ठाकुर को बाहर का रास्ता दिखाये। राजनीतिक माहौल बिगड़ता देख भाजपा ने दबाव बढ़ाया और साध्वी को क्षमा याचना के लिये मजबूर किया। उसने औपचारिक रूप से माफी मांगी। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा प्रज्ञा ठाकुर को मैं कभी भी मन से माफ नहीं कर सकता। प्रधानमंत्री जी के कड़े रुख के बाद भी भाजपा के कुछ नेता प्रज्ञा के बजाव में आगे आये। मध्य प्रदेश में पार्टी के प्रवक्ता श्री अनिल सौमित्र ने कहा कि महात्मा गांधी भारत के नहीं पाकिस्तान के राष्ट्रपिता थे। इसके साथ ही एक दो और नेताओं ने भोपाल से पार्टी की प्रार्थी की रक्षा की। गांधी के हत्यारे को राष्ट्रभक्त कहनेवाली उक्ति पर भाजपा के ही कुछ नेताओं ने प्रधानमंत्री को अंगूठा दिखा कर, अनुमोदन किया। हमारे न चाहते हुये भी कड़वी हकीकत यह है कि अब प्रज्ञा ठाकुर जी संसद में प्रधानमंत्री मोदी जी के साथ आसन जमायेंगी। जनता की चुनी हुई प्रतिनिधि के रूप में वे लोकसभा में दहाड़ेंगी। संसदीय लोकतंत्र की हिस्सा होंगी।
मेरा यह मानना है कि प्रज्ञा ठाकुर ने गोडसे के बारे में जो कुछ कहा वह उसके मन की बात थी। सिर्फ वह ही नहीं उसकी पार्टी के बहुतेरे लोग गोडसे के प्रशंसक हैं। प्रज्ञा को भी अपने मन की बात कहने का उतना ही अधिकार है जितना प्रधानमंत्री को। सोचनीय बात यह है कि हमारा राष्ट्रवाद किसकी झोली में है। चिन्ता की बात यह है कि हम देश को कहां ले जा रहे हैं। अच्छा है कि प्रज्ञा ने अपनी भावना प्रकट कर दी। कम से कम इस बात का पता तो चला कि हम कितने पानी में हैं। हमारे देश की आबोहवा अब कैसी है। प्रधानमंत्री जी मन से माफ न भी करें किन्तु मध्य प्रदेश की राजधानी के लोगों ने उन्हें अपना मत दिया है। गांधी के हत्यारे को महिमा मंडित कर प्रज्ञा ने देश के लोगों के एक वर्ग की भावना को शद दिये हैं। इस जमीनी हकीकत से रूबरू कराने के लिए प्रज्ञा जी को धन्यवाद। बापू हम शर्मिंदा हैं कि आपके भारत को हमने किस मुकाम पर पहुंचा दिया है।

करिश्मा मोदीजी का था। 1977 में इंदिरा गांधी तथा 2019 में मोदीजी के विरुद्ध छोड़कर, कोई कुछ भी बोला, सब अनसुना हो गया। इसे कहते है सुनामी।
ReplyDeleteभारत hindutav की तरफ चल रहा है,,, यह युग नये हिंदुस्तान का प्रगती का है, सुशील कुमार सराओगी, पत्रकार, दिल्ली,
ReplyDeleteThis is like only one side of the narration. We need to know why things have happened. Everyone knows that how Gandhi ji, was asking hindus not to retaliate after so much of killing and that must have also provoked him to do so. I am not concluding if it's correct or wrong as it will be everyone else's view.
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