दलगत राजनीति की भेंट चढ़ गया राजस्थान परिषद्
मारवाड़ी समाज के बारे में शिकायत रही है कि वह
राजनीति से परहेज करता है। गणतांत्रिक व्यवस्था में यह माजरा अच्छा नहीं है
क्योंकि हर जाति को अपने राजनीतिक प्रतिनिधित्व करने का अधिकार है एवं इसका उसे
उपयोग करना चाहिये। अतीत में मारवाड़ी समाज के कई लोग प. बंगाल में सक्रिय राजनीति
में उतरे। विजय सिंह नाहर उप मुख्यमंत्री तक बने। ईश्वर दास जालान प. बंगाल
विधानसभा के अध्यक्ष हुये, मंत्री भी थे। रामकृष्ण सरावगी,
देवकीनन्दन
पोद्दार, राजेश खेतान, सत्यनारायण बजाज और सर्वशेष दिनेष बजाज
विधायक हुये। अभी स्व. जगमोहन डालमिया की पुत्री वैशाली विधायक है। उस समय
कांग्रेस काबोलबाला था, मारवाड़ी अधिकांश कांग्रेस या बाद में तृणमूल
कांग्रेस के समर्थक थे। पर समाजवादी पार्टी में भी कई मारवाड़ी भाई सक्रिय हुये।
विजय कुमार ढांढनिया, बालकृष्ण गुप्ता जैसे कई लोहिया भक्त थे।
सीपीएम जैसी पार्टी से भी मारवाडिय़ों को कोई परहेज नहीं था। अशोक जोशी, मुरलीधर
सोंथलिया, सरला माहेश्वरी (दो बार सांसद बनी), अरुण माहेश्वरी,
शिशिर
बाजोरिया (बाद में वे भाजपा में शामिल हुये), नारायण प्रसाद
जैन (बाद में तृणमूल का दामन थामा), आदि कई नाम है। भारतीय जनता पार्टी में
बड़ी संख्या में मारवाड़ी यहां तक कि समाज की कई महिलायें भी सक्रिय हुई। जुगल
किशोर जैथलिया, दुर्गा प्रसाद नाथानी, महावीर प्रसाद
नारसरिया, हरिप्रसाद जालुका, बजरंगलाल लाठ, महिलाओं में
मीनी पुरोहित को कलकत्ता की डिप्युटी मेयर बनने का सौभाग्य प्रा हुआ, सुनीता
झंवर, शांतिलाल जैन, श्याम सुंदर गोयनका, विजय
ओझा के अलावा और भी लम्बी सूची है भाजपा कार्यकर्ताओं की।
मैं व्यक्तिगत तौर पर इस बात का समर्थक हूं कि
मारवाड़ी समाज को अपने विश्वास और सिद्धान्तों के आधार पर पार्टीगत राजनीति में भी
सक्रिय होना चाहिये। इस समाज के कई लोगों ने सामाजिक संस्थाओं के साथ जातीय
संगठनों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। विजय बाबू जैन समाज में सक्रिय थे।
ईश्वरदास जी मारवाड़ी सम्मेलन के संस्थापकों में से थे। सत्यानारायण बजाज पश्चिम
बंगाल प्रादेशिक मारवाड़ी सम्मेलन के अध्यक्ष भी थे एवं कई वर्ष तक फारवर्ड ब्लाक
में रहे। जुगल किशोर जैथलिया राजस्थान परिषद् के मुख्य संरक्षक होने के साथ
माहेश्वरी समाज में भी सक्रिय थे। और भी कई उदाहरण हैं जहां राजनीति से ऊपर उठकर
सामाजिक एवं जातीय संगठनों के कार्यों को समाज के लोगों ने आगे बढ़ाया था। पर एक
काम उन्होंने कभी नहीं किया कि सामाजिक संस्थाओं और राजनीति का कभी घालमेल
(कोकटेल) नहीं होने दिया। मैं ऐसे कई लोगों के नाम बता सकता हूं जिन्होंने सामाजिक
मंच पर ऐसे लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया जो राजनीतिक जीवन में उनके
धुर विरोधी थे। ऐसा करने में उन्हें कोई असुविधा नहीं हुई, क्योंकि सामाजिक
जीवन का ध्येय सेवा एवं समर्पण होता है जबकि राजनीति देश को आगे ले जाने का एक
प्रभावशाली माध्यम है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये अलग-अलग विचारधारायें हैं,
चिन्तन
हैं। जिसकी जिसमें आस्था हो, वह उसके मंच से राजनीति करता है। दलगत
राजनीति करते हुये अपने सामाजिक एवं सार्वजनिक जीवन में उसका बिन्दु मात्र भी असर
नहीं होता।
हाल में राजस्थान परिषद ने अपने को किसी खास
राजनीतिक पार्टी के साथ जोड़कर इस चालीस वर्ष पुराने संगठन को दलगत राजनीति के
दलदल में इस हद तक धंसा दिया है कि वह इससे बाहर निकलना चाहें तो भी नहीं निकल
सकते। राजस्थान परिषद् के अधिकांश पदाधिकारी भारतीय जनता पार्टी के सक्रिय
कार्यकर्ता हैं। लेकिन पहले परिषद के कार्यक्रमों में सभी राजनीतिक दल के लोग आकर
भाग लेते थे। राजस्थान में वर्षों तक कांग्रेस की सरकार रही और जब भी कोई नेता या
मंत्री आता, परिषद् के कार्यक्रम में शरीक होता। सभी का
स्वागत था, सबकी बात सुनी जाती। जुगल किशोर जी जैथलिया या
महावीर प्रसाद जी नारसरिया ने मुझे भी निमंत्रित किया एवं मैंने परिषद के कई
कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। मैं ही नहीं बहुत से लोग जिनमें पत्रकार और राजनीतिक
कार्यकर्ता शामिल हैं, परिषद के छोटे-बड़े कार्यक्रमों में उपस्थिति
दर्ज करते। पर पता नहीं क्यों इन कुछसालों में इस सामाजिक संस्था को किसी खास
राजनीतिक पार्टी के खूंटे से बांध दिया गया। सोशल मीडिया कितना विनाशकारी काम करता
है, यह बताने की जरूरत नहीं। अफवाहों एवं मनगढ़ंत बातों का संवाहक बनता
जा रहा है सोशल मीडिया। इससे दूर रहने हेतु कई अभियान शुरू किये गये हैं। लेकिन
परिषद ने सोशल मीडिया के वाट्सअप में अपना ब्लॉग बाकर ऐसे संदेश देने लगे जो एक
राजनीतिक दल के प्रचार तंत्र का हिस्सा है। चुनाव नजदीक है। सभी पार्टियां चाहती
है, हमारे पक्ष में प्रचार और प्रोपेगण्डा हो। परिषद के कुछ अधिकारियों
ने इस वाट्सअप के माध्यम से उन मसालेदार खबरों को प्रचार-प्रसार शुरू किया,
जिसका
किसी सामाजिक संस्था के माध्यम से प्रसारण कतई उचित नहीं। मुझे उस ब्लॉग में शामिल
किया गया था। अत: मेरे मोबाइल पर भी इन मिर्च-मसालों की उपस्थिति दर्ज हुई। मैं उन
खबरों में कितनी सच्चाई है, इस तर्क में नहीं जाना चाहता। कई बार
मैंने इस वाट्सअप में चेतावनी दी कि राजस्थान परिषद के इस ब्लॉग से ये सारी बातें
प्रोपेगेट नहीं होनी चाहिये। नहीं माने तो फिर मैंने भी कुछ खबरें वाट्सअप पर भेजी
तों परिषद के इस ब्लॉग के सदस्यों ने मुझे ''तथाकथित पत्रकार कह
कर अपनी नाराजगी जाहिर की। हाल में फिर प्रधानमंत्री की ब्रिगेड रैली में आने का
आह्वान आदि पर भी मैंने परिषद् के वाट्सअप ग्रुप के दुरुपयोग के विरुद्ध प्रतिवाद
किया तो जवाब आया कि परिषद कॉमन पीपुल्स की आवाज है। मैंने जवाब भेजा कि राजस्थान
के ''कॉमन मैन ने तो कांग्रेस को वोट देकर जिताया है।
शायद इस बात का उनके पास कोई जवाब नहीं था। अत: मेरे विरुद्ध उन्होंने अपना अन्तिम
अस्त्र दागा और मुझे उस वाट्सअप ग्रप से बाहर निकाल दिया गया। अंतिम वाक्य मेरे
मोबाइल पर है-''4शह्व 2द्गह्म्द्ग ह्म्द्गद्वश1द्गस्र-बात खत्म
हुई। राजस्थान परिषद् के वाट्सअप आकाओं को शायद यह भी गंवारा नहीं उनके
प्रोपेगण्डा में कोई हस्तक्षेप करे या कोई दूसरा विचार भी प्रसारित हो। खैर
राजस्थान परिषद के पदाधिकारियों को सोचना है कि वे इस संस्था के साथ कितना न्याय
कर रहे हैं। मैंने राजस्थान परिषद के कई कार्यक्रमों में हिस्सा लिया है। राजस्थान
के कई मंत्रियों को चाहे वे जिस पार्टी के हों, को बुलाकर उनकी
बात सुनी जाती थी, अपनी कही जाती थी। ट्रॉफिक दोनों तरफ से चल रही
थी पर परिषद के वर्तमान आकाओं को यह गंवारा नहीं है। पर फिर इसे सामाजिक संस्था
कहलाने का अधिकार नहीं है, किसी राजनीतिक दल का भौंपू कह सकते
हैं। वैसे मेरे विचार से इस तरह के लोग भाजपा का भी कितना भला करेंगे, मुझे
संदेह है। भाजपा के मेरे एक मित्र पार्टी के प्रमुख नेताओं में से हैं, ने
बिना अपना नाम जाहिर किये जाने की शर्त पर कहा कि भाजपा जब से केन्द्र में सत्ता
में आई है, फूल पर भंवरे की तरह कुछ लोग पार्टी में मंडरा
रहे हैं। खुदा न खास्ता अगर हम सत्ता में नहीं रहे तो ये प्रोपगेन्डिस्ट पार्टी के
इर्द-गिर्द भी दिखाई नहीं देंगे।

Baat to 100% saho h ki samajik sanstha ko aapna astittwa bachaye rakhna chahiye fir v BJP jasi rashtra bhakt party ko support karna koi gunah nahi h .
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