बीकानेर में शादियों का कार्निवल

बीकानेर में शादियों का कार्निवल

ओलंपिक सावे में 130 जोड़े परिणय सूत्र में बंधे बीकानेर अपने मस्त मौला लोगों के लिए जाना जाता है। महाराज गंगा सिंह का यह कोयल स्टेट भांग की चंग और पान की खुशबू को फैलाता हुआ किसी भी पर्यटक को आकर्षित कर सकता है। मैं बीकानेर पहले भी आया हूं पर इस बार की यात्रा कुछ खास बन गई। गया तो मैं भी किसी वैवाहिक कार्यक्रम में था पर बहुत से संस्मरण अपने पाठकों के साथ बांटने का आनंद लेना चाहता हूँ। लक्ष्मी निवास पैलेस में दो दिन था। गंगा सिंह जी महाराज का यह राजमहल कहते हैं दुनिया की दूसरे नम्बर की सबसे बड़ी सम्पत्ति है। पहली लंदन का रॉयल पैलेस बर्मिंघम पैलेस है। गंगा सिंह जी का लक्ष्मी निवास महल के लालगढ़ पैलेस कितने किलोमीटर में फैला हुआ है मुझे नहीं मालूम, किन्तु महल के पीछे की जगह पर कभी महाराजा का निजी प्लेन लैंड करता था। महल जो अब होटल बन चुका है में कई तस्वीरें है जो अपने वक्त के कई ऐतिहासिक घटनाओं को समेटे हुए है।

लक्ष्मी निवास पैलेस से जब मैं कोलकाता के पुराने मित्र कवि श्री हर्ष के स्वास्थ्य की जानकारी लेने गया तो बीकानेर शहर में दोपहर बारात निकल रही थी। आगे बारात और पीछे मेरी गाड़ी। यहां जब बारात निकलती है तो आसपास की महिलायें और बच्चे दुल्हा देखने घर से बाहर निकल जाते हैं। महिलाओं में घूंघट आज भी है। घूंघट से दुल्हा देखने का एक अजब तरीका है जो राजस्थानी महिलाएं ही जानती हैं। घूंघट के बीच दो अंगुलियों से वे एक जगह बना लेती है जहां से दुल्हे और बारातियों को सीधा देख पाती है, मानो कोई अ²श्य दूरवीन लगा ली हो।


पता चला कि बीकानेर में आज ओलंपिक सावा है। इसे ओलंपिक के साथ क्यों जोड़ा इसका मुझे समुचित जवाब नहीं मिला किन्तु ओलम्पिक में जैसे कई देश और सैकड़ों टीमें भाग लेती हैं वैसे ही ओलंपिक सावे में थोक भाव में सैकड़ों शादियां होती है। यह पुष्करणा ब्राह्मणों की सामाजिक प्रथा है। पूरा बीकानेर शहर विवाहमय हो जाता है। 130 जोड़ों की शादियां इस ओलंपिक सावे पर हो रही है। खास बात यह है कि ये विवाह होते घरों पर ही है पर एक खास केन्द्र से बारात निकलती है। कार्निवल की तरह बारातें आती हैं उनका सार्वजनिक स्वागत होता है। इस अवसर पर कन्या पक्ष को आर्थिक सहायता देने का भी प्रावधान है। सरकार की ओर से इनकी मदद की जाती है पर उनका खुलासा नहीं किया जाता है और विष्णुरूपी दुल्हे को शुभकामनाएं दी जाती है। सामाजिक संस्था पुष्करणा प्रोग्रेसिव मंच को प्रथम द्वितीय एवं तृतीय पुरस्कार के साथ सांत्वना पुरस्कार देकर दुल्हों को सम्मानित किया। बीकानेर के हृदय स्थल मोहता चौक, बारह गुवाड, रघुनाथ सर कुआं आदि स्थानों पर विभिन्न सामाजिक संस्थानों द्वारा दुल्हों को नकद राशि, प्रशस्ति पत्र, नारियल, शॉल आदि से विभूषित किया गया। इस अवसर पर राजस्थान के कला, संस्कृति ंत्री श्री बुलाकी दास कल्ला, जो बीकानेर से विधायक भी हैं, ने मंच से कहा कि बीकानेर के विभिन्न समाजों के हजारों लोगों ने साक्षी बन बीकानेर इस सामूहिक विवाह परम्परा की सराहना की है। उन्होंने बताया कि इसमें न बैण्ड बाजा, ना डीजे, न ज्यादा बाराती ना दहेज, केवल एक वस्त्र में दुल्हन को विदा किया जाता है जिसे खुशी-खुशी दुल्हे के परिवार के लोग स्वीकार करते हैं।

यह शानदार परम्परा पूरे विश्व में बीकानेर के पुष्करणना समाज में ही देखने को मिलती है। केवल कूकूम कन्या को स्वीकार कर बिना दहेज विवाह किया जाता है। इस अवसर पर पूरा शहर दुल्हन की तरह सजाया जाता है। हजारों लोग विष्णु रूपी दुल्हे को देखने आते हैं। पुष्करणा समाजमें मुहूर्त गोधूली बेला सिंह लग्न में उमा-शंकर के नाम से सायं 5.45 बजे से 6.08 तक के श्रेष्ठ मुहूर्त है - हर दुल्हा शंकर और हर दुल्हन उमा यानि पार्वती के रूप में विवाह मंडप में बैठते हैं लेकिन फिर दुल्हे का विष्णु के रूप में स्वागत वाली बात का रहस्य मुझे कोई नहीं बता पाया।

एक और दिलचस्प बात। इस अवसर पर एक परिचर्चा का आयोजन भी हुआ है। परिचर्चा का विषय है ''बीकानेर वासियों की नजर में सावाÓÓ। परिचर्चा के दौरान कोलकाता, मुम्बई, रायपुर, चेन्नई, फलौदी, श्रीगंगानगर सहित विभिन्न राज्यों से आये प्रवासियों ने बीकानेरी पुष्करणा सावे को अनमोल धरोहर बताया। इस बेजोड़ सावे की संस्कृति को अक्षुण्ण बनाकर रखने का भी आह्वान किया गया। मंच पर गीत-संगीत, विवाह गीतों की सुरमयी प्रस्तुतियां दी गई।

सामाजिक संस्थाओं द्वारा रास्तों से गुजरती बारातों के लिए चाय की व्यवस्था की गई। पुष्करणा सावे के दौरान विभिन्न सभा संस्थाओं की ओर से सेवा कार्य भी बड़े दिलचस्प है। बारह गुवाड़ स्थित विद्यार्थी सभा भवन में विवाह परिसर के सदस्यों हेतु नि:शुल्क शेविंग, फेशियल और मसाज की सुविधा उपलब्ध करवाई गई है। कभी पुष्करणा समाज में अक्षय तृतीया के दिन बाल विवाह की भी प्रथा थी। लेकिन अब यह कुप्रथा प्राय: लुप्त हो गई है। इस ओलंपिक सावे से बीकानेर की सांस्कृतिक छटा और देदिप्यमान हो गई है। वैसे भी बीकानेर राजस्थान की सांस्कृतिक राजधानी कहलाता है। पुरातन संस्कृति, ऐतिहासिक विरासत और सामाजिक जागरुकता की त्रिवेणी में गोता लगाते हुए बीकानेर के ही नहीं, कोलकाता में बीकानेर प्रवासी भी हरफन मौला से कम नहीं हैं।

Comments

  1. बीकानेरी पुष्करणा ब्राह्मण समाज के इस सामूहिक विवाह का आयोजन पहले प्रति चार वर्ष के अंतराल में होता था।चूंकि खेलो का सामूहिक आयोजन ओलंपिक भी प्रति चार वर्ष के अंतराल पर होता है।इस सावे पर प्रवासी एवम अप्रवासी बीकानेरी पुष्करणा समुदाय द्वारा प्रत्यक्ष एवम अप्रत्यक्ष रूप से सम्मिलित होता था ।अतःबोलचाल की भाषा में ओलंपिक सावा कहा जाने लगा।

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  2. बहुत सुंदर वर्णन किया है बीकानेर के इस ओलम्पिक सामूहिक विवाह सम्मेलन का पढ़ने से आंखों के सामने पूरा दृश्य उपस्थित हो गया ।पुष्करणा समाज ब्राह्मण समाज है जो सदैव अपनी विकासशील सोच के लिए जाना जाता है ।अन्य ब्राह्मण समाज को भी सीख लेने की आवश्यकता है बधाई

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