कल तक अपने पांव पर खड़े थे अब हाथ खड़ा करने लगे हैं
कोलकाता के वित्तीय बाजार में अभी तूफान के पहले की शान्ति है। कई नामी ग्रामी धन कुबेरों ने या तो हाथ खड़े कर दिये हैं या फिर करने वाले हैं। यहां यह बता दें कि हाथ खड़ा करने का व्यापार जगत में क्या मतलब होता है। आपने किसी व्यक्ति से रुपये उधार लिये। जब चुकाने का दिन आया तो आपने पैसा देने में अपनी असमर्थता व्यक्त कर दी अथवा टाल मटोल कर गये। इसे व्यापारिक कोड में हाथ खड़ा करना कहते हैं। आपको यह जानने की उत्सुकता होगी कि पैसा चुका नहीं पाने का हाथ खड़ा करने से आखिर क्या सरोकार है। तो इसे भी समझ लीजिये। कभी दंगे फसाद के समय कफ्र्यू लागू हो जाता है। उसमें लोगों का आवागमन बंद कर दिया जाता है। ऐसी स्थिति में कोई फंस जाये तो वह अपने हाथ खड़े करके चलता है। ऐसा करके वह पुलिस को यह संदेश देता है कि वह निहत्था है, उसके पास कुछ भी ऐसा नहीं है जिससे वह आक्रमक हो। लिहाजा उसे जाने दिया जाय। व्यापार में ऋण लेने वाला आसामी हाथ खड़े कर देता है यानि उसके पास देने को कुछ भी नहीं है और वह अपने को सरेंडर कर देता है।
आज कई सूरमाओं ने हाथ खड़े कर दिये हैं। बाजार से कई सौ करोड़ रुपये ले लिये पर चुकता करने के समय उनके पास चुकाने के लिये कुछ भी नहीं है। कुछ दिन तो यह मामला पैसा लेने वाले और पैसा देने वाले के बीच रहता है या फिर दोनों आसामियों के बीच के दलाल को मालूम रहता है। किन्तु जैसे इश्क और मुश्क छिपाये नहीं छिपता - उसी तरह बात बाजार में ब्रेकिंग न्यूज की तरह फैल जाती है। परिणामस्वरूप बदनामी शुरू हो जाती है जो उस आसामी के कारबार पर भारी पड़ती है। पिछले महीने यानि नवम्बर में कई आसामियों ने हाथ खड़े कर दिये। पहले तो विश्वास नहीं हुआ क्योंकि उनको तो हम ''सॉलिड'' आसामी समझते थे। फिर क्या बात हुई? व्यापार में घाटा इसलिये नहीं हो सकता कि पूजा बाजार तो अच्छा गया, बिक्री बट्टा भी ठीक हुआ। मुनाफा कम भी हुआ हो तो बात समझ में आती है फिर बनिये की यह हालत पतली क्यों हुई। खोजबीन करके पता चला कि अपने कारबार के लिये नहीं बल्कि किसी रीयल ईस्टेट वाले के साथ मिलकर बड़ी जमीन खरीद ली। बड़ा मकान नहीं पूरा काम्लेक्स बनाया पर फ्लैट बिक्री नहीं हो रहे हैं। पैसा बाजार से साख पर मिल गया, कुछ बैंक में हेराफेरी करके निकाल लिया पर पूंजी सारी खपा दी पर फ्लैट का कोई लेवाल नहीं है। नतीजा यह हुआ कि आसामी धराशायी हो गयी। अपना कारोबार ठीक ही चल रहा था- साख भी जमी हुई थी- आसामी खांटी करोड़पति नहीं बल्कि अरबपति था पर रीयल ईस्टेट के धंधे में कई हजार करोड़ रुपये कमाने का सजबाग महंगा पड़ गया। अपने मूल धंधे में सफल व्यक्ति दूर के सुहावने ढोल के चक्कर में फंस गया।
अभी कोलकाता के कई नामधारी कारोबारियों में हाथ खड़ा करने वाला चक्कर शुरू हो गया है। इसमें कई साड़ी वाले, कई केटरर, वैलरी वाले आदि हैं। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि रुपये लेन देन के एक दलाल ने अपने य्लाईंट के लेटरपैड पर प्रोमिजरी नोट लिखकर बाजार से लम्बा पैसा उठा लिया। जिसके नाम से रुपया लिया गया, पैसा लौटाने के दिन जब उसके पास फोन आया तो सिर चक्कर खा गया कि एक ही नहीं कई व्यापारियों से दलाल ने आसामी के नाम से धन इक किया है। दलाल जी किसी और मुल्क में जाकर बिबी-बच्चों के साथ मजे में घूम रहा है - पांच-सात सितारा होटल में परिवार के साथ छुट्टियां मना रहा है। दलाल को पता है कि भांडा आज नहीं तो कल फूटेगा किन्तु यह भी जानता है कि उसका बाल भी बांका नहीं होने वाला है। एक प्रमुख साड़ी वाला जब नहीं चुका पाया तो लेनदारों के साथ एक बिचौलिये ने सेटलमेंट करवा दिया जिसके अनुसार वह प्रति वर्ष दस पैसे करके चुकायेगा यानि दस साल में पूरी बकाया रकम दे देगा।
ऐसे बहुत से कारोबारी इस मायाजाल में फंस कर लुट चुके हैं। अपने अच्छे भले धंधे को चौपट कर चुके हैं। ऐसा नहीं है कि यह घटना पहली बार हुई है। बीस वर्ष पहले लोगों ने पैसा उधार लेकर उफनते हुये शेयर बाजार में तकदीर आजमाई। शेयरों की लगातार एवं एकतरफा खरीददारी का बोझ बाजार सम्हाल नहीं पाया और स्टाक एक्सचेंज कई आसामियों को लेकर डूब गया। लोग गलतियों से सबक नहीं लेते या सबक लेना नहीं चाहते। अभी रीयल ईस्टेट या प्रापर्टी मार्केट मुश्किल दौर से गुजर रहा है। कुछ वर्ष पहले तक इसमें बूम था - इसे सदाबहार समझ कर रीयल ईस्टेट प्रापर्टी सुन्दरी के काले घुंघराले गुशुओं में ऐसा फंसे कि दिन में भी अंधेरी रात नजर आने लगी। पैसा जब एक बार बरसता है तो सब सराबोर हो जाते हैं। क्लब, पांचसितारा होटल और विश्व भ्रमण या मौज-मस्ती का तांता लग जाता है। फिर झटका लगता है तो लोग सिसकियां भरने लग जाते हैं। व्यास पीठ पर बैठ कर दिव्य ललाट वाले पंडित जी ने कई बार जजमान से कहा- माया में मत फंसो। पर पंडित जी भी जब माया-मोह में फंस गये तो बेचारा पुण्यार्थी, श्रोता सागर किनारे बैठकर लहरें थोड़ी न गिनता। वह गहरे पानी में डूब गया।
आज भी जो हो रहा है, उसका कितना सबक लोग लेंगे कहना मुश्किल है क्योंकि सुना है रीयल ईस्टेट में फिर चमक आने वाली है।

रीयल इस्टेट के चक्कर में ज्यादा कमाई करने की नीयत से फंसे धनकुबेरों की साख दांव पर लगी हुई है, ऐसा आपके संपादकीय से जानकारी में आया। उन्होंने अपने हाथ खड़े कर लिए हैं यानी माली हालत गंभीर है। इसका जिम्मेवार धनकुबेरों का लालच है।
ReplyDeleteVery nice article.
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