'ममता का मंदिर' के पं. मालीराम शास्त्री का महिलाओं को परामर्श
बेटा चाहिये तो करो गो सेवा
''आज अनेक दम्पति गोपाल (पुत्र संतान) को तरसते हैं। मेरा उनको परामर्श है कि वे सच्चे मन से गो माता की सेवा करें, उनके घर अवश्य गोपाल आयेगा, ऐसा मेरा विश्वास है।'' ये उद्गार परम श्रद्धेय भागवत मर्मज्ञ व गो भक्त पं. श्री मालाराम जी शास्त्री ने आज यहां के प्रतिष्ठित बंगेश्वर महादेव मंदिर में असहाय वृद्धों व गो-माताओं की सेवार्थ भागवत जन कल्याण ट्रस्ट की ओर से राजरहाट के पाथेरघाटा में संस्थापित ''ममता का मंदिर'' में कही (प्रभात खबर दिनांक 19 नवम्बर 2018-पृ. 05)।
संयोगवश यह खबर जिस दिन कोलकाता से प्रकाशित हिन्दी के कई अखबारों में छपी उस दिन 19 नवम्बर यानि श्रीमती इंदिरा गांधी का जन्म दिन था। पं. मालीराम शास्त्री के बारे में कहा गया कि वे श्रीमद्भभागवत मर्मज्ञ हैं एवं हिंदू शास्त्र के ज्ञाता हैं। पंडित जी ही बता सकते हैं कि श्रीमद्भागवत अथवा किस हिंदू शास्त्र में पुत्र संतान का यह नुस्खा दिया हुआ है। यह बात सच है कि आज के वैज्ञानिक युग में भी बहुत से दम्पति बेटे की चाहत में धार्मिक कर्मकांड करवाते हैं। ऐसे दम्पत्ती खास कर स्त्रियां पुत्र प्राप्ति के लिए मालीराम जी जैसे तथाकथित पंडितों के चक्कर में पड़कर अपने परिवार को बर्बाद कर लेती हैं, इसके बहुत से उदाहरण हैं। शास्त्री जी को पता नहीं है कि उन जैसे लोगों के उपदेश के बाद दम्पतियों में पुत्र मोह पैदा होता है और राजस्थान, हरियाणा जैसे धर्मानुरागी प्रदेशों में एक हजार पुत्र के अनुपात में स्त्रियाें की संख्या 840 के आसपास हो गई है।
भारत स्त्री-पुरुष अनुपात में भार विषमता के खिलाफ लड़ रहा है।
सरकार आये दिन कन्या के जन्म को बढ़ावा देने का उपक्रम लेती है। बेटा- बेटी में कोई फर्क नहीं-यह हर मंच से कहा जाता है। पुराने दकियानुसी विचारों के विरुद्ध प्रगतिशील लोगों ने हर स्तर पर अभियान चला रखा है। कन्याओं के हौसले बुलन्द करने के लिये प. बंगाल सरकार ने कन्याश्री जैसी योजनाएं लागू की जिन्हें संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी मान्यता ही नहीं दी उसे पुरस्कृत भी किया।
ऐसे समय में ताज्जुब है ऐसे लोग भी हैं जो धर्म के नाम पर पुत्र पैदा करने का फार्मूला बता रहे हैं। यही नहीं विडम्बना यह है कि गो सेवा से पुत्र रत्न प्राप्ति होगी, ऐसा कहना तो स्वयं गो माता का घोर अपमान है। गाय स्वयं माता यानी स्त्री हैं। गो सेवा से खुश होकर गो माता पुत्र संतान का वरदान देगी, ऐसा शास्त्री जी की व्यक्तिगत कुंठा हो सकती है। हमारे शास्त्र में कहीं भी इस बात का जिक्र नहीं है फिर मालीराम जी किस आधार पर यह भ्रष्ट सलाह दे रहे हैं। समय का तकाजा है कि हम पुत्र प्राप्ति की लालसाओं का प्रतिकार करें एवं इस तरह की मानसिकता को बदलें। कया भ्रूण हत्याओं को रोकें लेकिन इसके विपरीत मालीराम जी या उस तरह के स्वयम्भू पंडितों के चलते बड़ी तादाद में लोग कन्या भ्रूण हत्यायें करवाते हैं। धर्म सभाओं एवं बैठकों में भी भ्रूण हत्याओं के विरुद्ध प्रवचन दिये जाते हैं पर शास्त्री जी उल्टे पुत्र पैदा करने की अचूक रामबाण दवा बता कर भ्रूण हत्याओं के सामाजिक अपराधों को बढ़ानेमें लगे हुये हैं। पुत्र रत्न की प्राप्ति ही अंतोतगत्वा भ्रूण हत्या की मानसिकता को बढ़ावा देती है। इस अनैतिक कार्य में गो माता जो स्वयं स्त्री हैं को घसीटना तो जघन्य अपराध है।
शास्त्री का ''ममता का मंदिर'' नाम तो मर्मस्पर्शी है। नाम में स्त्री बोध है, माँ का वासल्य है पर पंडित जी के वचन फिर महिला विरोधी क्यों है? सिर्फ ममता नाम रखने से कोई सहृदय नहीं हो जाता इसके लिए आपके वाचन और कर्म में सामंजस्य होना चाहिये।
पं. मालीराम शास्त्री या उन जैसे कुछ पोंगा पंडित अपने बेहूदा प्रवचनों से बाज आयें। समाज में कन्याओं के प्रति सम्मान पैदा करें एवं लड़का- लड़की में भेद करने वाले दकियानूसी लोगों के प्रभाव से समाज को मुक्त करें। हमारी इस बारे में जगद्गुरु शंकराचार्य एवं कई धर्मगुरुओं से इसको लेकर बातचीत हुई और इन सबका यह कहना है कि गाय की सेवा-सुश्रुषा जरूर करें क्योंकि वह हमारा पालनपोषण करती है पर पुत्र सन्तान प्राप्ति
की गरज से गो सेवा का किसी भी धर्म पुस्तिका में उल्लेख नहीं है। पं. मालीराम जी ने पुत्र रत्न प्राप्ति का नुस्खा महिलाओं की सुप्त भावनाओं को उकसा कर कुछ धन प्राप्ति में उनकी मदद कर सकता है पर समाज उन्हें पारिवारिक अराजकता फैलाने के जघन्य अपराध के लिये उन्हें कभी माफ नहीं करेगा।

These types of comments will take our country backwards
ReplyDeleteमालीराम शास्त्री की अच्छी खबर ली है,आपने। आलेख धारदार हैऔर इस तरह के बे-सिर-पैर बेहूदा प्रवचन करने वालों को कठघरे में खड़ा करता है। सामाजिक सांस्कृतिक धार्मिक राजनीतिक मुद्दों पर कलम चलाते रहिए और अपना विचार पाठकों तक पहुंचाते रहिए। आलेख के लिए बधाई।
ReplyDeleteतर्क के साथ अपनी बात रखना वाजिब है। पर किसी को पोंगा पंडित बताना प्रांसगिकता न होकर व्यक्तिगत कुंठा को दर्शाता है।
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