मारवाड़ी/माहेश्वरी समाज 2018
आंख पर पट्टी बांधकर वृद्धा अपनी बेटी, नतिनी के साथ कूद गई
समाज के कानों में लेकिन जूं भी नहीं रेंगी
घटना 14 नवम्बर की है। 10/1/1, बड़तल्ला स्ट्रीट के एक मकान की चौथी मंजिल से एक ही परिवार के तीन सदस्यों ने छलांग लगायी। खास बात यह है कि वृद्धा ने अपनी आंख पर पट्टी बांध कर बेटी और नतिनी के साथ आत्महत्या की कोशिश की। वृद्धा की मौत हो गई, उसकी बेटी बुरी तरह जख्मी हुई पर उसकी बच्ची को लोगों ने बचा लिया। आत्महत्या के प्रयास का कारण आर्थिक तंगी, बेटी की ससुराल में प्रताडऩा बताया गया। अखबारों में यह घटना सुर्खियों में छपी। आत्महत्या की नौबत जिन कारणों से आयी, उस पर समाज के नामधारियों द्वारा सभी मंच पर लम्बे भाषण एवं प्रवचन दिये जाते रहे। तलाक की बढ़ती हुई संख्या पर समाज में कई बार चिन्ताएं प्रकट की गयी। आर्थिक विषमता एवं समाज के एक तबके में अभाव भी हमारे सामाजिक नेताओं के प्रिय विषय रहे हैं। वृद्धा खुदकशी के लिये कूदीपर अपनी आंख पर पट्टी बांधकर। शायद ऐसे करते हुए उसे आत्मग्लानि या लज्जा बोध हो रहा होगा, या फिर वह चाहती थी कि ऐसा करते वक्त कोई उससे नजर नहीं मिला सके। यह अपने ढंग की पहली घटना है कि किसी ने आत्महत्या की कोशिश के पहले अपनी आँखों पर पट्टी बांध ली हो। महाभारत में अंधे धृतराष्ट्र की पत्नी गान्धारी अपने पति के अंधेपन की सहानुभूति में आंख पर पट्टी बांध कर रखती थी ताकि अपने पति के प्रति संवेदनशील बन सके। वृद्धा सोहिनी देवी तापडिय़ा के लिये जीवन लीला समाप्त करना मजबूरी थी क्योंकि जवान बेटी घर पर आकर बैठी हुई थी, परिवार आर्थिक तंगी से गुजर रहा था- बेटी के तलाक लेने की भी पेशकश थी पर केन्द्रबिन्दु था गरीबी और बेटी का पारिवारिक कलह। आम लोगों की भले ही धारणा हो कि मारवाड़ी धनी हैं, माहेश्वरी समाज के लोग सम्पन्न हैं पर कड़वी सच्चाई
इस घटना से उजागर होती है।
दुर्भाग्य की बात यह है कि मारवाड़ी समाज के केन्द्रीय संगठन अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन, माहेश्वरी समाज के राष्ट्रीय संगठन माहेश्वरी महासभा एवं स्थानीय माहेश्वरी सभा जिसका भवन घटनास्थल के कुछ फर्लांग दूरी पर है, के किसी पदाधिकारी ने इस घटना को गम्भीरता से नहीं लिया। माहेश्वरी सभा के अध्यक्ष श्री पुरुषोत्तम मिमानी तापडिय़ा परिवार की बैठक में गये थे पर इस वारदात के बाद इस मामले से कोई हलचल समाज में नहीं हुई। माहेश्वरी महासभा के पूर्व अध्यक्ष श्री जोधराज लड्ढा और वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री श्याम सोनी इस घटना के चार दिन बाद कलकत्ता में थे पर तापडिय़ा (माहेश्वरी) परिवार का उसकी पुत्री इन्द्रा मोहता और उसकी तीन की अबोध बच्ची जिन परिस्थितियों से जूझ कर मरने की सोची उससे 2018 के मारवाड़ी समाज या माहेश्वरी समाज का कोई सरोकार नहीं है। वैसे भी गरीब आदमी के लिये समाज के दर्दी लोगों को सोचने की कहां फुर्सत है। 18 नवम्बर को कलकत्ता के एक क्लब में देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश श्री आर सी लाहोटी साहब से मिलने के लिये माहेश्वरी समाज के कथित दस-पन्द्रह प्रबुद्ध लोगों का भोज आयोजित किया गया था जहां देश एवं मोदी सरकार के कार्यकाल की तो हल्की फुल्की चर्चा हुई पर समाज की ताजा स्थिति पर किसी ने मुंह नहीं खोला। खैर इस पर कोई आश्चर्य इसलिए नहीं है क्योंकि हमारा समाज अब इतना संवेदनशील नहीं रहा कि समाज के निचले तबके के हालात पर चर्चा करे- कोई मरे तो अपनी बला से। बहुत से लोग मरते हैं- रोज की घटना है। इसके लिए प्रलाप करने की क्या जरूरत है।
मारवाड़ी सम्मेलन हो चाहे माहेश्वरी सभा या फिर कोई दूसरा जातीय संगठन - सबकी एक शिकायत है कि समाज के लोग इन संगठनों से जुड़ते क्यों नहीं। पर किसी समाज - पुरुष के जहन में यह बात नहीं आती कि ये सभी संगठन समाज के बड़े या प्रभावशाली लोगों के इर्द-गिर्द मंडराते रहते हैं। सोहिनी देवी तापडिय़ा या उसकी पुत्री इन्द्रा मोहता व मासूम पुत्री उनके चिन्तन मनन के एजेन्डे में नहीं आते। 14 नवम्बर की घटना वैसे कोई नयी नहीं है। परिवार एवं समाज से प्रताडि़त बहुत महिलायें घुट-घुट कर जी रही हैं। मां-बाप के घर से विदा हो गई- पति के घर में लांछित हुई फिर एक ही विकल्प रह जाता है- आत्महत्या। कुछ लोग समाज में बढ़ते हुये तलाक की घटनाओं पर गाहे-बगाहे चिन्तित हो जाते हैं पर उन्हें जमीनी हकीकत का पता नहीं है। कटु सत्य यह है कि अंतोतग्वा तलाक का एक ही विकल्प है कि विवाहिता आत्महत्या कर ले। तलाक ले या जीवन समाप्त कर ले, इसके बीच उसे एक विकल्प चुनना होता है। पुराने समय में लड़कियां सारे कष्ट एवं प्रताडऩायें झेलती थी पर पति परमेश्वर का घर नहीं छोड़ती। अब शिक्षित लड़कियां ऐसा नहीं कर सकती, विशेषकर एक ऐसे काल में जब पढऩे-लिखने के बाद अब वह आर्थिक स्वावलम्बन की ओर बढ़ रही है। नारी जाति का यह जागरण समाज के कुछ दकियानूसी लोगों की नजर में उच्छृखंलता भी है।
तापडिय़ा-मोहता कांड आंख खोलने के लिये काफी है, यह दुर्भाग्यजनक घटना समाज के जातीय संगठनों की कलई भी खोल देती है। वैसे "देर आये दुरुस्त आये " It is never too late - समाज की युवा पीढ़ी आगे आये और जिन परिस्थितियों ने तापडिय़ा-मोहता को आत्महत्या करने पर मजबूर किया उस पर विचार मंथन करे एवं समाज को संवेदन शून्यता की शर्म से उबारे।


मारवाड़ी समाज में हुई इस घटना के बारे में आपने जो जानकारी दी यह दिल दहला देने वाली है । सामाजिक संस्थाओं की कलई खुल रही है वहां सिर्फ मनोरंजन के उत्सव होते हैं संस्थाएं कुछ लोगों की संपत्ति बन कर रह गई हैं आपने बहुत अच्छा मुद्दा उठाया है मारवाड़ी मतलब ही धनी होना नहीं है वहां भी गरीबी और सामाजिक समस्याएं हैं आपका लेख सोचनीय है बधाई
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