कलियुग में भगवान हनुमान का जातीय अवतार

कलियुग में भगवान हनुमान का जातीय अवतार
हनुमान भगवान श्रीराम के अनन्य भक्त थे। हिंदू पारंपरिक और ऐतिहासिक कथाओं या कहानी में भगवान श्री हनुमान के नाम का कई जगहों पर उल्लेख है। हनुमान जी के बारे में जितनी कहानियां प्रचलित हैं एवं भिन्न-भिन्न तरह की मान्यतायें हैं - शायद अन्य किसी देवी-देवता के बारे में नहीं है। हनुमान की राम के प्रति भक्ति की महिमा बखान में सहस्त्रों कहानियां प्रचलित हैं। हनुमान के ऐसे अनगिनत भक्त हैं जो उन्हें अलग-अलग रूपों में देखते हैं। हनुमान की भक्ति की सहस्त्रों गाथायें जिस तरह हैं- उसी तरह हनुमान के प्रति भक्ति की भी कहानियां सुनने को मिलती है। अपने बचपन में हनुमान शरारती थे, और कभी-कभी जंगलों में यानम‚न साधुओं को परेशान कर देते थे। उनकी हरकत असहनीय होती थी, लेकिन यह जानकर कि हनुमान एक बालक है, ऋषि ने उस पर हल्का अभिशाप रखा था जिसके कारण उन्होंने अपने शक्ति को याद करने की क्षमता को खो दिया था। हनुमान अपनी ताकत भूल गये थे तो उन्हें याद दिलाना पड़ता था। शायद इसी परिप्रेक्ष्य में वे यह भूल गये कि उनका किस कुल में जन्म हुआ, वे किस जाति के थे।

कलियुग में हनुमान जी की जाति को लेकर संसद से सड़क तक बहस होगी - इसका हमारे ईष्ट देवता को अनुमान भी नहीं था। हालांकि हमारे यहां कहा गया था-
जाति न पूछे साधु की, ले लीजिये ज्ञान,
मौल करो तलवार का, पड़ी रहण दो म्यान।
पर बिना जाति पूछे या जाने किसी व्यक्ति की पहचान नहीं कराई जाती। मारवाडिय़ों में वैवाहिक अनुष्ठान में लोकगीत गाया जाता है-
''धोया धोया थाल परोस दिया भात जी
आओ (नाम)..... जी, बैठो नी पांत जी
बैठो नी पांत ..... बताओ थारी जात जी।''
इसके पीछे कारण है कि जब बारात आती थी उसमें कई जातियों के लोग होते थे। अत: खाना परोसने के पहले उनकी जाति पूछी जाती थी। यह एक हास्य-व्यं‚य था जिसमें बारातियों को उनकी जाति पूछ कर उकसाया भी जाता था। जातिगत परिचय हमारे देश की प्राचीन संस्कृति का अभिन्न अंग है। किसी के स्वभाव या उसकी जीवन शैली बहुत कुछ उसकी जातीय पृष्ठभूमि पर निर्भर करती है। वैसे दुनिया छोटी होती जा रही है अत: हर
व्यक्ति एवं उसका समाज एक-दूसरे को प्रभावित करता है। व्यक्ति जिसके इर्द-गिर्द रहता है उस वातावरण एवं परिवेश का भी उस पर असर पड़ता है। मैं राजस्थान से कलकžत्ता आया और पिछले पैंसठ वर्षों से हूं, अब
राजस्थान जाने पर मुझे लोग कलकžत्ता या बंगाल से आया व्यक्ति के रूप में पहचानते हैं। इस अन्तराल
में हम जब वहां के लोगों से मिलते हैं तो एक बड़ी खाई हमारे बीच रहती है।
हनुमान जी की जाति और धर्म को लेकर उपजा विवाद हमारी उपनिवेशिक एवं दरिद्र मनोवृžत्ति का
परिचायक है। वैसे देवी- देवताओं की जाति नहीं होती है। कोई बता सकता है कि शिवजी, ब्रह्मा या भगवान विष्णु किस जाति के थे। उनके अवतार चूंकि मनुष्य रूप में होता है अत: राम क्षत्रीय थे - कहते हैं। कृष्ण यादव
थे, वगैरह...वगैरह...। राजनीतिक नेताओं ने जबसे धर्म को अपनी तुछ राजनीति का हथियार बनाया है तबसे इस तरह की बेहूदगी होने लगी है। उžत्तर प्रदेश के 'योगी' मुख्यमंत्री ने सबसे पहले हनुमान को दलित बताया।
जब जाति का फ्लड गेट खुल गया तो फिर किसी दायित्वशील व्यक्ति ने कहा हनुमान मुसलमान थे। हालांकि जिस ˜ोता युग में हनुमान हुये उस वक्त इस्लाम का जन्म ही नहीं हुआ। किन्तु कहने में क्या लगता है। मुसलमान होने के पक्ष में तर्क दिया गया कि - रहमान, सलमान, इमरान जब मुसलमान हैं तो हनुमान भी मुसलमान ही होंगे। फिर किसी ने उन्हें जाट करार दिया। जाट राजस्थान, पश्चिमी उžत्तर प्रदेश, हरियाणा आदि
प्रान्तों में कृषि से जुड़े हुये लोगों की जाति है। ये बड़े मेहनती, भूस्वामी होते हैं। शरीर से हट्टे-कट्टे होते हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार में धर्मार्थ कार्य मं˜ाी लक्ष्मी नारायण चौधरी ने
विधान परिषद में प्रश्नकाल के बीच कहा कि दूसरों के घरेलू मामलों में जो टांग अड़ाता है, वही जाट ही हो सकता है। चौधरी साहब ने गर्व से कहा हनुमान मेरी जाति के थे। सदन में कबीना मं˜ाी का यह बयान सुनकर
कुछ हंसे तो कुछ लोग चौंक गये, मगर कुछ पलों बाद ही सदन में इस टिŒप‡ाी को लेकर ह„ा मच गया। बाद में वहां हिन्दू देवी-देवताओं के अपमान से संबंधित प्रस्ताव पेश किया गया। जाति अ‹वेष‡ा का सिलसिला यही खˆम नहीं होता। किसी सरदार जी ने जनुमान को सिख जाति का बताकर हमारे कौतूहल को और बढ़ा दिया। उनका कहना है - किसी की पत्नी को कोई भगा कर ले गया उसमें नाहक बीच में पडऩे कर उसकी पत्नी को तलाशने का मुफ्तिया काम कोई सरदार ही कर सकता है। बात यहीं खˆम नहीं हुई। हनुमान जी की राष्ट्रीयता पर भी प्रश्न चिह्न उस वक्त लगा दिया गया जब उन्हें चीनी नागरिक बताया गया। हनुमैन, याऊऐन की तरहन हनुमान भी थे। लोगों की विलक्ष‡ा बुद्धि और कुतर्क का कोई जवाब नहीं है। लगता है हम हनुमान जी को किसी जाति का सिद्ध कर ही दम लेंगे।
एक व्यक्ति नास्तिक हो सकता है, ईश्वर की सžाा को वह नहीं मानता। दुनिया में कई बड़े वै™ाानिक एवं अ‹य महापुरुष अनिश्वरवादी हुये हैं जिनकी प्रतिष्ठा आसमान पर थी। कि‹तु धर्म में आस्था रखने वाले ईश्वर
की सžाा में विश्वास करने वाले लोग अपने ईष्ट देवताओं के बारे में बेहूदी और फुहड़ बातें करते हैं तो समझ में नहीं आता कि वे फिर किस ईश्वर में विश्वास करते हैं। हमारे देश में पहले भी धर्म और ईश्वर को मानने वाले
लोगों ने धर्म और भगवान के नाम पर व्यभिचार एवं अत्याचार किया। आशाराम बापू, राम रहीम इसके दो ’वलंत उदाहरण हैं। मकान की दीवारों पर भगवान के छोटे-छोटे चित्र लगाये जाते हैं ताकि उनका लिहाज कर लोग दीवार पर नहीं थूकें। जब देवी-देवताओं का इस तरह उपयोग स्व‘छता अभियान के लिये किया जाता हो, वहां आप क्या अपेक्षा रखेंगे? सिविक से‹स के लिये लोगों को समझाया जाता है, शिक्षित किया जाता
है - उन्हें देवी-देवताओं के प्रकोप का डर दिखाना आस्था का माखौल है।
ऐसे लोगों के हाथ में न धर्म सुरक्षित है न ईश्वर के प्रति विश्वास। गला फाड़कर कीर्तन करने से या मस्जिद के ऊपर लाउड स्पीकर लगाकर ध्वनि प्रदूषण आज के धर्मभीरू एवं दकियानूसी समाज की भक्ति का ढकोसला है।
हनुमान जी की जाति का प्रकरण छोड़ बजरंगबली के उस स्वरूप को याद करें जिसमं हनुमान जी पर्वत को हाथ में लेकर उड़ते हैं ताकि पर्वत पर उपजी जड़ी-बूटी से मूर्छित लक्ष्मण का त्वरित इलाज हो और उसे होश आ जाये। (देखें उपरोक्त चित्र) राम भक्ति के साथ सेवा के इस उत्कृष्ण रूप से प्रेर‡ाा लेनी चाहिए। उनकी जाति जानकर क्या करेंगे? 

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