मध्ययुगीन भारत की वापसी?

मध्ययुगीन भारत की वापसी?
सबरीमाला मंदिर में महिलाओं की ' नो इंट्रीÓ
धार्मिक कट्टरपंथी इस बात को स्वीकार नहीं कर पाते हैं कि भगवान अयप्पा के दर्शन का अधिकार स्त्रियों को भी होना चाहिये। माना जाता है कि अयप्पा ब्रह्मचारी थे, इसलिए रजस्वाला स्त्रियों को उनके मन्दिर में प्रवेश की इजाजत नहीं है। रजस्वाला यानी पीरियड्स होने वाली उम्र की स्त्रियों को धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अपवित्र माना जाता है। यह सदियों पुरानी मान्यता है। 21वीं सदी के वैज्ञानिक युग में भी आश्चर्य है कि कुछ लोग इस तरह के दकियानूसी विचार को ढो रहे हैं। दुर्भाग्य है कि इनमें औरतें भी शामिल हैं। आज के समय में यह स्त्रियों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने उनके मौलिक अधिकारों के मद्देनजर अयप्पा मंदिर में उनके प्रवेश की अनुमति दी है। लेकिन पुरातन धार्मिक विचार के पालक इसे खारिज करते हैं एवं इसे अपनी परम्परा के विरुद्ध मान रहे हैं। इसी जड़ता का यह दुष्परिणाम है कि आज तक कोई स्त्री धार्मिक क्षेत्र की सर्वोच्च सीट पर नहीं पहुंच पाई है। न ही पोप, न ही शंकराचार्य, न ही मौलवी, न ही लामा और न ही किसी धर्म की सर्वोच्च धर्माधिकारी। वे राष्ट्रपति हो सकती है, प्रधानमंत्री भी पर उनका धर्म के सर्वोच्च आसन पर बैठना किसी को गंवारा नहीं है।

किसी समय में शूद्रों को अछूत मानकर उनकी छाया से भी परहेज किया जाता रहा है, गुलाम के रूप में अश्वेतों को खरीदा-बेचा जाता रहा। कभी विधवा को मांगलिक कार्य में शामिल होने की मनाही थी। विधवा मां को अपने बेटे के विवाह में भी दूर रखा जाता था। आज भी बहुतेरी जगह रजस्वाला महिलाओं का रसोई घर में प्रवेश निषेध है। तुर्रा यह कि कुछ लोग इसे वैज्ञानिक रूप से सही मानते हैं, यह अलग बात है कि उनके कथित वैज्ञानिक तर्क को किसी मेडिकल प्रोफेसन के व्यक्ति या वैज्ञानिक ने नहीं, कुछ पोंगा पंडित-पुरोहितों ने मान्यता दी है।
केरल की लाखों महिलाओं ने 620 किलोमीटर लंबी मानव शृंखला बनाकर लैंगिक असमानता के विरुद्ध एक बड़ा प्रदर्शन किया। दूसरी तरफ कुछ हिन्दू कट्टरवादियों ने विरोध स्वरूप हिंसा की, पुलिस पर पत्थर फेंके। सबरीमाला मंदिर में दो महिलाओं के प्रवेश के बाद हिन्दूवादी संगठनों ने केरल बन्द किया। मामले में राजनीतिक रंग चढ़ गया। केरल की माकपा सरकार और भाजपा के बीच हिंसक झड़प हुई। परिणामस्वरूप एक अधेड़ व्यक्ति की मौत हो गयी। कुछ लोगों ने तिरुवनंतपुरम में पुलिस पर देसी बम से हमला भी किया। अतीत में भी सामाजिक जड़ता के विरुद्ध जब भी लड़ाई लड़ी गई उसे विरोध का सामना करना पड़ा किन्तु अंतोतगत्वा सुधार हुये। इतिहास साक्षी है समाज सुधारकों ने मानव के पैर की बेडिय़ां तोड़ी है।
भारत भी गुलाम हुआ था इन्हीं सामाजिक जड़ताओं और कुंठाओं के कारण। जागरुक समाज कभी गुलामी की जंजीरों में बांधा नहीं जा सकता और रूढिय़ों के शिकंजे में जकड़ा हुआ समाज को गुलाम बनाना बड़ा आसान होता है। विडम्बना है कि धार्मिक परम्पराओं एवं गरिमा का संवाहक महिलायें ही होती हैं किन्तु धार्मिक कट्टरताओं का सबसे अधिक खामियाजा इन्हीं महिलाओं को भुगतना पड़ता है। जिन दो महिलाओं ने मन्दिर में प्रवेश किया, उनकी जान खतरे में है। केरल के मुख्यमंत्री ने उन्हें कड़ी सुरक्षा देने का आदेश दिया है। संयोगवश, बतायें कि केरल की नर्सें पूरे विश्व में चिकित्सा सेवा के लिये जानी और मानी जाती हैं। कोलकाता के एक प्रसिद्ध अस्पताल में जब आग लगी और 90 से अधिक लोग मारे गये वहां की दो नर्सों ने अपनी जान जोखिम में डालकर कई रोगियों को मरने से बचाया। ये दोनों नर्सें केरल की थी। अंत में लेकिन इन दोनों नर्सों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि महिलायें लोगों की जान बचाने में अपनी कुबानी दे सकती है पर वे अयप्पा के दर्शन नहीं कर सकती। मन्दिरों में इस तरह के कानून पुरुष समाज के धर्माचार्यों ने बनाये हैं। महिलाओं के प्रवेश से मन्दिर अपवित्र हो गया और मंदिर प्रबंधकों ने तुरंत ही मन्दिर के कपाट बंद करके उसका
शुद्धिकरण किया। सामाजिक बदलाव की राह में संघर्ष कोई नई बात नहीं है। अहम् बात यह है कि सामाजिक न्याय और बराबरी के सबसे बड़े हिमायती, महिलाओं को संसदमें आरक्षण देने की बात करने वाले राजनीतिक दल लेकिन मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के विरुद्ध सड़क पर उतर गये। तीन तलाक पर मुस्लिम महिलाओं
के लिये घडिय़ाली आंसू बहाने वाले लेकिन हिन्दू महिलाओं को मन्दिर जाने का अधिकार नहीं देना चाहते।
राम मन्दिर के लिये संसद से सड़क और अदालत तक लड़ाई चल रही है। लेकिन सीता की पवित्रता पर संदेह करने वाले महिला प्रवेश पर मन्दिर को अशुद्ध मानने लगे हैं। भगवान का मन्दिर कभी अपवित्र हो सकता है यह विचार न वेद में है, न पुराण में न गीता में न रामायण में। यह तो कुछ लोगों के दिमाग की उपज है जो हमें उस मध्य युग की ओर धकेल रही है जब गुलामी की प्रथा प्रचलित थी। हाल ही में भारत की महिलाओं की गौरवपूर्ण उपलब्धियों पर एक नजर डालिये:-
अगस्त में भारत की पहली महिला कमाण्डो टीम को दिल्ली पुलिस में केन्द्रीय गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह ने शामिल किया। 15 महीने के गहन प्रशिक्षण में 36 महिलाओं को अस्त्र-शस्त्र के उपयोग की शिक्षा दी गई, आतंकवाद का मुकाबला करना सिखाया गया। भारत के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा क्योंकि पहली बार इन महिलाओं ने विशेष हथियारों का संचालन सीखा जिस पर अब तक पुरुषों का एकाधिकार था। फरवरी में 24 वर्षीया अवानी चतुर्वेदी पहली महिला हुई जिसने जेट फाइटर विमान अकेले उड़ाया।
इस महिला उडऩ अधिकारी ने मिग-21 बिसोन उड़ाया जिसकी उड़ान भरने और उतरने की गति दुनिया में सबसे तेज है। विश्व के मानचित्र में अमेरिका जैसे पराक्रमी देश के साथ भारत का नाम जोडऩे का श्रेय अवानी चतुर्वेदी को है।
मन्दिर में प्रवेश वर्जन की मानसिकता वाले देश की महान वीरांगनाओं के सामने अपना चेहरा दिखा पायेंगे? मध्य युग में महिलाओं को भोग्य वस्तु माना जाता था, कुछ लोग अभी उसी युग में रह रहे हैं। सामाजिक परिवर्तन की आंधी को वे झेल नहीं पा रहे हैं। 

Comments

  1. देह शुचिता की सामाजिक समस्या के कारण आज भी भारतीय समाज स्त्रियों को धार्मिक कार्यों में पुरुषों की तरह पवित्र नहीं मानता। स्त्रियों के लिए यह शारीरिक प्रक्रिया प्रकृति का परिणाम है न मानव कृत। सबरिमाला मंदिर की पूजा में स्त्रियों के लिए निषेध की बात धार्मिक ढकोसले का ही एक रूप है। धार्मिक कुसंस्कारोंके प्रति महिलाएं अब जागरूक हो रही हैं वह दिन दूर नहीं जब महिलाएं धार्मिक क्षेत्रों पर भी अपना अधिकार प्राप्त करने में सक्षम होगीं। लेख के लिए बधाई और शुभकामनाएं - डॉ वसुंधरा मिश्र, कोलकाता

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