महिला उद्यमियों का बढ़ता हौसला

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महिला उद्यमियों का बढ़ता हौसला

देश में कहीं भी जाइये महिला उद्यमियों की एक नयी पौध से आप रूबरू हो सकते हैं। सामाजिक परिवर्तन का प्रमाण मांगिये तो महिला उद्यमियों का उदाहरण दिया जा सकता है। महिलाएं एक्सर फुल टाईम कारोबार नहीं कर पातीउन्हें पारिवारिक दायित्व भीसम्हालने पड़ते हैं। कई महिलाओं को उनके साहरिक कदम में परिवार का समर्थन मिलता है तो कुछ अघोषित या चुपचाप काम कर लेती हैं।
गया जो हमारे दिवंगत बुजुर्गों के पिंडदान की नगरी हैब्यूटी पार्लर्स खुले हैंआन्ध्र के वारंगल में चिट फंड्स की भरमार हैं। महाराष्ट्र के जलगांव में ऑनलाईन पोर्टलऔरंगाबाद में भाड़े पर ड्रेस का फलता-फूलता कारोबार। तमिलनाडु के कोयम्बटूर में केटरिंग सर्विसगुजरात के राजकोट में पाक शास्त्र यानि कूकिंग क्लास। हरियाणा के गुडग़ांव में कूड़े से ज्वैलरी बनानेराजमुन्दरी में स्किलिंग सेन्टरबीकानेर में होस्टलों का जाल। इन सब कारोबारों के क्या कॉमन हैंयह सभी महिलाओं द्वारा संचालित हो रहे हैं। इन महिला उद्यमियों में अधिकांश वे हैं जिन्होंने पहली बार कोई काम प्रारम्भ किया और उसी में रंगत आ गई।


कुछ काम ऐसे हैं जो महिलाओं की मानसिकता और उसके स्वभाव को रास आते हैं। कुछ शिक्षिकायें पार्ट टाईम पढ़ाती हैं और धीरे-धीरे उनका यह फुलटाईम कार्य में परिणत हो जाता है। कुछ मामले ऐसे हैं जिसकी शुरुआत शौकिया तौर पर होती है पर बाद में वह उनका व्यापार बन जाता है। गली मोहल्लों में ब्यूटी पार्लर खुल रहे हैं। घर के किसी खाली कमरे में बुटिक्स का काम किया जा रहा है। कैटरिंग के साथ खाना बनाकर घर-घर में उनको जाकर परोसने का रिवाज बढ़ रहा है। कई महिलाओं को अपने सामाजिक सरोकारों से पैसे कमाने में सफलता प्राप्त हो रही है। चिट फंड्स का कारोबार महिलाओं की किटी पार्टी से ऊपजता है। यही नहीं धीरे-धीरे अन्य सेवाओं या सामानों की बिक्री का चेन बन जाता है।
दिलचस्प बात यह है कि महिलाओं को स्व कारोबार कहीं नौकरी करने से ज्यादा लुभावना लगता है। इसमें काम के समय की पाबन्दी नहीं होती। अपना समय खुद ही नियंत्रित करते हैं। घर सेकाम करने की सुविधा मिल जाती है। नयी टेक्नोलॉजी से भी मदद मिलती है। ऑनलाईन बिजनेस स्थापितकरना भरसक आसान होता है। मोबाइल फोन तो ऐसे में ईश्वरीय वरदान सा लगता है। स्वतंत्र रूप से काम करना होता है कोई बॉस नहीं होता। किसी दूसरे के प्रति जवाबदेही नहीं होती। छोटे शहरों में महिलाएं इस तरह काम कर सम्मान भी प्राप्त करती हैं। एक उद्यमशील महिला की छवि उन्हें सम्मान दिलाती है।
इस सिलसिले में कई बार महिला उद्यमी अपने पति से दो कदम आगे निकल जाती हैं। उससे एक सामाजिक तनाव पैदा होता जाता हैयह दुर्भाग्यजनक है। कहीं-कहीं पुरुष अपने को ढ़ाल लेता है और पारिवारिक सामंजस्य अक्षुण्ण रहता है। ग्रामीण क्षेत्रों में जबर्दस्त सामंजस्य है वहां महिलाएं खेतीबारी में बढ़-चढ़कर अपनी भूमिका निभाती हैं। किन्तु शहरों या पढ़े-लिखे समाज में दिक्कतें आती हैं। यह एक विडम्बना है।
जब हम किसी महिला को अपनी गाड़ी चालते हुए देखते हैं तो एक प्रतिस्पर्धा या कसक पैदा होती है। स्कूटर चलाकर दफ्तर जाते हुए महिला कभी पुरुषों के मन में हिंसा भी पैदा करती हैं। यह सभी सामाजिक व्यवस्था की देन है। कुछ बड़े शहरों में महिला उद्यमियों की संख्या बढ़ रही है। नौकरी में भी महिलाएं पहले से कहीं अधिक जा रही है। वे इसके चलते प्रजनन से दूर हती हैं। उन्हें योजनाबद्ध तरीके से काम करना होता है। दफ्तरों में मातृ अवकाश एवं अन्य सुविधाओं के परिपेक्ष्य में कई कम्पनियां महिलाओं को काम पर रखना नहीं चाहती। पर उन्हें पता नहीं कि महिलाओं में निष्ठा से काम करने की क्षमता अधिक होती है। वे पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा जवाबदेह है।
बहरहाल यह शुभ समाचार है कि महिलाएं उद्यम में अपना हाथ फैला रही है। वे पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करने के उत्सुक हैं। समाज में सकारात्मक परिवर्तन के लिये यह शुभ संकेत है।

Comments

  1. महिला उद्योग बढ़ रहा है। आपने अच्छा और समसामयिक लेख लिखा। बधाई और शुभकामनाएं

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