अमृतसर में 'रावण लीला

बुराई पर अच्छाई की जीत! 
यानी
दिल बहलाने का गालिब खयाल अच्छा है


हर वर्ष रावण का पुतला जलाकर हम दशानन का संहार करते हैं। पहले रावण का लम्बा ऊंचा पुतला बनाते हैं फिर उसे आग के हवाले कर दशहारा का उˆसव मनाया जाता है। धार्मिक दर्शन के मुताबिकयह बुराई पर अ‘छाई की विजय है। देश के हर हिस्से में इसी तरह दशहरा मनाया जाता है। अमृतसर जो सिखों के स्वर्ण मंदिर के कारण एक पवित्र शहर माना जाता है- में भी यह परम्परा वर्षों से चली आ रही है। इस वर्ष उसी स्थान पर हर साल की तरह रावण वध का हाई पावर ड्रामा खेला गया। रावण दहन के स्थान के पास रेलवे ट्रैक था - ट्रेन ने सीटी बजाई पर उत्सव मनाने वालों के शोर शराबे में किसी ने नहीं सुना - इंजिन की हेड लाईट की तेज रशनी का भी किसी को अहसास नहीं हुआ और चंद सेकेंड में 61 लाश ट्रेन की पटरियों पर बिखर गई। हृदय विदारक दृश्य। कुछ देर बाद रेल की पटरियों पर बिछी लाशों में रोते-बिलखते लोग अपने आत्मीय जनों को तलाश रहे थे। फिर सवाल उठे नृशंस घटना में किसकी गलती है। रामलीला आयोजकों के पास कोई औपचारिक अनुमति नहीं है। पंजाब के वरिष्ठ मंत्री सुविख्यात नवजोत सिंह सिद्धू की पˆनी देर से पहुँची - समय पर आ जाती तो यह घटना नहीं होती। दबे स्वर से किसी ने अंधेरे में तीर छोड़ा रेल इंजन का ड्राइवर मुसलमान था। उसने रामलीला के हिंदू दर्शकों को रौंद डाला। बाद में वह तो खांटी हिंदू निकला। जहां से ट्रेन गुजरती हो उसके पास रामलीला या रावण दहन होता है- हजारों लोग देखने खड़े हैं। इनमें वृद्ध, बुजुर्ग भी हैं, औरतें भी। कई बणों तो अपने पिता या पितामह के कंधे पर बैठकर रावण दहन का लुत्फ उठा रहे थे कि ट्रेन आयी और कुचल कर चली गई। जांच होगी - किसके सिर दोष मढ़ा जायेगा, भविष्य ही बतायेगा। हमारे यहां जांच कैसे होती है - दोषियों को खोजने में कितना वक्त लगता है, किसी से छिपा नहीं है। हम सभी जानते हैं कुछ अंतराल बाद यह हृदय विदारक घटना हमारी स्मृति से ओझल हो जायेगी। कितने लोगों को याद है अमृतसर में ही जालियांवाला बाग में किसी अंग्रेजी हुकूमत के कर्नल डायर ने सैकड़ों हि‹दुस्तानियों को गोलियों से भून दिया था। जितने लोग डायर की गोली से मरे उससे ’यादा अपनी रक्षा के लिये बगल में कुएं में कूद कर मर गये। वह ऐतिहासिक स्मारक अमृतसर में है जहां अब कुछ पर्यटक वह भी ’यादातर इतिहास के विद्यार्थी जाकर देखते हैं और याद करते हैं ब्रिटिश शासन की बर्बरता को। कि‹तु पास में अमृतसर का स्वर्ण मंदिर है जहां मत्था टेकने बड़ी संख्या में श्रद्धालु प्रतिदिन आते हैं और पवित्र जल का स्पर्श कर पुज्य-लाभ लेते हैं। लेकिन रामलीला के इस स्थल पर तो कोई स्मारक भी बनने वाला नहीं है। सम्भव है अगले साल फिर वहां रावण को मारा जाय और इस रोमांचक दृश्य को देखने फिर हजारों की संख्या में लोग जमा हों। अगले वर्ष नहीं तो कुछ वर्ष बाद फिर यही होना है। हम भूल जायेंगे कि रामलीला में रावण का किरदार निभाने वाला दलबीर सिंह ने सात लोगों की जान बचाकर स्वयं मृत्यु के काल में समा गया। दो साल पहले ही उसकी शादी हुई थी और उसकी पत्नी गर्भवती है। अमृतसर में वह राव‡ण के नाम से जाना जाता था क्योंकि रामलीला में वह राव‡ण का किरदार निभाता था। क्या इस कथित ''रावण का स्मारक बनाने की कोई हिम्मत करेगा?
रावण दहन बुराई पर अ‘छा की जय जायकार करने वालों के उˆसाह पर किसी को दखल देने का हक नहीं है। यह हमारी धार्मिक स्वतंत्रता है और इसका विरोध करने वालों पर कई लांछन लगाये जा सकते हैं। और फिर हमारे यहां ही नहीं - मक्का में भी बुराई के प्रतीक तीन खम्भों को शैतान का प्रतिरूप दिया जाता है। रमी जमरात में हजारों लोग उन पर पत्थर मारते हैं। मन को शकून मिलता है कि हमने शैतान पर प्रहार कर बुराई के विरुद्ध अ‘छाई की जीत दर्ज की। सन् 2006 में इंहीं शैतानों को पत्थर मारने के ज’बे में उत्साही समावेश में भगदड़ मच गई और देखते- देखते 350 मुस्लिम श्रद्धालुओं की मौत हो गई। कितना आसान उपाय है बुराई पर अच्छाई की जीत हासिल करने का। दिल बहलाने का गालिब खायल अ‘छा है। पर हमारे सामने मुँह बाये अपना विकराल चेहरा लिये नामुराद आंकड़े खड़े हैं जो यह बयां करते हैं कि अपराध बेतहाशा बढ़ रहे हैं। दो-तीन साल की  बच्चियों का रेप होता है - यौन शोषण के रोज वारदात सामने आ रहे हैं। घरेलू हिंसा बढ़ रही है - कुछ पैसों के लिये बेटा बाप का खून करता है। ऐसे में हम रावण का पुतला जलाकर ''राम राज्य'' का सपना देख रहे हैं। धर्म के नाम पर आप जो अपराध कर लीजिये। एक आसाराम बापू जेल में हैं। लेकिन कितने आसाराम हरम चला रहे हैं। साम्प्रदायिक सौहार्द के नाम पर राम रहीम नाम रख लीजिये पर साम्प्रदायिकता का जहर हमारी जि‹दगी में कितना घुल चुका है जब हम 61 प्राण लेने वाले ईंजन के ड्राइवर का धर्म खोजते हैं। एक बार पंजाब जा रही एक ट्रेन में इतनी भीड़ थी कि लोग छतों पर बैठे थे। फसल कटाई के समय यूपी, बिहार से लाखों लोग पंजाब कूच करते हैं। ट्रेन के सामने ड्राइवर ने देखा एक गाय ट्रैक पार कर रही है। गो माता को बचाने उसने ब्रेक लगाया, गाय तो बच गई पर डिŽबे उलट गये और कई सौ लोग बेमौत मारे गये। न रावण इतनी जल्दी मरता है न शैतान का बाल बांका होता है। हम प्रतीकों में कब तक जीयेंगे - कब तक जश्न मनायेंगे। सामाजिक सुधारों का सिलसिला खत्म हो रहा है। भूलिये मत कि समाज को बदलने वाले युग पुरुष चाहे वह गांधी हों या सुकरात, स्वामी दयानंद सरस्वती हों या ईसा मसीह सभी अपने ही लोगों के हाथों मारे गये थे। फिर भी हर युग में क्रातिंकारी लोग जन्म लेते हैं और वे ही समाज में परिवर्तन के सारथी हुआ करते हैं। अभी तक जिस खुशफहमी को हम पाल रहे हैं वह न तो बुराई पर अच्छाई की जीत है और न ही उससे रावण मरता है। रावण तो हमारे मन में बसता है और हम उसे पाल रहे हैं-

जिंदगी भर मैं यह खता करता रहा
धूल तो चेहरे पर थी
मैं आइना मलता रहा।    -इकबाल

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