भारतीय लोकतंत्र के दबाव में एक मौन आध्यात्मिक क्रांति

भारतीय लोकतंत्र के दबाव में एक मौन आध्यात्मिक क्रांति

भारत की 17वीं लोकसभा का चुनाव अप्रैल-मई में होंगे। देश के 80करोड़ से अधिक नागरिक अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। चुनाव प्रक्रिया लगभग डेढ़ महीने चलेगी। पूरे चुनाव सम्पन्न कराने में 4 हजार करोड़ से अधिक का सरकारी व्यय होगा। चुनाव परिणामों के पश्चात् बहुमत के आधार पर नयी सरकार बनेगी और उसके हाथ में होगी देश की बागडोर। संयोग है कि चुनाव के कुछ महीने पूर्व महाकुम्भ सम्पन्न हो जायेगा। हालांकि यह महाकुंभ नहीं अद्र्धकुम्भ है। प्रयाग में दो कुम्भ पर्वों के बीच 6 साल अंतराल में अद्र्धकुंभ भी होता है। प्रयागराज में पिछला कुंभ 2013 में हुआ था। 2019 में यह अद्र्धकुम्भ है। किन्तु यूपी सरकार इसे कुम्भ बता रही है। प्रयाग राज में पूर्ण कुम्भ सन् 2015 में होगा। यूपी सरकार इसे पूर्ण कुम्भ बताकर खर्चा भी उसी हिसाब से कर रही है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक कुम्भ के आयोजन पर 4500 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं। सरकार ने 10 हजार करोड़ लोगों को मोबाइल पर मैसेज भेज कर उन्हें कुम्भ में आने का निमंत्रण भी दिया है।
दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक और आध्यात्मिक मेला प्रयाग राज कुम्भ विगत मंगलवार को मकर संक्रांति के साथ शुरू हो गया है। यह 15 जनवरी से 31 मार्च तक कुल 49 दिन चलेगा। इस बार इसमें 13से 15 करोड़ श्रद्धालुओं के आने की संभावना है। इसमें 10 लाख विदेशी नागरिक शामिल होंगे। यूपी सरकार कुम्भ 2019 को अब तक का सबसे दिव्य और भव्य कुम्भ बता रही है।
मेले का कुल क्षेत्रफल 3200 हेक्टेयर है। यहां 1500 प्रीमियम टेन्ट सहित सिटी व 20 हजार लोगों के लिए रैन बसेरे का प्रब्ध किया गया है। 1,22,000 शौचालयों का निर्माण कराया गया है। प्रयागराज एयरपोर्ट पर नये टर्मिनल का निर्माण, 9 रेलवे स्टेशन का नवीनीकरण व 10 उपरिगामी सेतुओं का निर्माण, 5 लाख से अधिक वाहनों की पार्किंग व्यवस्था, शटल बस और सीएनजी व ई रिक्शा की उपलब्धता, 40 एटीएम, 4 विदेशी विनियम मुद्रा काउंटर, 20 बैकों की शाखाएं, प्रतिदिन 92 मिलियन लीटर पेयजल की व्यवस्था के अलावा पेन्ट मॉय सिटी के मान के तहत 15 लाख वर्गफीट क्षेत्र में पेंटिंग की गयी है।
कुम्भ 2019 को दिव्य और भव्य बनाने हेतु गंगा आरती का प्रतिदिन आयोजन होगा। प्रयागराज नगरी में योग के कई केन्द्र हैं। जल मार्ग को पर्यटन हेतु खोल दिया गया है। संगम वॉक, प्रयागराज हेरिटेज वॉक, कुम्भ के इतिहास पर लेजर शो लोगों के लिए आकर्षण के केन्द्र होंगे। एम्यूजमेंट पार्क सभी उम्र के लोगों के लिये है। भव्य आकर्षण में प्रदर्शनियां, फूड कोर्ट, वर्चुअल रियलिटी कियोस्क है।
कुम्भ मेला कई ²ष्टि से अभूतपूर्व है। इसे उत्तर प्रदेश सरकार ने इसे विश्व का विशालतम सांस्कृतिक समागम करार दिया है।
कुम्भ स्नान से पाप मुक्ति का भरोसा है। कुम्भ का मतलब कलश होता है। इसा संबंध समुद्र मंथन के दौरान अंत में निकले अमृत कलश से है। मान्यता है कि देवता-असुर जब अमृत कलश को लेकर एक दूसरे से छीन रहे थे, तब इसकी कुछ बूंदें धरती की तीन नदियों में गिरी थी। जहाँ ये बूंदें गिरी, वही पर कुम्भ होता है। इन नदियों के नाम गंगा,गोदावरी और क्षिप्रा है।
सरकार के मुताबिक पहली बार मेला क्षेत्र 45 वर्ग किलो मीटर के दायरे में फैला है। पहले यह सिर्फ 20 कि.मी. इलाके में ही होता था। मेले में 50 करोड़ की लागत से 4 टेंट सिटी बसाई गई है। इनके नाम हैं कल्प वृक्ष, कुम्भ कैनवास, वैदिक टेंट सिटी, इन्द्र प्रस्थन सिटी हैं। कुम्भ के दौरान प्रयागराज में दुनिया का सबसे बड़ा अस्थायी शहर बस जाता है।
वह सारी तैयारियां वही है जो आम तौर पर पूर्ण कुम्भ के लियए की जाती है। जबर्दस्त प्रचार एवं 10 करोड़ से अधिक लोगों को मोबाइल पर मैसेज भेज कुम्भ में स्नान हेतु निमंत्रण भेजा गया है। देखा जाय तो चुनाव कुम्भ पर भारी पड़ गया। क्योंकि महा निर्वाचन आसन्न नहीं होता तो इसे अद्र्ध कुम्भ ही माना जाता। उसी तरह की तैयारी भी की जाती। चुनाव इस बार चुनौती भरा है। भाजपा के दिग्गज नेता श्री नरेन्द्र मोदी की प्रतिष्ठा दांव पर है। उनका चुनाव क्षेत्र वाराणसी एक तीर्थनगरी है। उत्तर प्रदेश में भी भाजपा की सरकार है और यहां तीन उपचुनावों में भाजपा को मुंह की खानी पड़ी थी। मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री दोनों के चुनाव क्षेत्रों में भाजपा की हार खतरे की घंटी बजा चुकी है। उत्तर प्रदेश में भाजपा को गत लोकसभा चुनाव में कुल 80 सीटों में 73 सीटें मिली थी। इस बार इतनी बड़ी संख्या में भाजपा जीत जायेगी, यह मुश्किल प्रतीत होता है और यूपी ही निर्धारित करेगा कि आम चुनाव की दशा और दिशा किसी और है। इन सबके मद्देनजर भाजपा के कुम्भ को हथियार बनाया एवं वहां व्यवस्था को इसका व्यापक और चुस्त-दुरुस्त किया जा रहा है ताकि कहीं किसी प्रकार की कसर नहीं रह जाये। इधर सपा और बसपा गठबंधन और अजीत सिंह के राष्ट्रीय लोकदल के भी शामिल हो जाने से भाजपा को एक बड़ी चुनौती यूपी में ही मिलेगी, यह स्पष्ट है। यूपी में लोकसभा का युद्ध घमासान होगा, वहां पर हाथ से निकली सीटों की भरपाई उत्तर पूरव राज्यों में नहीं हो सकती क्योंकि उत्तर पूर्व के राज्य छोटे हैं। बंगाल में भाजपा अपनी वर्तमान ताकत दो सीटों की, को बढ़ाने में हरसम्भव प्रयास करेगी। इधर आसाम में भाजपा के अन्दर केन्द्र के नागरिकता (संशोधनी) बिल का विरोध बढ़ रहा है। भाजपा के दो विधायक इसके विरोध में खड़े हुये हैं। अरुणाचल के पूर्व मुख्यमंत्री गेगांग अपांग ने भाजपा छोड़ दी है। अपांक सात बार विधायक रह चुकेहैं। चार वर्ष पहले ही कांग्रेस छोड़कर वे भाजपा में शामिल हुये थे।
भारत में लोकतंत्र की जड़ें जमी हुई है। चुनाव विशेषकर आम चुनाव यहां का सबसे बड़ा लोक पर्व है। दुनिया के किसी भी देश में इतनी विशाल लोकतांत्रिक व्यवस्था नहीं है। अमेरिका से कहीं ज्यादा लोकतंत्र भारत में मजबूत है। अतीत में अमेरिका में प्रशासनिक गलती के कारण महीनों तक चुनाव की प्रक्रिया रुकी रही। हमारे देश में अगर चुनाव परिणाम में एक-दो घंटे की देर हो तो राजनीतिक दल पूरे देश को आसमान में उठा लेते हैं। अमेरिका में शट डाऊन चल रहा है। 8लाख अमेरिकी नागरिकों को कई महीनों से वेतन नहीं मिल रहा है। ट्रंप किसी भी वक्त आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं। भारत में हम ऐसी स्थिति की कल्पना भी नहीं कर सकते।
लोकतंत्र में वोट से तख्ता उलटा जा सकता है। कुम्भ में पानी में एक डुबकी जीवन भर के पाप से मुक्ति दिला सकती है। अद्र्धकुम्भ को कुम्भ में बदलना एक मौन आध्यात्मिक क्रान्ति है। चुनाव केन्द्रित लोकतंत्र कितना भारी है- कितना दम है- इसी से पता लगता है।

Comments

  1. कुंभ के आईने में आगामी लोकसभा चुनाव के आकलन के साथ -साथ इससे जुड़ी अन्य बातों पर सम्पादकीय बढ़िया लगा।

    ReplyDelete
  2. भाषिक अशुद्धियाँ खलती हैं।

    ReplyDelete

Post a Comment