स्मरण होगा कि आपातकाल में कांग्रेस सरकार ने नसबदी लागू की थी। जबरन जवानों की नसबंदी की गयी। बुजुर्ग लोगों पर भी अमानवीय ढंग से नसबंदी की कहर बरपाया गया। सरकार के दिमाग में किसी ने घुसा दिया कि नसबंदी ही जनसंख्या नियंत्रण का शर्तिया इलाज है। फरमान निकाला गया और सरकारी कर्मचारियों को नसबंदी के काम में जुटा दिया गया था। कई जगह पैसों का लालच देकर भी नसबंदी करायी गयी। यह लालच ठेकेदारों को भी दिया गया। जितनी नसबंदी उतने पैसे। इमर्जेंसी में सरकार के पास सारे पावर थे और जमकर उसका इस्तेमाल किया गया। नतीजा क्या हुआ - जनसंख्या कम नहीं हुई लेकिन परिवार नियोजन का
अभियान इतना बदनाम हुआ कि 40-42 वर्ष हो गये अब परिवार नियोजन का कोई भी सरकार नाम ही नहीं लेती। यही नहीं इमर्जेंसी के बाद हुये आम चुनाव में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया जिसका भुगतान कांग्रेस को आज भी करना पड़ रहा है। जनसंख्या नियंत्रण हमारे देश के लिये निहायत जरूरी है पर इसके नाम पर निर्दोष
लोगों पर किये गये अत्याचार को याद कर आज भी हम सिहर उठते हैं। अतीत में की गयी भूलों से सबक लिया जाता है। पर सरकारें अपने स्वार्थ एवं अपनी अकर्मण्यता ढकने के लिये भूलें दोहराती है। तुगलकी ने राजधानी बदलने का मूर्खतापूर्ण कदम उठाकर अपनी जिद्द पूरी कर ली। इस बदल में बहुत लोग मारे गये और फायदा किसी को नहीं हुआ। आज जब भी कोई निरंकुश आदेश दिया जाता है उसका पर्यायवाची बन गया है तुगलकी आदेश। यही नहीं 14वीं सदी के सुल्तान मोहम्मद बीन तुगलक को पागल बादशाह के रूप में भी जाना जाता है क्योकि उनके हुक्म से प्रजा को अपार कष्ट भोगना पड़ा था। 2016 की 8 नवम्बर को ऐसा ही एक आदेश रात को 8 बजे हमारे प्रधानमंत्री जी ने देश के नाम संदेश में दिया। हजार और पांच सौ के नोट बंद होने की घोषणा की गयी। लेकिन इस तुगलकी फरमान सुनकर लोग मंत्रमुग्ध हो जायें इसलिए कहा गया कि इस कदम से एक, कालाधन खत्म हो जायेगा, दो नस्लवाद या चरमपंथियों के आर्थिक स्रोत बंद हो जायेंगे और इस तरह की गतिविधियों पर अंकुश लगेगा। तीसरा सुनकर लोगों ने राहत की सांस ली कि आतंकवाद को भी नियंत्रित कर लिया जायेगा। एक तीर में तीन शिकार। देश के आमलोग नोट बदलवाने के लिये लाइन में खड़े हो गये। आप जानते ही हैं कि लाइन में बूढ़े भी खड़े थे, बीमार भी, महिलायें भी, पुरुष भी। प्रधानमंत्री जी की 90 वर्षीय माताजी ने भी पंक्ति में खड़े होकर नोट बदलवाये तो लोगों ने इस बात की प्रशंसा की कि प्रधानमंत्री जी कितने निष्पक्ष एवं आदर्शवादी हैं कि अपनी माँ को भी फेवर नहीं किया। नोटबंदी के इस प्रक्रिया में देश के एक सौ बीस लोग शहीद हो गये। अभी 8 नवम्बर को नोटबंदी की कुछ राजनीतिक दलों ने दूसरी 'पुण्य तिथि मनाई। कई प्रदेशों में कांग्रेस ने नोटबंदी से हुई बर्बादी की याद दिलाई।लेकिन उहोंने भी एक सौ स अधिक लोगों की प्राणहानि पर फोकस नहीं किया। इसके जवाब में नोटबंदी का ऐलान करने वाले मोदी जी तो चुप रहे कितु नोटबंदी पर उस वक्त चुप रहे जेटली जी मुखरित हो गये। वित्तमंत्री के अनुसार नोटबंदी के बहुतेरे फायदे हुए। पहला तो लैकमनी का प्रसार काफी कम हो गया है। दूसरा सारा धन जिसमें लैक मनी शामिल है बैंकों के खाते में आ गया। इस बार उहोंने नय्सली या आतंकवादी गतिविधियों के कम होने का दावा नहीं किया। शायद यह काम जेटली जी ने मोदी पर छोड़ दिया ताकि वे चुनावी सभाओं में इसको उजागर कर सकें। एक बड़ी अहम् बात जेटली जी ने बताई कि कांग्रेस नोटबंदी का इतना विरोध क्यों कर रही है। वित्तमंत्री के अनुसार कांग्रेस का कालाधन खत्म हो गया इसीलिये ये कांग्रेसी 'विधवा विलाप कर रहे हैं। ऐसा है तो चुनाव में कांग्रेस के पास फंड की कमी हो जायेगी और चुनाव में इसका अंजाम राहुल गांधी को भोगना पड़ेगा। पर सिर्फ कांग्रेस वाली ब्लैकमनी को ही कैसे नेस्तनाबूद करेंगे, जेटली जी यह राज की बात नहीं बता सके। रिजर्व बैंक द्वारा जारी की गयी ताजा रिपोर्ट के अनुसार रिजर्व बैंक ने सरकार को इस बात से आगाह कर दिया था कि विमुद्रीकरण से देश की अर्थव्यवस्था में गिरावट आयेगी। यह भी कहा था कि इससे कालाधन नहीं रोका जा सकता। रिजर्व बैंक की बोर्ड मीटिंग में नोटबदी के पक्ष में सरकार द्वारा दिये तर्कों को नकार दिया गया था। फिर भी रिजर्व बैंक ने सरकार के फैसले को स्वीकार किया य्योंकि अन्य कोई उपाय नहीं था। दो वर्ष बाद रिजर्व बैंक की क्या स्थिति हो गई है कि देश के इस केंद्रीय बैंक, जो पूरी अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करता है, की जड़ें हिल गई है। नरेन्द्र मोदी जी के फरमान से तुगलकी फरमान की याद ताजा हो गई। इमर्जेंसी में नसबंदी के पागलपन से सबक नहीं लिया गया। नसबंदी से
जैसे जनसंख्या पर कोई नियंत्रण नहीं हुआ और कुछ लोग इस शरारती कदम के शिकार हो गये, नोटबंदी ने न सिर्फ 120 लोगों के प्राण लिये बल्कि कई मध्यम श्रेणी के कारोबारी एवं निम्न मध्यम श्रेणी के छोटे व्यापारियों की कमर टूट गई। वे आज तक उठ नहीं पा रहे हैं। ब्लैकमनी समाप्त करने या कम करने, चरमपंथियों व आतंकवादी गतिविधियों पर अंकुश के लिये विमुद्रीकरण नहीं लम्बी एवं प्रभावी योजना बनानी होती है। इसका कोई जादुई हल नहीं होता। यह ठीक वैसे ही है जैसे नसबंदी को जनसंख्या नियंत्रण का शॉर्ट कट तरीका माना गया था। यह सब सनक है और सनक से अहम् समस्याओं का समाधान नहीं होता है। बल्कि इस तरह के निरंकुश कदम से तबाही मचती है जैसी कि नसबंदी और नोटबंदी ने मचाई।
अभियान इतना बदनाम हुआ कि 40-42 वर्ष हो गये अब परिवार नियोजन का कोई भी सरकार नाम ही नहीं लेती। यही नहीं इमर्जेंसी के बाद हुये आम चुनाव में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया जिसका भुगतान कांग्रेस को आज भी करना पड़ रहा है। जनसंख्या नियंत्रण हमारे देश के लिये निहायत जरूरी है पर इसके नाम पर निर्दोषलोगों पर किये गये अत्याचार को याद कर आज भी हम सिहर उठते हैं। अतीत में की गयी भूलों से सबक लिया जाता है। पर सरकारें अपने स्वार्थ एवं अपनी अकर्मण्यता ढकने के लिये भूलें दोहराती है। तुगलकी ने राजधानी बदलने का मूर्खतापूर्ण कदम उठाकर अपनी जिद्द पूरी कर ली। इस बदल में बहुत लोग मारे गये और फायदा किसी को नहीं हुआ। आज जब भी कोई निरंकुश आदेश दिया जाता है उसका पर्यायवाची बन गया है तुगलकी आदेश। यही नहीं 14वीं सदी के सुल्तान मोहम्मद बीन तुगलक को पागल बादशाह के रूप में भी जाना जाता है क्योकि उनके हुक्म से प्रजा को अपार कष्ट भोगना पड़ा था। 2016 की 8 नवम्बर को ऐसा ही एक आदेश रात को 8 बजे हमारे प्रधानमंत्री जी ने देश के नाम संदेश में दिया। हजार और पांच सौ के नोट बंद होने की घोषणा की गयी। लेकिन इस तुगलकी फरमान सुनकर लोग मंत्रमुग्ध हो जायें इसलिए कहा गया कि इस कदम से एक, कालाधन खत्म हो जायेगा, दो नस्लवाद या चरमपंथियों के आर्थिक स्रोत बंद हो जायेंगे और इस तरह की गतिविधियों पर अंकुश लगेगा। तीसरा सुनकर लोगों ने राहत की सांस ली कि आतंकवाद को भी नियंत्रित कर लिया जायेगा। एक तीर में तीन शिकार। देश के आमलोग नोट बदलवाने के लिये लाइन में खड़े हो गये। आप जानते ही हैं कि लाइन में बूढ़े भी खड़े थे, बीमार भी, महिलायें भी, पुरुष भी। प्रधानमंत्री जी की 90 वर्षीय माताजी ने भी पंक्ति में खड़े होकर नोट बदलवाये तो लोगों ने इस बात की प्रशंसा की कि प्रधानमंत्री जी कितने निष्पक्ष एवं आदर्शवादी हैं कि अपनी माँ को भी फेवर नहीं किया। नोटबंदी के इस प्रक्रिया में देश के एक सौ बीस लोग शहीद हो गये। अभी 8 नवम्बर को नोटबंदी की कुछ राजनीतिक दलों ने दूसरी 'पुण्य तिथि मनाई। कई प्रदेशों में कांग्रेस ने नोटबंदी से हुई बर्बादी की याद दिलाई।लेकिन उहोंने भी एक सौ स अधिक लोगों की प्राणहानि पर फोकस नहीं किया। इसके जवाब में नोटबंदी का ऐलान करने वाले मोदी जी तो चुप रहे कितु नोटबंदी पर उस वक्त चुप रहे जेटली जी मुखरित हो गये। वित्तमंत्री के अनुसार नोटबंदी के बहुतेरे फायदे हुए। पहला तो लैकमनी का प्रसार काफी कम हो गया है। दूसरा सारा धन जिसमें लैक मनी शामिल है बैंकों के खाते में आ गया। इस बार उहोंने नय्सली या आतंकवादी गतिविधियों के कम होने का दावा नहीं किया। शायद यह काम जेटली जी ने मोदी पर छोड़ दिया ताकि वे चुनावी सभाओं में इसको उजागर कर सकें। एक बड़ी अहम् बात जेटली जी ने बताई कि कांग्रेस नोटबंदी का इतना विरोध क्यों कर रही है। वित्तमंत्री के अनुसार कांग्रेस का कालाधन खत्म हो गया इसीलिये ये कांग्रेसी 'विधवा विलाप कर रहे हैं। ऐसा है तो चुनाव में कांग्रेस के पास फंड की कमी हो जायेगी और चुनाव में इसका अंजाम राहुल गांधी को भोगना पड़ेगा। पर सिर्फ कांग्रेस वाली ब्लैकमनी को ही कैसे नेस्तनाबूद करेंगे, जेटली जी यह राज की बात नहीं बता सके। रिजर्व बैंक द्वारा जारी की गयी ताजा रिपोर्ट के अनुसार रिजर्व बैंक ने सरकार को इस बात से आगाह कर दिया था कि विमुद्रीकरण से देश की अर्थव्यवस्था में गिरावट आयेगी। यह भी कहा था कि इससे कालाधन नहीं रोका जा सकता। रिजर्व बैंक की बोर्ड मीटिंग में नोटबदी के पक्ष में सरकार द्वारा दिये तर्कों को नकार दिया गया था। फिर भी रिजर्व बैंक ने सरकार के फैसले को स्वीकार किया य्योंकि अन्य कोई उपाय नहीं था। दो वर्ष बाद रिजर्व बैंक की क्या स्थिति हो गई है कि देश के इस केंद्रीय बैंक, जो पूरी अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करता है, की जड़ें हिल गई है। नरेन्द्र मोदी जी के फरमान से तुगलकी फरमान की याद ताजा हो गई। इमर्जेंसी में नसबंदी के पागलपन से सबक नहीं लिया गया। नसबंदी से
जैसे जनसंख्या पर कोई नियंत्रण नहीं हुआ और कुछ लोग इस शरारती कदम के शिकार हो गये, नोटबंदी ने न सिर्फ 120 लोगों के प्राण लिये बल्कि कई मध्यम श्रेणी के कारोबारी एवं निम्न मध्यम श्रेणी के छोटे व्यापारियों की कमर टूट गई। वे आज तक उठ नहीं पा रहे हैं। ब्लैकमनी समाप्त करने या कम करने, चरमपंथियों व आतंकवादी गतिविधियों पर अंकुश के लिये विमुद्रीकरण नहीं लम्बी एवं प्रभावी योजना बनानी होती है। इसका कोई जादुई हल नहीं होता। यह ठीक वैसे ही है जैसे नसबंदी को जनसंख्या नियंत्रण का शॉर्ट कट तरीका माना गया था। यह सब सनक है और सनक से अहम् समस्याओं का समाधान नहीं होता है। बल्कि इस तरह के निरंकुश कदम से तबाही मचती है जैसी कि नसबंदी और नोटबंदी ने मचाई।


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