पंचों से नहीं बनेगी बात
अयोध्या समाधान निकलेगा हिन्दू-मुस्लिम सौहाद्र्र से ही
अयोध्या में राम जन्मभूमि - बाबरी मस्जिद विवाद को स्थायी समाधान के लिए तीन मध्यस्थों को सौंप दिया। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस डी वाई चन्द्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजी की संविधान पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के ही सेवानिवृत्त जज एफएम कलीफुल्ला की अध्यक्षता में मध्यस्थों का तीन सदस्यीय पैनल नियुक्त किया। आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर और मद्रास हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता श्री राम पंचू पैनल के बाकी दो सदस्य होंगे। तीनों मध्यस्थ तमिलनाडु के हैं। मध्यस्थता की बैठकों की मीडिया रिपोर्टिंग पर रोक रहेगी, मध्यस्थों की संख्या बढ़ायी भी जा सकती है। घोषणा के साथ-साथ गैर सरकारी संगठन आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री ने मार्च 2018 में कई मौकों पर कहा था ''यदि राम मंदिर का मुद्दा हल नहीं हुआ तो भारत सीरिया बन जायेगा। मुसलमानों को अयोध्या पर अपना दावा छोड़ देना चाहिए। इसी बात को लेकर एआईएमआईएम के नेता हैदराबाद से सांसद ओवैसी ने श्री श्री को मध्यस्थ बनाने का विरोध दर्ज किया।
अयोध्या के मामले में समाधान की पहले भी कई बार कोशिशें हो चुकी है। तीन पूर्व प्रधानमंत्री इस अहम् समस्या को सुलझाने का प्रयास कर चुके हैं। श्री चन्द्रशेखर की कोशिश कारगर नहीं हुई, श्री नरसिम्हा राव ने दोनों पक्षों से बात की, लेकिन वह बेनतीजा रही। श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने वर्ष 2003 में भी कवायद की पर नाकाम रही।
आज जो देश में माहौल है, उसमें वर्तमान प्रस्ताव का कोई सुफल होगा, मुझे ऐसा प्रतीत नहीं होता। यह बात बिलकुल सही है कि हिन्दुओं के लिए यह आस्था का मामला है। मुसलमानों के लिए कानूनी हक या प्रतिष्ठा का मुद्दा है। मुसलमानों का पक्ष है कि बाबर बादशाह ने यहां बाबरी मस्जिद बनाई थी बाद में इसमें जबरन रामलला की मूर्ति बैठाई गई। सुप्रीम कोर्ट में जो मामला चल रहा है वह ''लैंड डिस्प्यूट'' का मामला है। आस्था का नहीं है। इस स्थिति में इसका हल हिन्दू-मुस्लिम प्रतिनिधि बैठकर ही कर सकते हैं। मुसलमान भाइयों को यह समझाने की आवश्यकता है कि भले ही जमीन पर (मान लीजिए) आपका कानूनी हक हो किन्तु हमारे ईष्ट राम की यह जन्मस्थली है इसलिए इसे भावनात्मक तौर पर वे हमें दे दें। इस तर्क पर ही हिन्दू समाज यहां मन्दिर बना सकता है। जमीन के झगड़े का निपटारा कानूनी तौर पर होगा जो किसी के पक्ष में जा सकता है। अगर इस आधार पर मुसलमानों को ही जमीन मिल जाये तो एक मस्जिद और बन जायेगी और देश की हजारों मस्जिदों में सुमार हो जायेगी। इससे उनको क्या हासिल होगा?
आज देश में जो विषाक्त वातावरण है उसमें इस समस्या का समाधान नहीं निकल सकता। हिन्दुओं में भी कुछ कट्टरपंथी इसका समाधान नहीं होने देंगे क्योंकि इससे उनकी दुकानदारी एवं हमेशा गर्म रखने वाला मुद्दा उनके हाथ से निकल जायेगा। किसी कश्मीरी की लखनऊ में पिटाई हुई। गोमांस की आशंका में किसी को घसीट कर मार डाला गया। हर मुसलमान को हम पाकिस्तान का हमदर्द एवं देशद्रोही समझने की भूल कर बैठते हैं। संशय, भय का वातावरण इस मुद्दे को कभी सुलझने नहीं देगा। हिन्दू-मुसलमान भाइयों में सौहाद्र्र का वातावरण हो तो मुसलमानों के साथ प्रेम से इस मुद्दे की पेचीदगी को सुलझाया जा सकता है। एक मुस्लिम नेता ने कहा बात राम मन्दिर या अयोध्या तक की होती तो मान लीजिये हम विचार कर इसे सुलझाने की कोशिश करें। किन्तु फिर नारा लगा अयोध्या तो एक झांकी है, काशी-मथुरा बाकी है। इसका अर्थ हुआ कि अयोध्या या राम मन्दिर तक ही मामला नहीं है फिर काशी-मथुरा की बात भी उठेगी। इसके मद्देनजर कोई भी उदारवादी मुस्लिम तैयार नहीं होगा। इन सब परिस्थितियों के कारण मुसलमानों का नेतृत्व भी कट्टरपंथियों के हाथ में चला गया है। वहां ओवैसी, आजम खान, वारिस पठान जैसे नेता की चलती है। अन्य कट्टरपंथी मौलवी इन्हीं सबका हवाला देकर अपने लोगों को भड़काते रहते हैं।
मैं अयोध्या के ''राम मन्दिर'' में विध्वंस के पहले गया था। उस वक्त श्री कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे। उन्होंने ही कुछ पत्रकारों के फैजाबाद जहां राम मन्दिर या बाबरी मस्जिद स्थित है, भेजने की व्यवस्था की थी। वहां जो बच्चे जनेऊ बेच रहे थे जिनमें अधिकांश मुस्लिम थे। फैजाबाद में आज तक हिन्दू-मुस्लिम संघर्ष नहीं हुआ। वहां के हिन्दू-मुसलमानों में कोई वैमनस्य नहीं रहा। यही नहीं हमारे देश में ऐसे कई मन्दिर हैं जिनकी देखरेख पीढिय़ों से कोई मुस्लिम परिवार कर रहा है। हमने इस तरह का समाचार कई बार अखबारों में पढ़ा है। मुगलों के काल में अकबर जैसे उदारवादी और औरंगजेब जैसे कट्टरपंथी बादशाह हुए पर हिन्दू-मुस्लिम सौहाद्र्र बना रहा। अंग्रेजी शासन ने भारत में राज करने के लिये बाटों और शासन करो की नीति बनाई और उसका पोषण किया। हम उसी के शिकार हो गये।
खैर अयोध्या का मसला जमीन की मलकियत के आधार पर नहीं भावनाओं और आस्था के आधार पर ही किया जा सकता है। मुसलमानों को समझाया भी जा सकता है। कई उदारवादी मुस्लिम विशिष्ट यह काम कर सकते थे किन्तु वातावरण में इतना जहर घोल दिया गया है कि आज हिन्दू-मुसलमानों के बीच तनावपूर्ण स्थिति पैदा कर दी गई है। दोनों कौम डरी हुई है, सहमी हुई है। डर और सहम कर कोई समाधान नहीं हो सकता। सौहाद्र्रपूर्ण वातावरण में ही अयोध्या का हल खोजा जा सकता है।


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