मूर्तियां भी पार कराती हैं राजनीति की बेतरणी

मूर्तियां भी पार कराती हैं 
राजनीति की बेतरणी

मूर्ति बनवाने और तोडऩे दोनों की बड़ी दिलचस्प दास्तां है हमारे देश में। हिन्दू समाज मूर्ति की पूजा करते हैं हालांकि आर्य समाज के प्रवर्तक स्वामी दयानन्द सरस्वती ने मूर्ति पूजा का विरोध किया। आर्य समाज की स्थापना की। आर्य समाजी अपने को कट्टर हिन्दू मानते हैं। हिन्दू मूर्ति पूजक भी हैं एवं मूर्ति पूजा का विरोध भी हिन्दू समाज के एक वर्ग ने किया।

लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण के पहले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अमित शाह के रोड शो के दौरान कॉलेज स्ट्रीट स्थित विद्यासागर कॉलेज में लगी ईश्वरचन्द्र विद्यासागर की मूर्ति को भीड़ तन्त्र ने तोड़ डाला। मूर्ति तोडऩे पर राजनीति सुलगी। भाजपा ने आरोप लगाया कि दीदी (ममता बनर्जी) के समर्थकों ने सहानुभूति प्राप्त करने के उद्देश्य से मूर्ति तोड़ी है जबकि ममता ने कहा भाजपा बाहरी प्रान्तों से गुण्डे लेकर आये थे एवं उन्होंने घृणित कार्य किया। यह बंगाल के मनीषियों का घोर अपमान और संस्कृति को विध्वंस करने की चाल है। फिर दोनों पक्ष ने खूब आंसू बहाये और नयी मूर्ति बनाकर लगाने की घोषणा की। ममता ने कहा कि मूर्ति बनाने और पुनस्र्थापित करने के लिये हमें केन्द्र की मदद नहीं चाहिये। राज्य का शिक्षा विभाग नयी मूर्ति लगाने में सक्षम है। मुख्यमंत्री ने कहा कि सिर्फ मूर्ति ही नहीं हम विद्यासागर के नाम पर एक म्यूजियम भी बना देंगे। प्रधानमंत्री ने कहा कि हम पंचधातु की मूर्ति लगवा देंगे। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक विद्यासागर की मूर्ति को लेकर घमासान जारी है। दो सौ वर्ष पहले हुये ईश्वरचन्द्र विद्यासागर के महान अवदान को लगभग भुला दिया गया था लेकिन मूर्ति तोड़े जाने के पश्चात् फिर शिक्षा, विधवा विवाह, समाज सुधार के महान प्रणेता विद्यासागर जी सुर्खियों में आ गये। मूर्ति किसने तोड़ी एवं किसने यह जघन्य कार्य किया यह मामला हासिये पर चला गया। अब मुख्य मुद्दा यह है कि मूर्ति तोड़े जाने की घटना को कौन सी राजनीतिक पार्टी कितना भुनायेगी। लगभग सभी पार्टियों एवं दिग्गज नेताओं के बयान आ चुके हैं। ममता दीदी ने इसे बंगाली माटी और मानुष का मुद्दा बनाने की कोशिश की है, इसलिए ममता सहित पार्टी के कई नेताओं ने अपने ट्विटर हैंडल पर ईश्वरचन्द्र विद्यासागर की फोटो लगा ली है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि मूर्ति तोडऩे की यह घटना किसका बेड़ा पार लगायेगी? राजनीतिक धुरंधरों का मानना है कि मूर्तियां भले ही बेजान होती हैं लेकिन नेता हमेशा उसके जरिए अपनी राजनीति में जान डालने की कोशिश करते रहते हैं। यही काम ये दोनों पार्टियां भी कर रही है। जब चुनाव के नतीजे 23 मई को आयेंगे तब पता चलेगा कि अंतिम चरण में हुये  सीटों के चुनाव परिणाम किसके पक्ष में गये।
हमारे नेता मूर्तियों को तोडऩे और बनाने का कारोबार करते हैं। मार्च 2018 में त्रिपुरा राज्य में बामपंथियों के धराशायी होते ही भाजपा ने लेनिन की विशाल मूर्ति को भी धराशायी कर दिया गया। तर्क यह दिया गया किसी विदेशी नेता की मूर्ति क्यों रहेगी। इससे उनका राष्ट्रवाद आहत होता है। महात्मा गांधी की मूर्ति दुनिया के 23 देशों में लगी हुई है, फिर राष्ट्रवाद की कसौटी पर उन देशों में लोग गांधी जी की मूर्तियां क्यों रखेंगे? त्रिपुरा में सिर्फ गांधी जी की मूर्ति ही नहीं हटाई गई अपितु कवि सुकान्त की एक मूर्ति को भी तोड़ा गया क्योंकि वे माक्र्सवादी थे जिनकी अल्पायु में मृत्यु हो गयी थी किन्तु अपने संक्षिप्त जीवन में क्रान्तिकारी और मानववादी कविताएं लिखकर वह अमर हो गये।
लखनऊ में डा. बी आर अम्बेडकर की मूर्तियों को तोडऩे का तो अंतहीन सिलसिला जारी है। ये मूर्तियां शुरू से ही एक वर्ग के निशाने पर रही हैं। मूर्तियों पर राजस्व खर्च करने पर मायावती की कड़ी आलोचना करने वालों ने लेकिन गुजरात में सरदार सरोवर बांध के पास नर्मदा नदी पर सरदार बल्लभ भाई पटेल की विशालकाय 182 मीटर ऊंचाई की मूर्ति स्टैच्यू ऑफ युनिटी लगाई गयी जिस पर 2989 करोड़ रुपये खर्च हुये। इस पर राजस्व के दुरुपयोग की दुहाई नहीं दी गई। पश्चिम बंगाल में डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मूर्ति को क्षतिग्रस्त करके उस पर कालिख पोत दी गयी। तमिलनाडु के वेल्लूर जिले में पेरियार ई वी रामास्वामी की मूर्ति को क्षतिग्रस्त कर दिया था। बदायूं में तो एक मूर्ति तोड़ी गई, फिर नयी बनवाकर उस पर भगवा रंग चढ़ाया गया। जब बसपा कार्यकर्ताओं ने विरोध किया तो आनन-फानन में उसे नीले रंग में रंग दिया गया। मायावती ने तो जीते जी अपनी मूर्ति भी बनवा ली है। मुंबई, अरब सागर में करीब 3500 करोड़ की लागत से छत्रपति शिवाजी महाराज का स्मारक बनाया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने 2016 में मेमोरियल के लिए जल पूजन किया था। इसमें शिवाजी की 192 मीटर ऊंची प्रतिमा होगी जो स्टैच्यू ऑफ यूनिटी से भी बड़ी होगी।
महापुरुषों की मूर्तिों के सहारे राजनीति को आगे बढ़ाने का मंत्र कोई नया नहीं है। सन् 1979 में तत्कालीन उप प्रधानमंत्री श्री जगजीवन राम ने वाराणसी में पूर्व मुख्यमंत्री डा. संपूर्णानंद की मूर्ति का अनावरण किया था। बताते हैं कि अगले दिन ही एक जाति विशेष के लोगों ने गंगाजल से मूर्ति धोई। वजह जगजीवन बाबू की जाति थी। दूसरा उदाहरण भी बनारस का ही है। पिछले लोकसभा चुनाव यानि 2014 में नामांकन दाखिल करने से पहले पीएम नरेन्द्र मोदी ने मदन मोहन मालवीय की मूर्ति पर श्रद्धा के फूल चढ़ाये। तब मूर्ति को समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने गंगाजल से धोया। पिछले साल 14 अप्रैल को वडोदरा में केन्द्रीय मंत्री मेनका गांधी ने अम्बेडकर की मूर्ति पर श्रद्धांजलि अर्पित की। इसके बाद दलित वर्ग के लोगों ने मूर्ति को दूध और पानी से धोकर शुद्ध किया। जाहिर है न सिर्फ मूर्तियां बनाने बल्कि उसके सम्मान और अपमान तक से राजनीतिक लोग वोट पाने में कामयाब होते हैं। नेता हर स्थिति में मूर्तियों के सहारे अपनी राजनीति साध लेता है।
और अन्त में - कोलकाता के कुम्हारटोली के पास मेरा घर है जहां मैंने देवी-देवताओं को बनता हुआ देखा है। कुम्हार मूर्तियां बनाकर सड़क पर उन्हें धूप में सुखाने के लिये छोड़ देता है। हमारी देवियों की नि:वस्त्र मूर्तियां विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करती हैं। वे सड़क पर उनकी फोटो खींचते नजर आयेंगे। विदेशी सैलानियों द्वारा खींची गई इन निवस्त्र देवियों की तस्वीरें वे फिर अपने देश में बेचते हैं। एक-दो बार स्थानीय लोगों ने उन्हें फोटो लेने से रोका पर तस्वीर खींचने का सिलसिला जारी है। इसमें अब उन मूर्तियों के साथ सेल्फी लेने का नया आयाम जुड़ गया है।

Comments

  1. बहुत सुंदर विश्लेषण किया है। मूर्तियां टूटती और बनती आई हैं, इस बात का इतिहास गवाह रहा है। भारत में शासकों के साथ ही मूर्तियों की भी कहानी रही है। बधाई

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  2. I will appreciate your thinking. We should respect the idols because they represent many great people.Politics is in one place and idols are in another respectable place. We should not atleast do politics with idols. Acharya Jagadish Chandra Bose told that even non-living things have life in them.So we should respect his thinking and also think about it. We should not break idols but in place we should maintain them so that our next generation also understand the importance of idols. I will wait for your next wonderful writing.
    With regards,
    Tapashi Bose.

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