राजस्थान दिवस (30 मार्च) के अवसर पर
राजस्थान प्रवासियों का दर्द
राजस्थान पूरे सत्तर वर्ष का हो गया। कुल 22 रियासतों को मिलाकर एक राज्य बनाया गया था। राजस्थान प्रांत के गठन की प्रक्रिया आठ साल चली (1948-1956) किन्तु राजे-रजवाड़ों का एकीकरण कर विधिवत रूप से 30 मार्च 1949 को भारत के तत्कालीन गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल ने इसकी विधिवत घोषणा की। इस प्रकार इस राजस्थान दिवस 30 मार्च 1949 को राजा-रजवाड़ों का यह देश पूरे 70 साल का हो गया। वैसे राजस्थान का इतिहास प्राचीन सिंधु घाटी की सभ्यता से जुड़ा हुआ बताया जाता है। क्षेत्र के हिसाब से राजस्थान भारत का सबसे बड़ा राज्य है। राजस्थान के चप्पे-चप्पे का इतिहास है। यहां सबसे अधिक लड़ाइयां लड़ी गई। कवि प्रदीप के गीत की ये पंक्तियां कुरबानी राजस्थान की बयां करती है-
ये है अपना राजपुताना, नाज इसे तलवारों पे
इसने अपना जीवन काटा, बरछी-तीर कटारों पे
ये प्रताप का वतन पला है आजादी के नारों पे
कूद पड़ी थी यहां हजारों पद्मिनियां अंगारों पे
यह तो हुई इतिहास की बात। राजस्थान का वर्तमान भी कम पराक्रम का नहीं है। गर्मी में इसकी तपशि 50-52 डिग्री तक पहुंच जाती है और यहां की कड़क सर्दी कंपकंपा देती है। राजस्थान का बनिया प्रांत से रोजगार की तलाश में भारत के कई हिस्सों में जाकर बस गया। आज तो विश्व का ऐसा शायद ही कोई देश हो जहां राजस्थान मूल का निवासी नहीं गया हो। राजस्थान प्रवासियों के बारे में यह सच गया है कि वे जहां भी गये, वहां की मिट्टी में रच बस गया। आज वियतनाम जैसे घोर बामपंथी देश में राजस्थान के लोगों ने चाय बगान खरीदे हैं, फैक्ट्रियां चला रहे हैं। किसी वाद या विचारधारा से परहेज नहीं है। बंगाल में कम्युनिस्ट राज के समय ज्योति बसु के इर्द-गिर्द कई राजस्थानियों ने अपना स्थान बनाया था। कांग्रेस के शासनकाल में तो कई मारवाड़ी मंत्री भी हुये, विधानसभा स्पीकर हुये यहां तक कि राजस्थानी व्यक्ति उप मुख्यमंत्री तक बन गया।
यह ऐतिहासिक चित्र 1949 की 30 मार्च को लिया हुआ है जब भारत के गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल ने राजस्थान के गठन की विधिवत घोषणा की थी। उनके बायीं ओर बैठे हैं जयपुर के महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय जिन्हें पुनर्गठित राजस्थान का प्रथम राज प्रमुख बनाया गया।वर्तमान मुख्यमंत्री ममता इस समाज से नजदीकियां बनाने में कोई कसर नहीं छोडऩा चाहती। आज राजस्थान प्रवासी फल फूल रहा है। अर्थोपार्जन के साथ-साथ सामाजिक, सांस्कृतिक, जनसेवा के कार्यों में भी समर्पित है राजस्थान के प्रवासी। दरअसल राजस्थानी समाज मूलत: धर्मभीरु है। उसके द्वारा जनसेवा धरमकरम का ही हिस्सा है। इसलिये कारखाना हो या अस्पताल, धर्मशाला हो या शिक्षा केन्द्र वहां राजस्थानी समाज द्वारा स्थापित भगवान की मूर्ति जरूर होता है। धर्म के बाद अगर किसी क्षेत्र में इस समाज ने कार्य किया है वह है शिक्षा का क्षेत्र। सुदूर स्थानों पर भी स्कूल या पाठशाला शुरू की। यह भी एक दिलचस्प बात है कि अनपढ़
पीढ़ी के राजस्थानियों ने उच्च शिक्षा के लिये कॉलेज एवं इंजीनियरिंग कॉलेज तक खोले। आज राजस्थान प्रवासियों की चौथी या पांचवीं पीढ़ी देश के शहरों में कार्यरत है। प्रवासी बन्धुओं का एक हिस्सा आज भी राजस्थान जाता है। ये मध्यम या निम्न मध्यम के लोग हैं पर उच्च मध्यम एवं धनी समाज के लोग का अब राजस्थान आवागमन बद सा हो गया है। उनकी नयी पीढ़ी राजस्थान जाने की बजाय बैंकाक, सिंगापुर, स्विट्जरलैंड या अमरीका जाना पसंद करती है। पांच-छ: दशक पहले राजस्थानी विवाह-शादियां अपने 'देस' जाकर करता था पर अब डेस्टिनेशन मैरेज के लिये थाईलैंड, या अपने ही देश में गोवा जाकर करता है। परिवर्तन
के युग में हनीमून की सूची में आस्ट्रेलिया, स्पेन, दुबई सबसे ऊपर है। राजस्थान प्रवासी इन वर्षों में अंतर्घात से पीडि़त हैं। छटपटाहट ही महसूस कर रहे हैं। परिवार टूट रहे हैं। संयुक्त परिवार खत्म हो गये, उससे अधिक पीड़ादायक है कि नयी पीढ़ी के नौजवान पैकेज वाली नौकरी के चक्कर में परदेस बसने लगे हैं। अपने परिवारों से दूर मिया- बीबी एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जिसकी ऊंचाइयों से उन्हें अपना परिवार और उसके लोग खासकर बुजुर्ग बौने लगने लगे हैं। वैज्ञानिक विकास से मोबाइल एवं वीडियो कॉल में बच्चों के चेहरे देख लेते हैं एवं बच्चे
अपने बुजुर्गों से बात कर पाते हैं। पर परिवार का नैसर्गिक सुख से वंचित हो रहे हैं। कुछ लड़के-लड़कियां घर एवं परिवार की उपेक्षा कर वैवाहिक बन्धन में बंध जाते हैं। यही नहीं इस मामले में वे अपने बुजुर्गों से विमर्श तक नहीं करते। आज का राजस्थानी अन्तर्जातीय विवाह को भी आत्मसात कर लेता है बशर्ते कि वह परिवार के टूटने का कारण नहीं बने।
नयी पीढ़ी बहुत ज्ञानी-गुणी है। टीवी, कम्प्यूटर आदि ने उसके जीवन को बड़े मोड़ दिये हैं। पर अपने माता-पिता एवं उनके समकक्ष लोगों की उपेक्षा का यह आलम है कि परिवार अन्दर से मेरुहीन बनता जा रहा है। यह दु:ख वह किसी से बांट नहीं पाता। दुनिया छोटी होती जा रही है लेकिन पिता-पुत्र के बीच की खाई चौड़ी हो रही है। बुजुर्ग मां-बाप को पुत्र वियोग का दंश झेलना पड़ रहा है। आज के युग की मजबूरियां बुजुर्गों के गले का फांस बन गई है।
राजस्थानी उद्यमी है, व्यापार के प्रति निष्ठा है, व्यापार कौशल के साथ-साथ पारिवारिक मूल्यों को समझता है। राजस्थानी समाज के प्रसार एवं पूंजी अर्जन में पारिवारिक इकाई का महत्वपूर्ण योगदान है। अत: परिवार
की नीचे की जमीन खिसकते देखकर आज का राजस्थान प्रवासी समाज मर्माहत है। यही पीड़ा है आज के मरुधर प्रवासी की जिसके चलते वह धन-धान्य से पूर्ण होते हुये भी अपने को अधूरा पाता है। यह संक्रमण काल है या विनाशकारी भविष्य का अंदेशा, पता नहीं पर इस मोर्चे पर राजस्थान का प्रवासी अपने को हारा हुआ व्यक्ति मानने लगा है। लेकिन इस सर्प बेल की जड़ उसी ने सींची थी, यह मानकर वह खुद को असहाय पाता है।

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