उनकी अदा सबसे जुदा
किसी के जन्मदिन में अपनी खुशी तलाशने वाले
अजीत बच्छावत
हिन्दी फिल्म का एक लोकप्रिय गीत - ''बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना, ऐसे मनमौजी को मुश्किल है समझाना"। राज कपूर की फिल्म ''जिस देश में गंगा बहती है" का यह गीत इसलिये लोग गुनगुनातेरहे हैं क्योंकि इससे आत्म सुख मिलता था। ऐसे लोग विरले ही होते हैं जिनको दूसरों की खुशी में सुख की अनुभूति होती है। फिर भी आज की आत्म केन्द्रित दुनिया में आज जिन्दगी की आपाधाती में ऐसे मनमोजी भी हैं जो बेगानी शादी में शहनाई बजाकर खुद आनन्द लेते हैं और सुख को बांटते हैं। ऐसे ही असाधारण गुणों को अपने में समेटे हुए एक साधारण सा व्यक्ति हैं अजीत बच्छावत।गत 8 मई को मेरा 76वां जन्म दिन था। उम्र के इस पड़ाव पर बहुत कम लोग हैं जो अपने जन्म दिन का इन्तजार करते हैं क्योंकि,
ऐ जिन्दगी तुझे कैसे प्यार करूं तू ही बता
तेरी हर सुबह मेरी उम्र कम कर देती है।
इसी निराशा वाली मानसिकता के बीच मेरे मोबाइल की घंटी बजती है। लाईन पर हैं अजीत बच्छावत। जन्म दिन पर दो छोटी कविताएं फिर अपने स्वरों में जन्म दिन के गीत। हर वर्ष जन्म दिन पर इनका फोन आता है और सारी बातें सुनकर उनके प्रति औपचारिक आभार जताते हुए मैं फोन छोड़ देता हूं। लेकिन इस बार पता नहीं क्यों मुझे उनके कॉल का इन्तजार था। बच्छावत जी को धन्यवाद की बजाय मैंने कहा कि मैं आपसे मिलना चाहता हूं। और उसी दिन शाम को मैंने अपने कार्यालय में उन्हें बुला लिया। अजीत के साथ वैसे मेरी यह दूसरी मुलाकात थी। पहली भेंट छ: वर्ष पहले हुई जब हिन्दी फिल्मों के सर्वश्रेष्ठ खलनायक प्राण का निधन हुआ। मैंने प्राण साहब पर ताजा टीवी में सागर मन्थन कार्यक्रम के अन्तर्गत एक परिचर्चा आयोजित की थी। किसी स्वजन ने बताया कि कोई अजीत बच्छावत ने प्राण के जीवन पर एक पुस्तक का अनुवाद किया है। प्राण पर हमने एक घंटे की परिचर्चा की - बच्छावत की प्राण से निकटता थी।
मैंने अजीत बच्छावत से अपने कार्यालय में बातचीत प्राण से ही शुरू की। उसने बताया कि इसी तरह जन्म दिन की लोगों को बधाइयों के दौरान प्राण से उनकी मुलाकात हुई। फिर प्राण से मिलने उनके घर गये। पत्र सुनील सिकन्द से भी परिचय हआ, वगैरह। प्राण की बायोग्राफी का वे हिन्दी में अनुवाद करना चाहते थे। पहले प्राण साहब ने इसकी इजाजत नहीं दी। उनके ज्येष्ठ भ्राता अरविन्द सिकन्द को समझा बुझा कर तैयार किया तो बात बनी।
अजीत बच्छावत के पास पांच हजार लोगों के फोन नम्बर हैं जिन्हें वह जन्म दिन और शादी की सालगिरह पर बधाई देता हैं। इस सूची में उद्योगपति, साहित्यकार, फिल्मी हस्तियां सभी शामिल हैं। अजीत से मैंने कहा कि लोगों से सम्पर्क साधने का यह एक अच्छा तरीका है। लेकिन यह सुनकर अजीत कुछ क्षुब्ध हुआ। मैंने कहा कि अक्सर लोग ऐसा करते हैं लेकिन तुम्हारी सनक का क्या राज है? बच्छावत कहते हैं - यार बड़ा मजा आता है। किसी की खुशी में शरीक होने का बड़ा आनन्द है। उसने हंसकर कहा - अपनी अदा सबसे जुदा।
हिन्दी फिल्मों में खलनायक के पर्यायवाची बने प्राण के साथ अजीत बच्छावत।
अजीत से मैंने कई बार यह जानने की कोशिश की कि आखिर फोन पर जन्म दिन या शादी की सालगिरह पर खुशी जाहिर कर उसे क्या हासिल होता है? उसका एक ही उत्तर था - बस पर-आनन्द में नैसर्गिक सुख मिलता है। उसकी सूची में कभी कल्याणजी आनन्द जी थे। कल्याण जी गुजर गये पर आनन्द जी के साथ फोन का सम्पर्क अब आत्मीयता में बदल गया। फनकार शैलेश लोढ़ा, आवाज के जादूगर अमीन सायानी, कवि साहित्यकार स्व. ओमप्रकाश आदित्य, सुरेन्द्र शर्मा, अशोक चक्रधर, अरुण जेमिनी आदि हैं। कविवर कन्हैयालाल सेठिया के वह उनकी अंतिम सांस तक स्नेहभाजन रहे। उद्योगपतियों में रूपा के प्रह्लाद जी अगरवाल व उनके दो भाई कुंजबिहारी जी, घनश्याम जी, लाओपाला के सुशील झुनझुनवाला, इमामी के सुशील गोयनका, सेंचुरी के सज्जन भजनका, सीईएससी के संजीव गोयनका, एक्सेल के अश्विन श्राफ सभी अजीत की आत्मीयता के कायल हैं। लेकिन इससे यह मत समझिये कि यह सख्श बड़े या नामधारी लोगों को ही अपने प्रेम से आशक्त करता है उसकी सूची में अधिकांश लोग वे हैं जिनको लोग नहीं जानते या कम जानते हैं पर बच्छावत जी का प्रेम-प्रसंग सबके लिये एक जैसा है। हां कुछ सेलीब्रेटी इनकी दीवानगी से इतने प्रभावित हैं कि बच्छावत जी के वे मेजवान बन गये हैं। संगीत निदेशक आनन्द जी मुम्बई में बच्छावत को अपने घर बुलाकर भोजन कराते हैं।
अमिताभ बच्चन के साथ अजीत।
मेरे एक सवाल के जवाब में बच्छावत ने बताया कि जिन पांच हजार लोगों को वे जन्म दिन और वैवाहिक जीवन की ढेर सारी बधाई देते हैं उनमें कई सौ लोग ऐसे भी हैं जिनको उन्होंने देखा भी नहीं। यानि ''बिन देखे और बिन पहचाने तुम पर हम कुर्बान।"
अजीत बच्छावत की बात ''अपनी अदा औरों से जुदा" ही उनका पाथेय है। लोगों को बिना किसी अहम् और स्वार्थ के खुशी देना आज की दुनिया में पागलपन कहा जा सकता है। पर खुशी की बात यह है कि जहां हम आत्म केन्द्रित होते जा रहे हैं नयी पीढ़ी स्मार्ट फोन पर सिकुड़ती जा रही है वहां उन्मुक्त और स्वच्छन्द व्यक्ति भी हैं जो खुशियां बांटते हैं। मैं उनके जज्बे को सलाम करता हूं। ऐसे लोग बहुत बड़े तो नहीं होते हैं पर हम इनको भूल नहीं पाते। वे हमेशा हमारे जहन में रहते हैं।
उदासियों की वजह तो बहुत है जिन्दगी में
पर बेवजह खुश रहने का मजा कुछ और है।


मैं मेरे परम आत्मिय भाईश्री बच्छावत जी की आत्मियता का कायल हूं।मैं स्वंय मेराजन्मदिवस भूल जाता हूं क्यों कि मैं स्वंय को इतना महत्वपूर्ण नहीं समझता हूं कि मेरे जन्मदिन का कोई अर्थ या महत्व हो।मैं एक अकिंचन व्यक्ति हूं और मेरे से जो कुछ बनपाता है या बनपाया है
ReplyDeleteकर रहा हूं, पर भाई अजीत जी मुझे वर्षों से सबसे पहले भावपूर्ण मधुर गीत सुनाकर महत्वपूर्ण बना देते हैं।हृदय की गहराई से लिख रहा हूं, कि मुझे संकोच भी होता है कि कोई कैसे
मेरे जैसे अकिंचन को निस्वार्थ वर्षों से अपने हार्दिक स्नेह से भिगो देता है।मैं ऐसे अनुज का हृदय से कृतज्ञ
हूं।विश्वास है इनका स्नेह यूं ही मेरे जीवन को सरस करता रहें।
सादर जयप्रकाश सेठिया
ReplyDeleteThis year I found myself waiting for his call on our marriage anniversary and he obliged. Thanks.
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